सम्भल में गत 24 नवंबर को जो हुआ, उसे दंगा तो कतई नहीं कहा जा सकता। यह सोची-समझी साजिश थी उन्माद फैलाने की, मामले को सांप्रदायिक रंग देने की। पाञ्चजन्य की टीम तीन दिन वहां रही और 50 से ज्यादा लोगों से बात की, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों थे। हिंदू सहमे, सशंकित हैं, क्योंकि सम्भल के इतिहास में आजादी के बाद से अब तक हिंसा और तनाव में सिर्फ हिंदू ही मारे जाते रहे हैं। सम्भल में जो दंगे होने की बात अक्सर कही जाती है वह निराधार है, क्योंकि वहां दंगे कभी हुए ही नहीं। पूर्व की सरकारें जिन घटनाओं को दंगा कहकर प्रचारित करती रहीं, वे दंगे नहीं थे। उन्हें दंगा उसी सूरत में कहा जा सकता है जब दोनों पक्ष आमने—सामने हों। मुस्लिम बहुल सम्भल में तो हमेशा से सुनियोजित साजिश के तहत हिंदुओं को निशाना बनाया गया है। तथ्य और वहां के पुराने लोग भी इसकी पुष्टि करते हैं।
सम्भल की कोतवाली के पास हिंदुओं की कई दुकानें हैं। वहां से करीब 700 मीटर दूर संकरी गलियों से निकलकर उस विवादित स्थल तक पहुंचा जा सकता है, जिसे मुसलमान जामा मस्जिद कहते हैं। वहां के एक स्थानीय दुकानदार ने बताया, ‘‘मेरी दादी बताती थीं कि इस जगह पर हरिहर मंदिर था। जामा मस्जिद के बाहर एक कुआं है, जिसे अब बंद कर दिया गया है। 2012 तक इस कुएं पर सम्भल के हिंदू पूजा करते थे। विवाह और पुत्र के जन्म पर हिंदुओं में कुआं पूजन की परंपरा है। 2010 में जब मेरे बेटे का जन्म हुआ तब भी कुआं पूजन हुआ था। 2012 में जब सपा की सरकार बनी, तब यहां के सांसद और सपा नेता शफीकुर्रहमान बर्क ने इस कुएं को बंद करवा दिया। जाहिर-सी बात है, कुआं पूजन का रिवाज हिंदुओं में होता है, मुसलमानों में नहीं।’’
एक अन्य दुकानदार ने कहा, ‘‘सम्भल में अभी तो बहुत फोर्स लगी हुई है, जैसे ही फोर्स हटेगी, किसी हिंदू को चिह्नित कर फिर से हिंसा फैलाने पूरी आशंका है, इसलिए आपको कोई भी अपना नाम नहीं बताएगा। पूरा सम्भल जानता है कि यहां पर मंदिर ही था, फिर चाहे वे सम्भल के मुसलमान ही क्यों न हों। इसमें कोई दो राय नहीं कि यहां मंदिर ही है, जिस पर मुसलमानों का अवैध कब्जा है।’’
मुसलमानों का गोल—मोल जवाब
सम्भल में विवादित स्थल के पीछे की गली में दुकान चलाने वाले शाजिल ने बताया कि उनका घर वहां से दूर है। जिस दिन यहां सर्वे हुआ, उनके पास फोन आया कि उनकी दुकान में आग लगा दी गई है। वे घर से निकले, पर दुकान तक जाने के सारे रास्ते बंद थे। हर तरफ फोर्स तैनात थी। वे घर वापस लौट आए। बाद में पता चला कि दुकान में आग नहीं लगी थी, दुकान के सामने एक गाड़ी को जला दिया गया था। शाजिल ने आगे बताया कि यहां पर मंदिर था या नहीं, यह तो उन्हें नहीं पता, लेकिन बाहर जो कुआं है, जिसे अब बंद कर दिया गया है, वहां हिंदू पूजने जरूर आते थे। 2012 से वहां पर अब हिंदू नहीं आते।’’ एक और स्थानीय मुसलमान इफ्तखार आलम ने बताया, ‘‘मैं 68 साल का हूं। बचपन से यहां नमाज पढ़ने आता रहा हूं। यहां पर मस्जिद है, लेकिन हिंदू कहते हैं कि यहां पर मंदिर था। हो सकता है कि यहां पर कभी मंदिर रहा हो, लेकिन अभी तो यहां नमाज अदा की जाती है सो साफ तौर पर तो मैं कुछ नहीं कह सकता।’’
