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दक्षिण की ‘अयोध्या’ में ‘बाबरी’ की घुसपैठ

सबरीमला जाने वाले श्रद्धालुओं को रास्ते में ‘वाबरी मस्जिद’ में जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। संतोष की बात है कि स्थानीय हिंदू समाज इस सेकुलर शरारत का विरोध करने लगा है

by विनोद बंसल
Nov 27, 2024, 09:50 am IST
in विश्लेषण, केरल
सबरीमला के रास्ते में बनी ‘वाबरी मस्जिद’

सबरीमला के रास्ते में बनी ‘वाबरी मस्जिद’

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इन दिनों केरल में पवित्र वार्षिक मंडलम-मकरविलक्कू तीर्थयात्रा चल रही है। यह यात्रा सबरीमला मंदिर में स्थित भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए होती है। 41 दिवसीय इस यात्रा में प्रतिदिन लाखों भक्त शामिल होते हैं। ये भक्त पहाड़ी मार्ग पर कई किलोमीटर पैदल ही चलते हैं। इस कारण इसे बेहद कठिन यात्रा माना जाता है।

यात्रा में शामिल श्रद्धालु पूरी श्रद्धा-विश्वास, त्याग, समर्पण और शुचिता के साथ एक-एक कदम आगे बढ़ाते हैं। कहते हैं कि मार्ग में यदि किसी शव के दर्शन भी हो जाएं तो श्रद्धालु बिना स्नान किए आगे नहीं बढ़ते। ऐसी पवित्र यात्रा को ‘अपवित्र’ करने का पूरा प्रयास हो रहा है। इसमें केरल की वामपंथी सरकार तो शामिल है ही, साथ में जिहादी तत्व भी मिले हुए हैं।

मार्ग में श्रद्धालुओं को शुद्ध भोजन तक नहीं मिलता है। पीने का पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए रास्ते में विश्राम करने तक की सुविधा नहीं है। जबकि इस मंदिर और यात्रा से राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है।
इन सबके बीच कुछ वर्षों से यह झूठा विमर्श खड़ा किया जा रहा है कि, ‘‘भगवान अयप्पा और वाबर (बाबर) घनिष्ठ मित्र रहे हैं। इसलिए वाबर के दर्शन के बिना भगवान अयप्पा का पूजन अधूरा है।’’ इसके लिए यात्रा मार्ग में एक विशाल मस्जिद बन चुकी है और निरंतर इसका विस्तार भी हो रहा है। इसे ‘वाबर मस्जिद’ कहा जाता है। यह मस्जिद जिस जगह पर है, वहां पहले एक छोटी-सी मजार होती थी।

पहले हिंदू श्रद्धालुओं को उस मजार पर जाने के लिए प्रेरित किया गया और अब उन्हें उस मस्जिद में ले जाया जाता है। वहां हिंदू श्रद्धालु जो चढ़ावा चढ़ाते हैं, वह मस्जिद के लिए खर्च होता है। यह भी कह सकते हैं कि उस मस्जिद के निर्माण में हिंदू श्रद्धालुओं का भी पैसा लग रहा है। हैरानी की बात है कि अयप्पा मंदिर का चढ़ावा तो देवासम बोर्ड द्वारा सरकार के पास भेजा जाता है, किंतु ‘वाबरी मस्जिद’ का चढ़ावा इस्लामी कार्यों में लगता है। यही कारण है कि मस्जिद के संचालक हिंदुओं यानी उनकी नजर में ‘काफिरों’ को भी मस्जिद में प्रवेश करने से नहीं रोकते।

अब सवाल है कि ‘वाबर’ कौन है? इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन उद्देश्य क्या है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं है।

हालांकि जैसे-जैसे यह बात फैल रही है कि सबरीमला की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के साथ छल-कपट हो रहा है, उन्हें एक मस्जिद में ले जाया जा रहा है, वैसे-वैसे हिंदू विरोध में आगे आ रहे हैं। उनका कहना है कि हिंदू किसी मस्जिद में क्यों जाएं और वहां इबादत क्यों करें? अब समय ही बताएगा कि यह मामला कैसे और कब सुलझेगा।
(लेखक विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

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