लोकमंथन के द्वारा सभी वर्गों को साथ लेकर संस्कृति के बारे में जन जन तक एक भाव पहुंचाने की व्यवस्था कर इससे परिचित कराने का निरंतर प्रयत्न हो रहा है।
इस तरह का प्रयत्न हमारे देश में कोई नई बात नहीं है। वनवासी, नगरवासी, ग्रामवासी हम सभी एक हैं, यही सोचकर हमें चलना चाहिए। आदिशंकराचार्य जी ने अपने चार शिष्यों के साथ पूरे भारतवर्ष में शृंगेरी, द्वारिका, बद्रीनाथ के जोशी मठ एवं पुरी में चार मठ स्थापित किए।
इसके अलावा जहां जहां भी आदिशंकराचार्य गये, वहां पर मठ की स्थापना की जिसमें कांची मठ भी एक है। इस मठ में 100 वर्ष तक धर्माचार्य थे जिन्होंने दुनिया की महान विभूतियों के उद्बोधनों का संग्रह किया। उसमें कांची के परमाचार्य जी का भी लेख है।
मैं अभी हाल ही में मैक्सिको गयी थी। वहां पर सरकार के द्वारा बहुत बड़ा परमाचार्य जी के उद्बोधनों का संग्रहालय बना हुआ है। रोमा जनजाति, जो यूरोप के विभिन्न देशों में है, उनके रहने का स्थान आज भी एक जगह नहीं है।
वे इधर —उधर घूमते हुए जीवन यापन करते हैं। उनकी प्राचीन सभ्यता आज भी उनके रहन सहन, बोलचाल में बची हुई है। भारत में वनवासी हमेशा साथ रहे हैं और साथ रहेंगे।
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