‘मस्जिद खतरे में है’ अफवाह उड़ाई गई
दरअसल सम्भल में हिन्दुओं के मुकाबले मुसलमानों की आबादी ज्यादा है। सम्भल जाते समय रास्ते में सलेमपुर गांव पड़ता है। इस गांव की आबादी करीब 1500 है जबकि हिंदुओं की आबादी मात्र 100 ही है। सलेमपुर के एक युवक ने बताया कि 19 नवंबर को सर्वे के बाद गांव में अफवाह थी कि ‘मस्जिद खतरे में है। मस्जिद को बचाना है।’ हालांकि गांव के हिंदुओं से किसी ने कुछ कहा नहीं, पर जो लोग कभी नमाज के लिए सम्भल नहीं जाते थे वे भी नमाज के लिए सम्भल जाने लगे थे। अब भी गांव में तनाव है, लेकिन सख्ती के कारण कोई कुछ ऐसा-वैसा नहीं कर पा रहा।
नाम हिंदूखेड़ा, हिंदू एक भी नहीं
सम्भल में विवादित स्थल के पास हिंदूखेड़ा नाम का मुहल्ला है। नाम से जाहिर है कि कभी यह क्षेत्र हिंदू बहुल था। अब इस इलाके में एक भी हिंदू परिवार नहीं बचा है। यहां के मुसलमान हिंदूखेड़ा को ‘हिंदू खदेड़ा’ कहते हैं जहां से हिंदुओं को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। यहां एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें एक मुस्लिम महिला छत से पुलिस पर पथराव कर रही है। पुलिस ने इस मामले में तीन महिलाओं रुकय्या, फरहाना और नजराना को गिरफ्तार किया है।
सुबह बांटे गए हथियार
सम्भल में पहली बार 19 नवंबर को सर्वे हुआ, तब कोई बवाल नहीं हुआ, लेकिन उन्मादियों ने 24 नवंबर को बवाल की तैयारी कर रखी थी। प्रशासन बेहद सख्त था इसलिए 23 की शाम तक कुछ नहीं हुआ। अगले दिन तड़के यहां अवैध हथियार बांटे गए। इसके बाद सुनियोजित हिंसा की गई जिसे हिंदू—मुस्लिम तनाव की शक्ल देने की कोशिश की गई, जबकि हिंदू पक्ष के लोग कहीं नहीं थे। उन्मादी भीड़ ने सर्वे टीम और पुलिस पर पथराव किया। सम्भल के जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया कहते हैं, ‘‘हमने पूरी तैयारी की थी ताकि सर्वे शांतिपूर्ण तरीके से निबट जाए और कोई बवाल न हो, लेकिन 24 नवंबर को सोची-समझी साजिश के तहत पुलिस पर पथराव किया गया।
अवैध हथियारों से फायरिंग की गई। मजबूरन प्रशासन को सख्ती करनी पड़ी। भीड़ को काबू करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े गए। भीड़ को काबू नहीं किया जाता तो वह हमें मार डालती। इतना सब होने के बाद भी हमने गोलियां नहीं चलाईं। पथराव करने वाले दंगाई अपनी ही चलाई गोलियों से मारे गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हुई है। उनके शरीर से जो गोलियां मिलीं, वे पुलिस की गोलियां नहीं थीं। वे अवैध हथियारों से चलाई गई गोलियां थीं। अवैध हथियार कहां से और कैसे दंगाइयों के हाथों में पहुंचे, इसकी जांच की जा रही है। अभी तक 30 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। सभी पर रासुका के तहत कार्रवाई की जा रही है। बाकी जो वीडियो हमारे पास हैं उन्हें देखकर और आरोपियों की पहचान का काम जारी है।’’
पाकिस्तानी कारतूसों से हुई फायरिंग
