भारत विद्वानों और वीरों की धरा है। इस धरा पर पुरुषों के साथ-साथ ही एक से बढ़कर एक विलक्षण प्रतिभा संपन्न महिलाओं ने भी जन्म लिया है जो जीवन में आगे चलकर विदुषियों और वीरांगनाओं के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इन नारियों ने अपनी मेधा और प्रज्ञा तथा साहस और सामर्थ्य से भारत के इतिहास को स्वर्णिम बनाया और अमर हो गईं। इन्हीं नारियों में से एक नारी को हम अहिल्याबाई होलकर के नाम से जानते हैं जिन्हें जनसामान्य के बीच लोकमाता के रूप में स्मरण किया जाता है।
अहिल्याबाई होलकर का नाम भारत के इतिहास में एक अत्यंत प्रेरणादायी शासिका, एक मेधा संपन्न विदुषी और एक जन समर्पित लोक सेविका के रूप में अंकित है। ऐसे एक अद्वितीय ऐतिहासिक चरित्र लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर लोकमाता अहिल्याबाई होलकर अध्यन केंद्र दिल्ली के द्वारा पिछले दिनों दो पुस्तकों का लेखन और संपादन पूर्ण किया गया।
पहली, ‘लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : एक गौरवशाली यात्रा’ दूसरी, ‘लोकमाता अहिल्याबाई होलकर एक विस्मृत युगदृष्टा रानी’ नामक इन दो पुस्तकों ने हम सब का ध्यान भारत के गौरवशाली इतिहास की ओर पुन: आकृष्ट किया। जहां एक ओर पहली पुस्तक लोकमाता के जीवन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करती है और इनके जीवन यात्रा के अनेक अनछुये पहलुओं की जानकारी उपलब्ध कराती है जैसे लोकमाता का आरंभिक जीवन, उनका वैवाहिक जीवन और विवाहोपरांत उनका इंदौर तथा महेश्वर में व्यतीत किए गए समय की अनेक रोचकता पूर्ण घटनाओं का अत्यंत मार्मिक विवरण प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक संक्षिप्त किंतु सारगर्भित ढंग से अहिल्याबाई के ‘राजामाता से लोकमाता’ होने की गौरवपूर्ण यात्रा को सुस्पष्टता से प्रकट करती है। यह पुस्तक देश की एक महान विभूति अहिल्याबाई होलकर पर संगठित ढंग से शोध कार्य करने के लिए स्थापित इस अध्यन केंद्र के मौलिक उद्देश्यों और कार्यों पर भी प्रकाश डालती है। इस केंद्र के द्वारा तैयार की गई दूसरी पुस्तक ‘लोकमाता अहिल्याबाई होलकर एक विस्मृत’ युगदृष्टा रानी अत्यंत शोधपूर्ण, तथ्यपूर्ण तथा सारगर्भित है। यह पुस्तक अहिल्याबाई के समग्र जीवन को आलोकित करती है जिसमें अहिल्याबाई के प्रारंभिक जीवन से लेकर उनके द्वारा एक शासिका के रूप में किए गए असंख्य सामाजिक, राजनैतिक सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यों का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है।
इस पुस्तक की विषय-वस्तु का आरंभ भूमिका के उपरांत मराठा साम्राज्य में होलकर राजवंश के संक्षिप्त इतिहास पर प्रकाश डालकर किया गया है। अहिल्याबाई होलकर निश्चित ही अद्वतीय प्रतिभासंपन्न और प्रेरणादायी नेतृत्व की धनी स्वयं में एक अतुलनीय ऐतिहासिक विभूति हैं। स्वयं के निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर, लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर शासन करने वाली एक महान शासिका हैं। उनकी राजव्यवस्था समाज के हर व्यक्ति और वर्ग के विकास और उत्थान पर केंद्रित थी। उनकी न्याय व्यवस्था में सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने का प्रावधान था जिसमें पशुओं-पक्षियों के प्रति भी दया और करुणा का भाव दर्शित होता है। यह पुस्तक देवी के रणकौशल और रणनीतिक कौशल पर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है। जिसमें अनेक संस्मरणों के माध्यम से उनकी बुद्धिमता की प्रवीणता को भी स्पष्ट किया गया है।
अहिल्याबाई अपने भीतर के अनेक गुणों और प्रतिभा के कारण हम सबके हृदय और मानस पर अधिकार करती हैं मगर उनके द्वारा भारतीय सनातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए किए गए प्रयासों ने उन्हें महान विभूति के कोटि में लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने 18वीं सदी में पतनोन्मुख भारत की विराट संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन्होंने भारत के गौरवशाली मंदिरों और मठों का पुनर्निर्माण कराया, इन सांस्कृतिक-धार्मिक स्थलों तक पहुंचने वाले सड़क मार्गों का भी निर्माण करवाया, और इन धार्मिक यात्राओं पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए तीर्थमार्ग पर अन्न क्षेत्रों और यात्री निवासों का भी निर्माण करवाया।
भारत के करोड़ों लोगों की आस्था को पुनर्जीवित करने के लिए और भारत में धर्म की पुनर्स्थापना के लिए किये गए साहस ने हम सबको उनके दैवीय व्यक्तित्व से अवगत कराया। यह पुस्तक देवी के रण कौशल और रणनीतिक कौशल की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है उनकी यह प्रतिभा और प्रवीणता भारतीय नारी की गौरव गाथा को प्रकट करती है जो हर एक नारी की सामर्थ्य और शक्ति की परिचायक है। आज आवश्यकता है कि हम देवी अहिल्या जैसी अनेक विदुषियों और वीरांगनाओं को उनका खोया हुआ गौरव पुन: लौटायें। (लेखक जाकिर हुसैन कॉलेज,दिल्ली में इतिहास के सहायक प्रोफेसरहैं)
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