कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में मिले अपने फायदे को बहुत ही जल्द खोती दिख रही हैं. कांग्रेस पार्टी लगातार दो लोकसभा चुनावों 2014 और 2019 में अपने खराब प्रदर्शन के कारण विपक्ष के नेता का पद भी नहीं प्राप्त करने वाली कांग्रेस पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीट जीत कर विपक्ष का नेता प्राप्त करने वाली कांग्रेस पार्टी अपने प्रदर्शन से काफी संतुष्ट थी.
कांग्रेस पार्टी की इस खुशी का मुख्य कारण पार्टी की जीत से अधिक गांधी परिवार के राजनीतिक भविष्य बचने को लेकर था। इस चुनाव में अगर कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन कमजोर होता या 2019 की तरह राहुल गांधी अपनी सीट हार जाते, तो गांधी परिवार के राजनीतिक भविष्य पर ही ग्रहण लग जाती। कांग्रेस पार्टी के नेतागण इस बात से अधिक खुश थे कि राहुल गांधी के दोनों सीटों से जीतने के कारण अब गांधी परिवार के एक नए सदस्य प्रियंका गांधी की अब राजनीतिक पारी शुरू हो जाएगी।
मगर लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के लिए पहले की तरह बुरे दिनों की शुरुआत हो गई। लोकसभा चुनाव के अनुसार तयशुदा क्रम के अनुसार हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव आहूत था।
लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के आधार पर कांग्रेस पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी हरियाणा में पिछले दो बार के बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण जनता उनको सत्ता में आने का मौका देगी। मगर कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन अपने लिए बनाए गए मानदंड के उलट हुआ और कांग्रेस पार्टी का सीट बढ़ने के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी अपने लिए बनाए गए मानदंड से पीछे रहकर जनता की नजरों में चुनाव हार गई।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को अपने आत्मविश्वास का नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस पार्टी जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव में अपने सुधरे प्रदर्शन के आधार पर अपने सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस से अपनी ताकत से लगभग दुगुनी सीटें लीं और इतने से कांग्रेस पार्टी का मन नहीं भरा तो फिर उसने अपने सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ भी सात सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया। कांग्रेस पार्टी का यह कदम उसके लिए ही घातक सिद्ध हुआ और उन सात सीटों में किसी भी सीट पर सीधे मुकाबले में पार्टी आने में नाकाम रही। जबकि नेका उनमें चार सीटें जीती। इन सात सीटों का परिणाम स्पष्ट बताता है कि कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगियों से वैसी सीटें भी ले लेती है जिस पर उनका कमजोर दावा होता है।
झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर वाली नीति को अपनाया और अपने सहयोगी दलों से आदतन लगभग दुगुनी सीटें आवंटित करवाईं। इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगियों के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के तर्ज पर उम्मीदवार भी उतार दिए। यहां भी कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगियों की अपेक्षा प्रदर्शन में काफी पीछे रह गई।
इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी के जख्म पर सबसे बड़ा घाव तब लगा जब कांग्रेस पार्टी का महाराष्ट्र के नांदेड़ लोकसभा की सीट पर अपने सांसद के निधन के कारण खाली हुई सीट पर महज 1,457 वोटों से ही जीत दर्ज कर अपनी इज्जत बचा सकी। तब जबकि इस सीट पर लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी 59,442 वोटों से जीत दर्ज किया था।
इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन से अधिक उसके व्यवहार से नेशनल कांफ्रेंस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद और अन्य दल सदमे में हैं। जम्मू-कश्मीर में नेका ने कांग्रेस से संबंध को काफी कम कर दिया है। झामुमो ने भी कांग्रेस पार्टी के उपमुख्यमंत्री के पद की मांग को ठुकरा दिया है। आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी के अन्य सहयोगी दलों जैसे समाजवादी पार्टी और अन्य से भी दूरी बननी शुरू हो गई है।
अतएव लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली बढ़त अब उसके सहयोगियों के साथ बुरे व्यवहार के कारण दूर होती जा रही है और कांग्रेस पार्टी फिर अपने पुराने बुरे दिनों की ओर खुद को लौटता पा रही है।
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