सम्भल में जो कारतूस मिले हैं वे भी पाकिस्तान की किसी आर्डिनेंस फैक्ट्री में बने हैं। मुस्लिम बहुल सम्भल में आजादी के बाद से आज तक जितनी बार भी दंगा हुआ है, केवल और केवल हिंदू मारे गए हैं। सेकुलरिज्म के नाम पर हमेशा से सम्भल में हिंदुओं की आवाज को दबाया गया है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने से पहले तक यहां ऐसा माहौल था कि हिंदू रात को बाहर भी नहीं निकल सकते थे। शहर में हिंदुओं की आबादी बस कुछ ही इलाकों में बची है। अधिकांश हिंदू या तो शहर से पलायन कर गए हैं या फिर डर के साए तले जीने को मजबूर हैं।
विभाजन से शुरू हुआ है हिंसक इतिहास
1947 में जब देश का बंटवारा हुआ, तब सम्भल में भी हिंसा हुई थी। सम्भल के नजदीक स्थित हातिमसराय से पहले भागकर मुस्लिम सम्भल कोतवाली क्षेत्र में पहुंचे। हातिमसराय के एक आढ़ती जगदीश शरण बलवा खत्म होने के बाद जब 15 से 20 लोगों के साथ घर लौट रहे थे तो हिलाली सराय में कुरैशी वाली गली के पास मुसलमानों की भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। बाकी लोग तो किसी तरह जान बचाकर वहां से भाग निकले लेकिन जगदीश को मुसलमानों ने घेर लिया और बर्बरता से उनकी हत्या कर दी।
स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार सम्भल के वर्तमान विधायक इकबाल मसूद के पिता बड़े नवाब महमूद हसन खां सम्भल के दबंग लोगों में से एक रहे हैं। 1948 में उन्होंने मामूली से विवाद के बाद फायरिंग कर दी, जिसके बाद दंगा भड़क उठा। यहां 20 दिन तक कर्फ्यू रहा। सम्भल के हातिमसराय इलाके में कटरा मोड़ पर दंगा हुआ जिसमें छह हिंदुओं को बेरहमी से मार दिया गया।
1958 में हिन्द इंटर कॉलेज में हिंदू—मुस्लिम छात्रों के बीच झगड़ा हुआ। इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। दो दिन तक शहर में कर्फ्यू लगा रहा। इसमें 15 हिंदू युवक घायल हो गए थे।
1962 में प्रख्यात राजनेता आचार्य जे बी कृपलानी ने यहां से चुनाव लड़ा था। उनके प्रचार के लिए पंडित नेहरू भी यहां पहुंचे थे। जनसंघ से विधायक महेश गुप्ता उस दिन रुकनुद्दीन सराय से वापस लौट रहे थे। बीज गोदाम पर घात लगाए बैठे मुसलमानों ने उन्हें रोककर चाकू से कई वार किए और उन्हें मरा समझकर वहां से भाग निकले। महेश गुप्ता की जान जाते—जाते बची थी।
जब अफवाह उड़ाकर फैलाया दंगा
सम्भल के मदन गुप्ता बताते हैं कि 29 फरवरी, 1976 को मुसलमानों ने अफवाह उड़ाई कि पेतिया गांव के राजकुमार सैनी ने एक मौलवी को मार दिया है। जबकि ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। यह अफवाह इतनी तेजी से फैली कि शहर में हिंसा होने लगी। उन्मादी भीड़ ने सम्भल के मंजर शफी और अताउल्ला ततारी के नेतृत्व में शहर में बलवा करना शुरू कर दिया। उन्मादियों ने सूरजकुंड मंदिर और मानस मंदिर को तोड़ दिया। इसके बाद भीड़ सरथल चौकी की तरफ भीड़ बढ़ी और यहां के व्यापारी किशनलाल के घर को जलाने का प्रयास किया। हिंदुओं ने प्रतिरोध किया। उन्मादियों ने पथराव किया और वहां से भाग निकले।
