दरअसल 2007 में गठित हुआ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट खुद को दुनिया के छह महाद्वीपों में फैला जर्नलिस्ट्स का नेटवर्क बताता है। उसके अनुसार ये जर्नलिस्ट अपराध तथा भ्रष्टाचार की खबरें देने में माहिर हैं। प्रोजेक्ट का यही भी कहना है कि वह एक हर लिहाज से स्वतंत्र संस्थान है। लेकिन असल में ऐसा है नहीं।
अमेरिकी एजेंसी से सिर्फ इस बात के लिए पैसा उगाहने वाला ओसीसीआरपी यानी ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ही भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति गौतम अडानी के विरुद्ध बदनामी का अभियान छेड़े है कि कैसे भी भारत पर कीचड़ उछालो। यह दावा किया है फ्रांस के एक अखबार ने, जिसने इस विषय में एक विस्तृत रिपोर्ट छापकर उक्त संस्था के चेहरे से नकाब हटाया है।
फ्रांस के इस अखबार ने इस रिपोर्ट को शीर्षक दिया है—द हिडन लिंक्स बिटवीन ज्वाइंट ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड यूएस गवर्मेंट। रिपोर्ट में बताया गया है कि ओसीसीआरपी अमेरिकी सरकार के प्रभाव में काम करता है। यह भी बताया गया है कि हालांकि ओसीसीआरपी अपने पूरी तरह से स्वतंत्र होने का दावा तो करता है, लेकिन इसके प्रबंधन से जुड़े लोगों को अब अमेरिका की कठपुतली माना जाता है।
अडानी समूह भारत का एक बड़ा उद्योग समूह है। इस पर उंगली उठाने के लिए ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ने अमेरिका से काफी पैसा लिया है। दिलचस्प तथ्य है कि जो अमेरिकी एजेंसियां भारत विरोधी हरकतें करती हैं उन्हीं से उसे पैसा मिलता है। फ्रांस के अखबार के इस रहस्योद्घाटन ने लोगों का ध्यान खींचा है।
दरअसल 2007 में गठित हुआ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट खुद को दुनिया के छह महाद्वीपों में फैला जर्नलिस्ट्स का नेटवर्क बताता है। उसके अनुसार ये जर्नलिस्ट अपराध तथा भ्रष्टाचार की खबरें देने में माहिर हैं। प्रोजेक्ट का यही भी कहना है कि वह एक हर लिहाज से स्वतंत्र संस्थान है। लेकिन असल में ऐसा है नहीं। फ्रांस के इस अखबार ‘मीडियापार्ट’ का कहना है कि यह संस्थान अमेरिकी विदेश विभाग तथा यूएसएड एजेंसी से पैसा पता है और उसके दम पर भारत को बेवजह अपमानित करके सनसनी फैलाता है।
अपने 2 दिसम्बर, 2024 के अंक में इस अखबार मीडियापार्ट ने यह रिपोर्ट छापी थी जिसका शीर्षक था—द हिडन लिंक्स बिटवीन ज्वाइंट आफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड यूएस गवर्मेंट’। मीडियापार्ट के अनुसार, जांच से पता चला है कि यह संस्थान अमेरिका के इशारे पर काम करता है। वजह साफ है। ये बना ही अमेरिका के दिए पैसे से है।
अखबार आगे बताता है कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट का आधे से ज्यादा खर्च अमेरिका की कई एजेंसियां मिलकर देती हैं। बदले में ये एजेंसियां इस संस्थान में अपने चहीतों को बैठाती हैं, जैसे ड्रयू सुलिवन। मीडियापार्ट के हिसाब से यह संस्थान मानता है कि उसे अमेरिका की एजेंसियां पैसा देती हैं, लेकिन कितना पैसा? इस बात पर वह मुंह सिल लेता है।
यूएसएड के यूरोप व यूरेशिया के वरिष्ठ अधिकारी माइक हेनिंग कहा था कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट यूएसएड की सबसे बड़ी कामयाबियों में से एक है। लेकिन मजेदार बात है कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के रिकार्ड में अब यह बात ही दर्ज नहीं है कि उसके बनने में अमेरिका की सरकार का कितना हाथ था।
ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के बनने के बाद से अभी तक अमेरिका की सरकार से उसे कम से कम 47 मिलियन डॉलर, यूरोपीय देशों (ब्रिटेन, डेनमार्क, स्वीडन, स्लोवाकिया, फ्रांस व स्विट्जरलैंड) से 14 मिलियन डॉलर और यूरोपीय संघ 1.1 मिलियन डॉलर की राशि दी जा चुकी है। लेकिन यह पैसा संस्थान की वेबसाइट पर दिखाया नहीं गया है।
फ्रांस के इस अखबार का यह भी दावा है कि अमेरिका की सरकार ने ही वेनेजुएला के भ्रष्टाचार को सामने लाने के लिए ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के खाते में 173,324 डॉलर पहुंचाए थे। बता दें कि वेनेजुएला पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हुए हैं। अखबार का सवाल है कि क्या पत्रकारों के किसी संगठन की ओर से अमेरिका के पैसे पर ऐसी कार्रवाई करना नैतिक रूप से सही है?
हालांकि अडानी उद्योग तथा मॉरिशस के फंड ‘360 वन’ ने ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट द्वारा लगाए आरोपों को बेवजह का बताया है। साथ ही, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि सेबी की जांच पर उंगली उठाने के लिए ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की रिपोर्ट का संदर्भ नहीं लिया जा सकता। अदालत ने कहा कि किसी भी संगठन की रिपोर्ट को तब तक सबूत नहीं माना जा सकता जब तक कि वह सत्य न साबित हो जाए।
उल्लेखनीय है कि फ्रांस के अखबार मीडियापार्ट की यह रिपोर्ट ऐसे वक्त पर आई है जब भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पर अमेरिका कथित रिश्वत देने का आरोप लगा रहा है।
ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट को पैसा देने वाला संगठन यूएसएड कई देशों की सरकारों में फेरबदल करा चुका है। पिछले दिनों बांग्लादेश भी जो हुआ उसमें भी इसका कहीं न कहीं हाथ होने का संदेह है। बताते हैं, यूएसएड ने बांग्लादेश की आईआरआई नाम की एक एजेंसी को हसीना की सरकार को हिलाने के लिए पैसा दिया था। एक वर्ग मानता है कि अमेरिका तो 2019 से इस हरकत में लगा था।
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