लोकमंथन में यूरोप के एक देश लिथुआनिया से आए हुए लोग भी पहुंचे थे। लिथुआनिया में ज्यादातर लोग अब ईसाई हो चुके हैं, कुछ ही बचे हैं जो हिंदुओं की तरह अग्नि की उपासना करते हैं। उनकी परंपराएं हिंदुओं जैसी ही हैं।
उन्होंने परंपरिक तरीके से अग्नि की उपासना की। उनके मंत्र संस्कृत की तरह लिथुआनिया में थे, जिनके माध्यम से सूर्य की उपासना की गई। इस समूह में तीन सदस्य लोकमंथन में हैदराबाद पहुंचे थे। उनका उद्देश्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को साझा करना था।
पाञ्चजन्य से बात करते हुए एलियाह, गेलवाना और या वा डिजपातीता ने अपनी संस्कृति में अग्नि अनुष्ठान के महत्व को समझाया। उन्होंने बताया, ‘अग्नि अनुष्ठान हमारे रीति-रिवाजों के केंद्र में है। चाहे वह विवाह हो, शिशु आशीर्वाद समारोह हो, या हमारे कैलेंडर त्योहारों में से कोई हो, अग्नि की मुख्य भूमिका निभाती है।
हम अग्नि जलाते हैं, उसे भेंट चढ़ाते हैं, और इन अवसरों पर अपने देवताओं और देवी-देवताओं का सम्मान करते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे हिंदू धर्म में हवन किया जाता है। प्राचीन काल में, जब हम अलग नहीं हुए थे, तो हम पड़ोसी थे। लिथुआनियाई और संस्कृत में कई शब्द काफी समान हैं।
उदाहरण के तौर पर लिथुआनियाई में अग्नि के लिए इस्तेमाल ‘उगिस’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जो संस्कृत के ‘अग्नि’ से मिलता-जुलता है। ऐसे अनेकों शब्द लिथुआनियाई भाषा में हैं। लिथुआनियाई भाषा संस्कृत के काफी करीब है।
लोकमंथन के लोगो का अर्थ
- वृत्त: ब्रह्मांड और सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतीक है।
- दो हंस: यह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो जब मुक्त होता है, तो दो हथेलियों के रूप में शक्ति और कर्म का प्रदर्शन करता है। यह ज्ञान और अभ्यास को दर्शाता है।
- अखंडमंडलाकार: यह धर्म की मूल भावना यानी आपसी सहयोग और परस्पर जुड़े होने की भावना को प्रकट करता है।
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