इस दंगे में उन्मादियों ने सोतीपुरा के रहने वाले सुक्खा सिंह और कोटपूर्वी मुहल्ले के रहने वाले रामेश्वर प्रसाद की बर्बरता से हत्या कर दी। स्थानीय निवासी ब्रजभूषण बताते हैं, ‘‘2006 में जब उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी तब मुलायम सिंह ने इस पूरे दंगे का नेतृत्व करने वाले अताउल्ला ततारी और मंजर शफी को आपातकाल के ‘आंदोलनकारी’ दिखाकर ‘लोकतंत्र सेनानी’ घोषित कर दिया था। इस संबंध में हिंदुओं ने कई बार जिलाधिकारी कार्यालय में जाकर ज्ञापन भी दिए लेकिन कुछ नहीं हुआ। वे कहते हैं, ‘‘सपा सरकार द्वारा फर्जी तरीके से और भी कितने ही मुस्लिमों को ‘लोकतंत्र सेनानी’ घोषित किया गया है।’’
184 हिंदू मारे गए पर रिकॉर्ड में 24 ही
सम्भल में सबसे बड़ा दंगा 1978 में हुआ था। स्थानीय लोगों की मानें तो इसमें 184 से ज्यादा हिंदू मारे गए थे, लेकिन रिकॉर्ड में बस 24 ही हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्र नेता रहे मंजर शफी की इस दंगे में बड़ी भूमिका थी। वह सम्भल का ही था। सम्भल में यह दंगा होली के बाद शुरू हुआ था। बात 25 मार्च, 1978 की है। होली मनाए जाने को लेकर हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव था।
मुस्लिम होली मनाने के पक्ष में नहीं थे। सम्भल के एमजीएम कॉलेज में होली के अवसर पर मजाक के तौर पर छात्र—छात्राओं को कुछ मजाकिया नाम दिए जाते थे। यह हर साल की परंपरा थी जिस पर कोई विवाद नहीं होता था। एक स्थानीय निवासी छत्रपाल बताते हैं कि शफी मंजर एमजीएम कॉलेज की प्रबंधन समिति का आजीवन सदस्य बनाना चाहता था। उस समय कॉलेज के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति 10 हजार रुपए देकर प्रबंधन समिति का आजीवन सदस्य बन सकता था।
स्थानीय ट्रक यूनियन ने मंजर शफी के नाम से 10 हजार रुपए कॉलेज के कोष में भेजे थे ताकि उसे आजीवन सदस्य बनाया जा सके। लेकिन उस समय सम्भल के उपजिलाधिकारी प्रबंधन समिति के उपाध्यक्ष थे। उन्होंने मंजर शफी की सदस्यता को मान्यता नहीं दी। इस कारण मंजर शफी कॉलेज प्रबंधन समिति से नाराज था।
उसने इसका बदला एकतरफा दंगा भड़काकर लिया। उसने अफवाह उड़ाई कि होली के अवसर पर मुस्लिम लड़कियों को भद्दे ‘टाइटल’ दिए गए। उसने स्थानीय मुस्लिम युवकों को साथ लेकर बाजार बंद कराने का प्रयास किया। पर प्रमोद नाम के एक चाय वाले ने दुकान बंद करने से मना कर दिया। मंजर ने उसका सामान उठाकर बाहर फेंक दिया। दोनों के बीच हाथापाई भी हुई। इस बीच शहर में यह अफवाह उड़ा दी गई कि हिंदुओं ने मंजर को मार दिया। अफवाह इतनी तेजी से फैली कि शहर भर में दंगा भड़क गया। तत्कालीन उपजिलाधिकारी रमेश चंद्र माथुर और तहसीलदार ने भागकर अपनी जान बचाई।
बाजार में भगदड़ मची तो स्थानीय हिंदू व्यापारी मामा बनवारी लाल शहर में खरीदारी करने आए आसपास के गांवों के कुछ हिंदुओं को मुरारी लाल की दुकान पर लेकर आए ताकि उनकी जान बचाई जा सके। पर बनवारी लाल के नजदीकी मुस्लिम आढ़तियों को इस बात की भनक मिल गई थी। उन्होंने उन्मादियों को इस संबंध में खबर दे दी। उन्मादी भीड़ ने पहले ट्रैक्टर से दुकान का गेट तोड़ा फिर वहां छिपे 24 हिंदुओं को बर्बरता से काटकर मार दिया गया। दुकान में आग लगा दी गई। उस समय फरहत अली, यहां के जिलाधिकारी थे, पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी।
पैर काटे, हाथ काटे, फिर काटी गर्दन
