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यह जीत है बड़ी

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणामों का एक सीधा निष्कर्ष है कि दोनों राज्यों में ‘प्रो-इनकम्बेंसी’ मतदान हुए। इनमें महिलाओं और समाज के दूसरे वर्गों की भी भूमिका रही, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है

by प्रमोद जोशी
Dec 2, 2024, 10:00 pm IST
in विश्लेषण, झारखण्‍ड, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में जीत की खुशी मनाते भाजपा कार्यकर्ता

महाराष्ट्र में जीत की खुशी मनाते भाजपा कार्यकर्ता

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महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणामों का एक सीधा निष्कर्ष है कि दोनों राज्यों में ‘प्रो-इनकम्बेंसी’ मतदान हुए। इनमें महिलाओं और समाज के दूसरे वर्गों की भी भूमिका रही, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। हालांकि, भाजपा झारखंड में सत्ता हासिल करने में सफल नहीं रही, पर 2019 के अपने वोट शेयर को बरकरार रखते हुए अपना दबदबा बनाए रखा है।

उधर, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने जातिगत दरारों पर ज्यादा भरोसा किया और देवेंद्र फडणवीस पर बार-बार पेशवा कह कर हमला किया और जाति से जुड़े दूसरे आरोप भी लगाए। लेकिन महायुति ने एमवीए की इस रणनीति को सफलता के साथ पराजित कर दिया। कांग्रेस ने मुसलमान, किसान और दलित समीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जो जमीन पर पूरी तरह से विफल रहा। चुनाव के आंकड़े बता रहे हैं कि महायुति को सभी समाज के वर्गों (ओबीसी, एससी, एसटी, किसान, महिलाओं और युवाओं) का भारी समर्थन मिला।

भारत के चुनावी इतिहास में यह अभूतपूर्व परिघटना है। महायुति ने एमवीए के मंसूबों पर पानी फेरते हुए लोकसभा चुनाव का जबर्दस्त बदला ले लिया। ऐसा कोई अन्य उदाहरण नहीं है, जब एक राष्ट्रीय पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में मिली हार को विधानसभा चुनाव में पलट दिया हो। उस चुनाव में वोट शेयर एक प्रतिशत घटा था और अब 14 प्रतिशत की बढ़त है। महाराष्ट्र में ऐसा कैसे हुआ? इस सवाल के कई जवाब हैं। इसमें मोटे तौर पर एमवीए के नेताओं की आत्म-संतुष्टि, अदूरदर्शिता और आपसी टांग-खिंचाई है। दूसरी तरफ महायुति ने लोकसभा चुनाव में सबक सीखा और तेजी से काम करना शुरू किया।

महायुति के प्रत्याशियों ने 76 प्रतिशत के अभूतपूर्व स्ट्राइक रेट से विजय हासिल की है, जबकि एमवीए के प्रत्याशियों का स्ट्राइक रेट 15.6 प्रतिशत रहा। इन परिणामों के बाद कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टी होने की वजह से अपने अस्तित्व को बचा लेगी, लेकिन शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सामने अब अस्तित्व और पहचान का संकट पैदा हो जाएगा।

महायुति ने 235 सीटें और 49.6 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर असाधारण जीत दर्ज की, वहीं एमवीए 35.3 प्रतिशत वोट के साथ केवल 49 सीटें जीत सका। महायुति को 138 सीटों पर 50 प्रतिशत से वोट मिले, जबकि एमवीए को केवल 16 सीटों पर। भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 पर जीत हासिल की और 26.8 प्रतिशत वोट हासिल किया। दोनों तथ्य महाराष्ट्र में पार्टी के लिए रिकॉर्ड हैं।

भाजपा को 84 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक और 26 सीटों पर 60 प्रतिशत से वोट मिले। सतारा में 80.4 प्रतिशत वोट शेयर रहा, जो इस चुनाव में सबसे अधिक है। महायुति के सभी प्रत्याशियों की जीत का औसत अंतर 40,100 से ज्यादा वोट का है, जो एमवीए के प्रत्याशियों की जीत के औसत अंतर 19,200 के दुगुने से भी ज्यादा है। कुल मिलाकर राज्य में विजय का औसत अंतर 36,230 वोट रहा, जो 2019 में 28,440 और 2014 में 22,810 था। इससे भी साबित होता है कि इस बार मुकाबले काफी एकतरफा रहे।

एमवीए ने उन क्षेत्रों में भी खराब प्रदर्शन किया, जहां उसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद थी। शरद पवार की राकांपा अपने पारंपरिक गढ़ पश्चिम महाराष्ट्र में केवल आठ, जबकि भाजपा 28 और अजित पवार की पार्टी ने 15 सीटें जीत कर बेहतर प्रदर्शन किया। शिंदे की शिवसेना ने नौ सीटें जीतकर शरद पवार की पार्टी को चौथे स्थान पर धकेल दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस दो-दो सीटों पर सिमट गई। इसी तरह, महायुति ने विदर्भ में 77 प्रतिशत के जबरदस्त स्ट्राइक रेट के साथ 48 सीटों पर जीत हासिल की।

भाजपा 38 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि कांग्रेस को मात्र 9 सीटें मिलीं। उत्तर महाराष्ट्र की 35 सीटों में से महायुति को 34, जबकि कांग्रेस को केवल एक सीट मिली। विदर्भ की 62 सीटों में से 36 पर ओबीसी का दबदबा है, जहां कांग्रेस से सीधा मुकाबला था।

शिवसेना के गढ़ कोंकण में शिंदे की पार्टी को 16 सीटें और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को केवल एक सीट मिली। यहां से यह बात भी साबित हुई कि शिवसेना के भीतर जमीनी स्तर पर ठाकरे परिवार का असर खत्म हो रहा है। मुंबई एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां शिवसेना (यूबीटी) को 10 सीटें मिलीं, जबकि शिंदे की शिवसेना को 6 सीटें। भाजपा यहां भी 15 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

शिंदे की शिवसेना ने शिवसेना (यूबीटी) से सीधे मुकाबलों में 36 पर जीत हासिल की, जबकि अजित पवार की राकांपा ने 28 सीधे मुकाबलों में शरद पवार की राकांपा से बेहतर प्रदर्शन किया। शरद पवार की पार्टी को केवल 7 मुकाबलों में जीती। कांग्रेस और भाजपा के बीच 75 सीटों पर सीधा मुकाबला था, जिसमें कांग्रेस को सिर्फ 10 पर जीत मिली। 6 सीटों पर तो कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही, जबकि भाजपा ने 63 सीटें जीत दबदबा बनाया।

झारखंड : आया अजब नतीजा

झारखंड में इस बार 12 महिला विधायक चुनी गई हैं, जिनमें 8 इंडी गठबंधन (कांग्रेस की 5 और झामुमो की 3) और चार भाजपा की हैं। राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच 6 माह में महिला मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पुरुष मतदाताओं की संख्या में जहां 17,777 बढ़ी, वहीं मतदाता सूची में लगभग 2.5 लाख महिलाएं जुड़ीं। मतदान में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। राज्य में 91.16 लाख महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुषों की संख्या इससे लगभग 6 लाख कम रही। यानी कि 65 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 70.46 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला।

Topics: Devendra Fadnavisदेवेंद्र फडणवीसपाञ्चजन्य विशेषमहायुतिMahayutiमहा विकास अघाड़ीMaha Vikas Aghadiमहाराष्ट्र और झारखंडMaharashtra and Jharkhand
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