हिंदुओं में कश्मीर के भदरवा स्थित ‘गुप्त गंगा’ में स्नान का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि गुप्त गंगा में अमावस्या के दिन स्नान करने से समस्त पाप धुल जाते हैं। ऐसी ही एक ‘गुप्त गंगा’ कभी रावलपिंडी में बहती थी, जो हिंदुओं के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र था।
विभाजन के बाद यह धार्मिक महत्व वाला प्राकृतिक झरना ‘लई पुल’ के गंदे नाले में तब्दील हो गया। इसके पास मदनपुरा और आनंदपुरा नाम से हिंदुओं की कॉलोनियां थीं। इन कॉलोनियों की पुरानी भव्य इमारतों को अब ढहाया जा रहा है। उनकी जगह नई इमारतें खड़ी की जा रही हैं। यहां पर कुछ बचे—खुचे जर्जर भवनों और मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं।
मदनपुरा एवं आनंदपुरा के हिंदुओं के बच्चों के खेलने के लिए यहां एक बगीचा था, जिसकी निशानियां अभी भी हैं। अब इस जगह घरों में पानी सप्लाई करने के लिए टंकी खड़ी कर दी गई है। यहां सिखों की भी मदनपुरा और आनंदपुरा से सटी दो कालोनियां करतारपुर और लाजपत नगर थीं, जिनकी स्थिति आज कमोबेश दोनों हिंदू कॉलोनियों जैसी ही है। इनकी बसावट के बारे में इलाके के लोग बताते हैं कि इसे दो हिंदू भाइयों मदन लाल और आनंद लाल ने बसाया था। मदन लाल ने पहले मदनपुरा बसाया, बाद में आनंदपुरा, आनंद लाल ने बसाया।
मदनपुरा में एक प्रवेश द्वार अब भी मौजूद है, जिस पर हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में कॉलोनी के बोर्ड लगे हुए हैं। इस गेट से सीधी सड़क मंदिर तक जाती है। मंदिर के पिछले हिस्से में ही ‘गुप्त गंगा’ थी, जिससे अब लई का गंदा नाला कहा जाता है। अभी मंदिर के जर्जर भवन में तीन हिंदू परिवार रहते हैं और मंदिर की देखरेख करते हैं।
बंटवारे से पहले मदनपुरा, आनंदपुरा, करतारपुरा और लाजपत नगर में हिंदू और थोड़ी संख्या में सिख रहते थे। भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को ये इमारतें रहने के लिए आवंटित कर दी गई लेकिन उनकी हैसियत कम होने के कारण वे इस बहुमूल्य धरोहर को संभाल नहीं पाए। एक स्थानीय पत्रकार के अनुसार, कई लोग तो भवन की देख-रेख में असफल रहने के बाद इसे छोड़ कर किसी अन्य इलाके में छोटे मकानों में रहने लगे। ग्वाल मंडी का नाम भी अब बदल कर दरियाबाद और इसके एक हिस्से का नाम नई ग्वाल मंडी कर दिया गया है।
नवाज शरीफ की पार्टी के इलाके के एक कार्यकर्ता शाहिद बताते हैं, ‘‘मदनपुरा और आनंदपुरा में रहने वालों हिंदू परिवारों ने अपनी सहूलियत के लिए ‘गुप्त गंगा’ के एक हिस्से में स्नान के लिए घाट और दूसरे हिस्से पर धोबी घाट बनवा रखा था। बाद में गुप्त गंगा में रावलपिंडी के 22 सीवरों का पानी डाला जाने लगा तो यहां के धोबी पलायन कर गए। हिंदुओं के यहां से जाने के बाद स्नान के लिए घाट भी खत्म कर दिया गया। मदनपुरा और आनंदपुरा के दो श्मशान घाट भी थे, जिन्हें खत्म कर उन पर इमारतें खड़ी कर दी गई हैं।’’
ग्वाल मंडी में 1817 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित लोहे का रेलवे पुल और अंडरपास आज भी मौजूद है। इस अंडरपास के करीब ही एक आलीशान चर्च हुआ करता था, आस-पास ईसाइयों की घनी आबादी थी। इसकी जगह अब एक छोटे चर्च ने ली है, जबकि ईसाइयों की पूरी आबादी उजड़ चुकी है।
इस इलाके में अभी जो दो-चार हिंदू और ईसाई परिवार हैं, वे भी हमेशा कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं। पाकिस्तान के अल्पसंख्यक आयोग के एक आंकड़े के अनुसार, मजहबी कट्टरपंथियों के दबाव में पाकिस्तान में प्रत्येक वर्ष करीब एक हजार ईसाई और हिंदू अपना मूल पंथ त्याग कर इस्लाम कबूल रहे हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं, ‘‘बंटवारे से पहले ग्वाल मंडी, मदनपुरा, आनंदपुरा, करतारपुर और लाजपत नगर का माहौल सौहार्दपूर्ण था। यहां हर साल होली, दीवाली, गुरु पर्व के अलावा ईद और क्रिसमस पार्टी आयोजित की जाती थी।’’
सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर औरंगजेब बेग कहते हैं, ‘‘यहां बरेली से सुरमा बेचने एक व्यापारी आता था। हिंदू व्यापारियों में सुरमा लगाने की प्रथा थी। उनके यहां से जाने के बाद यह प्रथा खत्म हो गई। इलाके में एक ‘आर्य मुहल्ला’ भी हुआ करता था। अब उस मुहल्ले का नाम बदल दिया गया है।’’
पत्रकार जीशान अहमद कहते हैं, ‘‘अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए पाकिस्तान सरकार को कोई ठोस कदम उठाते हुए इन जगहों को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करना चाहिए।’’
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