मामा बनवारी को जब यह पता लगा कि मुस्लिम हिंदुओं को मार रहे हैं तो वह उन्हें बचाने के लिए घर से निकले। उनकी पत्नी और बेटे ने उन्हें रोका लेकिन वह यह कहकर निकल गए कि सारे मुसलमान मेरे मित्र हैं और भाई जैसे हैं, मेरा बड़ा सम्मान करते हैं, मुझे कुछ नहीं होगा। जब वे हिंदुओं को बचाने वहां पहुंचे तो उन्मादी भीड़, जिसमें उनके कई ‘मित्र’ शामिल थे, जिन्हें उन्होंने पैसे भी उधार दे रखे थे, उन सबने बनवारी लाल को यह कहते हुए घेर लिया कि तुम इन पैरों से हिंदुओं को बचाने आए हो हम ये पैर ही काट देंगे।
उन्मादियों ने उनके पैर काट दिए। तड़पते हुए बनवारी लाल ने उनसे यही कहा कि मारना है तो गोली से मार दो। बावजूद इसके पहले उनके पैर काटे गए, फिर हाथ काटे गए, फिर उनकी गर्दन काटकर मार दिया गया। इस पूरी घटना को हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चंद्र रस्तोगी नाम के दो लोगों ने एक ड्रम में छिपकर देखा था। हरद्वारी लाल के 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले भाई की उनके सामने हत्या कर दी गई थी। सो वे आखिर छिपे रहे ताकि उनकी जान बच सके। उनके परिजनों ने बनवारी लाल का अंतिम संस्कार पुतला बनाकर किया था, क्योंकि उनके शरीर का कोई हिस्सा नहीं मिला था।
हरद्वारी लाल और सुभाषचंद्र रस्तोगी इस मामले में गवाह भी रहे, क्योंकि उन्होंने अपनी आंखों से यह भयावह मंजर देखा था। इस मामले में इरफान, वाजिद, जाहिर, शाहिद, कामिल, अच्छन और मंजर समेत 48 लोगों को अभियुक्त बनाया गया। बनवारी लाल के परिवार पर स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने दबाव बनाया, 1995 में उनका पूरा परिवार सम्भल से पलायन कर गया। यह मामला 2010 में तब तक चला जब तक गवाह मुकर नहीं गए। गवाही सही न हो पाने के चलते आरोपी इस मामले से बरी हो गए।
मामा बनवारी लाल के बेटे नवनीत गोयल के साझेदार प्रदीप अग्रवाल के भाई की मियां सराय के रहने वाले वसीम ने गोली मारकर हत्या कर दी और धमकी दी कि यदि किसी ने उसके खिलाफ एफआईआर कराई तो उसकी भी हत्या कर दी जाएगी।
सम्भल के एक स्थानीय व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं,” जब दंगे हुए तो उनके पड़ोस में रहने वाले एक शिक्षक की पत्नी और बेटी को मुसलमानों ने उठा लिया था। पत्नी को तो हिंदुओं ने छुड़ा लिया लेकिन उनकी बेटी को नहीं छुड़ा पाए। उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इसके बाद ये लोग भी सम्भल से परिवार सहित पलायन कर गए।
सम्भल में मरते आए हैं हिंदू
मुस्लिम बहुल सम्भल में आजादी के बाद से आज तक जितनी बार भी हिंसा हुई। उसको सुनियोजित तरीके से दंगे का नाम दिया गया। उनमें आज तक सिर्फ और सिर्फ हिंदू ही मारे गए। ऐसे में इसे हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित हिंसा कहना ही सही होगा। आज की स्थिति को देखते हुए शांति लाने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रशासन को पूरी सूझ-बूझ और जिम्मेदारी से कार्रवाई करनी होगी तभी स्थानीय हिंदू आबादी चैन से रह सकेगी।
सम्भल की ऐतिहासिक पहचान को मिटाने का प्रयास
