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‘सामाजिक—परिवर्तन का पहला उपक्रम है कुटुंब’

कुटुंब एक संयोग से बना जमावड़ा न होकर रिश्तों की महक से भरा समन्वय का भाव होता है। इसमें खून का रिश्ता होता है।

by WEB DESK
Dec 1, 2024, 12:14 pm IST
in संघ, कर्नाटक
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हमारे यहां कुटुंब एक संयोग से बना जमावड़ा न होकर रिश्तों की महक से भरा समन्वय का भाव होता है। इसमें खून का रिश्ता होता है। यह कुटुंब ही है जिसमें परिवार में सब सदस्यों को सबक देने की व्यवस्था रहती है। पक्षु—पक्षियों के बच्चे बड़े होने पर अलग चले जाते हैं। मनुष्यों में ऐसा नहीं है। हमारे यहां कुटुम्ब में बड़े होने पर भी सब साथ रहते हैं।

कुटुंब सामाजिकता का बोध कराता है। अपनापन सिखाता है। कुटुंब एक प्रकार का प्रशिक्षण का उपकरण है। कुटुंब से आगे परिसर में जो भी है वह भी परिवार में शामिल रहता है। जैसे, घर के द्वार पर कोई कुछ मांगने आता है तो उसे भी खाली हाथ नहीं लौटाया जाता। इससे घर का बच्चा सीखता है कि ये परिवार के बाहर का है तो भी कुछ मांग रहा है, तो देना है। कुटुंब समाज की सामाजिक इकाई है।

यह हमारे देश में परंपरा से आर्थिक इकाई है। स्वयं से कुटुंब, कुटुुंब से परिवार, परिवार से गांव, गांव से पूरा समाज और समाज से मानवता, मानवता से सारी विश्व सृष्टि सहित। जिन संबंधों से हमें इसका भान होता है उनका ज्ञान कुटुंब में मिलता है। इस ज्ञान को हमें नई पीढ़ी को देना चाहिए। हमारी नई पीढ़ी भारत की होनी चाहिए। आधुनिक रहे, पर दकियानुसी न रहे, पश्चिमकृत न हो। हम भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे, हम मूल्य भी देंगे संपत्ति भी देंगे।

हम विज्ञान भी लाएंगे और अंदर का असली ज्ञान भी प्राप्त करेंगे। यही कुटुंब का कर्तव्य है। समाज की बीमारी का इलाज भी कुटुंब से ही होगा। अत: समाज में परिवर्तन लाने वाले पांच उपक्रमों में सबसे पहला है कुटुंब। बाकी के चार उपक्रम हैं समाजिक समरसता, स्वदेशी, पर्यावरण और नागरिक अनुशासन।

Topics: कुटुंब एक संयोगकुटुंब सामाजिकताविश्व सृष्टिसमाज से मानवतामानवता से सारीFamily is a coincidencefamily is socialityworld is creationhumanity is from societyeverything is from humanityपाञ्चजन्य विशेष
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