सम्भल के रहने वाले एक बुजुर्ग टीकाराम शाक्य बताते हैं,‘‘सम्भल में 68 तीर्थ, 52 सराय और 19 कुए हुआ करते थे। ज्यादातर पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। जो बचे हैं उनकी स्थिति जीर्ण—शीर्ण है।’’ वह कहते हैं, ‘‘सम्भल की महिमा अपार है। यहां के हिंदू मृत्यु के बाद के दाह संस्कार के लिए गंगा जी पर नहीं जाते हैं। जबकि यहां से गंगा जी 40 किलोमीटर ही दूर हैं। यहां मान्यता है कि यदि सम्भल में किसी की मृत्यु हुई तो उसे मोक्ष के लिए के लिए गंगा जी जाने की जरूरत नहीं है। यहीं पर उसको मोक्ष मिल जाता है। जिसको मस्जिद बताया जा रहा है वह हरिहर मंदिर है। आजादी से पहले यह जगह आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधीन थी। बाद में मुसलमानों ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके साक्ष्य भी मौजूद हैं।’’ सम्भल के रहने वाले रतिराम बताते हैं, ‘‘यहां के तीर्थ स्थलों की स्थिति खराब है। सम्भल से 10 किलोमीटर दूर बेला देवी का थान था। बेला पृथ्वीराज चौहान की बेटी थीं। वह यहां पर सती हुई थीं। हिंदू पहले यहां पर पूजा करने जाते थे। आसपास मुसलमानों के खेत थे। 1970 के दशक में यहां पर मुसलमानों ने कब्जा करना शुरू कर दिया था। तब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। धीरे—धीरे मुसलमानों ने यहां पर बुलबुली मस्जिद बना ली।
योगी सरकार है तो सुरक्षित हैं
सम्भल में चंद्रेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर 5वीं शताब्दी का है। मंदिर के पास ही चंदायन गांव है। गांव में मुसलमानों का वर्चस्व है। गांव में प्रधान भी मुसलमान ही है। गांव में हिंदुओं के मात्र 13 घर हैं। सम्भल में हुई हिंसा के के बाद यहां के हिंदू भी डरे हुए हैं। पाञ्चजन्य टीम चंदे्रश्वर महादेव मंदिर पहुंची तो गांव के दो तीन हिंदू मंदिर पर मिले। गांव के रहने वाले एक युवक ने बताया कि जब सम्भल में बवाल हुआ तो यहां पर भी हिंदू डर गए थे लेकिन राज्य में योगी सरकार है तो गांव के प्रधान ने खुद आकर गांव वालों से कहा कि ‘यदि किसी हिंदू को खरोंच भी आ गई तो पीएसी की कंपनी गांव में आकर पड़ जाएगी, फिर मैं भी कुछ नहीं कर सकूंगा। इसलिए बेहतर है कि चुप रहो, किसी भी हिंदू से कुछ बोलने की जरूरत नहीं है। यदि किसी ने ऐसा किया तो मैं खुद जाकर पुलिस में उसके खिलाफ एफआईआर करूंगा।’ चंद्रेश्वर मंदिर के पुजारी ने बताया कि ‘राज्य में योगी सरकार है इसलिए कार्रवाई के डर से कोई कुछ नहीं बोल रहा है। यदि योगी सरकार नहीं होती तो अभी तक यहां पर हिंदुओं का कत्लेआम शुरू हो जाता। पुलिस सुबह शाम दोनों समय गश्त के लिए यहां पर आती है। हमने मंदिर के पास पुलिस चौकी बनवाने के लिए कहा है। इसकी अनुमति भी मिल गई है। जल्द ही यहां पर पुलिस चौकी भी बन जाएगी।’
एएसआई की रिपोर्ट- यहां मंदिर ही था
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 1879 की रिपोर्ट में हरिहर मंदिर के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। एएसआइ के तत्कालीन अधिकारी ए. सी. एल. कार्लाइल द्वारा तैयार रिपोर्ट में सम्भल क्षेत्र और इस स्थल का विस्तृत सर्वेक्षण दर्ज है। इसके अनुसार, ‘‘सम्भल का सतयुग में नाम ‘सब्रित’ या सब्रत और सम्भलेश्वर था। त्रेतायुग में इसे महदगिरि और द्वापर में पिंगला कहा जाता था। कलियुग में इसे वर्तमान नाम सम्भल या संस्कृत में सम्भल-ग्राम मिला। शहर के दक्षिण-पूर्व में सुरतकाल खेड़ा है। यह नाम चंद्र जाति के राजा सत्यवान के पुत्र राजा सुरथल के नाम पर रखा गया था। सुरथल खेड़ा की लंबाई उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक 1,200 फीट और चौड़ाई 1,000 फीट मापी गई। इसके दक्षिण-पश्चिम की ओर एक और बड़ा खेड़ा है, जिस पर एक गांव है जिसे ‘राजा सदून-का-खेड़ा’ या ‘सदुंगगढ़’ कहा जाता है।
मुसलमान जामा मस्जिद को बाबर के समय का बताते हैं और इसके अंदर एक शिलालेख की बात करते हैं, जिस पर बाबर का नाम है। लेकिन सम्भल के कई मुसलमानों ने मेरे सामने कबूल किया कि शिलालेख नकली है। उन्होंने मंदिर पर बलपूर्वक कब्जा किया था।
मस्जिद के अंदर और बाहर के खंभे पुराने हिंदू मंदिरों की तरह हैं, जिन्हें प्लास्टर से छिपाने का प्रयास किया गया है। एक खंभे से प्लास्टर हटने पर लाल रंग के प्राचीन खंभे दिखाई दिए, जो हिंदू मंदिरों में इस्तेमाल होने वाले डिजाइन और संरचना के थे। मस्जिद में एक शिलालेख है, जिसमें लिखा है कि इसका निर्माण 933 हिजरी में मीर हिंदू बेग ने पूरा किया था। मीर हिंदू बेग बाबर का दरबारी था, जिसने एक हिंदू मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया। यह शिलालेख इस बात का प्रमाण है कि मस्जिद का निर्माण किसी हिंदू धार्मिक स्थल को बदलकर किया गया था।
मस्जिद के खंभे हिंदू वास्तुकला के हैं। वह मुसलमानों द्वारा बनाए गए खंभों से अलग हैं। ये खंभे विशुद्ध हिंदू वास्तुकला का प्रतीक हैं। गुंबद का जीर्णोद्धार हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में हुआ था मस्जिद की संरचना में हिंदू मंदिर के कई चिह्न पाए गए, जिन्हें बाद में प्लास्टर से ढक दिया गया।’’
यहां मंदिर ही था और रहेगा
हरिहर मंदिर मामले में हिंदू पक्ष की तरफ से वादी कैला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज का कहना है कि हरिहर मंदिर की लड़ाई बहुत पुरानी है। हमारे पास जो साक्ष्य हैं उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है। इस क्षेत्र के सभी लोग, यहां तक कि मुसलमान भी जानते हैं कि यह मस्जिद नहीं, हरिहर मंदिर है।
बाबर ने अयोध्या और सम्भल के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। बाबरनामा में हरिहर मंदिर का उल्लेख है। आइने-अकबरी में भी हरिहर मंदिर का विवरण प्राप्त हुआ है। यह पूरा स्थल हिन्दू समाज के लिए पूज्य है। यह लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी जब तक हरिहर मंदिर हिंदुओं को नहीं मिल जाता। यहां पर हरिहर मंदिर है और हमेशा रहेगा। हमें इसके लिए चाहे कितने ही बरस कानूनी लड़ाई लड़नी पड़े, हम तैयार हैं। इतिहास में मुस्लिम आक्रांताओं ने हमारे धार्मिक स्थलों पर कब्जे किए हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। हम किसी और की संपत्ति पर कब्जा नहीं कर रहे लेकिन हमारी आस्था के केंद्र हमें सौंपे जाने चाहिए।
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