तख्तापलट से कुछ समय पहले बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारतीय उपमहाद्वीप में एक बड़े षड्यंत्र का खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को मिलाकर पूर्वी तिमोर की तरह एक अलग ईसाई देश बनाने की तैयारी चल रही है, जिसका आधार बंगाल की खाड़ी में होगा। हालांकि, उन्होंने न तो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का नाम लिया था और न ही यह बताया था कि इस षड्यंत्र के पीछे कौन है। लेकिन बाद में उनकी पार्टी अवामी लीग के नेताओं ने कहा था कि शेख हसीना का संकेत एक स्वतंत्र ‘जो’ राज्य से था, जिसमें बांग्लादेश (बंदरबन जिला और चटगांव डिवीजन के आसपास के क्षेत्र), म्यांमार और पूर्वोत्तर भारत (मिजोरम और मणिपुर) के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहां कुकी-चिन-मिजो समुदाय के लोग रहते हैं।
षड्यंत्र पर नजर डालें तो पाएंगे कि हाल के वर्षों में कुकी-चिन-मिजो समुदाय ने सामूहिक रूप से खुद को ‘जो’ कहना शुरू किया है। कुकी मणिपुर, बंदरबन व चटगांव के आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि चिन म्यांमार और मिजोरम में। ये सभी क्षेत्र एक-दूसरे से सटे हुए हैं और मिजोरम को छोड़कर, कुकी-चिन आतंकी समूहों के आतंक झेल रहे हैं। चिनलैंड संयुक्त रक्षा समिति, जो चिन नेशनल आर्मी, चिनलैंड डिफेंस फोर्स व चिन नेशनल डिफेंस फोर्स का एक संयुक्त गठजोड़ है, म्यांमार में जुंटा सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर रही है।
उधर, बंदरबन और चटगांव के आसपास के इलाकों में कुकी-चिन नेशनल फ्रंट ने भी हाल के महीनों में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया है। इधर, कुकी नेशनल आर्मी, कुकी नेशनल फ्रंट व कुकी लिबरेशन आर्मी के बैनर तले कुकी उग्रवादी मणिपुर में हत्या, अपहरण व जबरन वसूली कर रहे हैं और ये पूर्वोत्तर राज्य में जारी जातीय संघर्ष में भी शामिल हैं।
रोचक बात यह है कि लगभग पूरा ‘जो’ समूह समान जातीयता का दावा करता है, लेकिन वे हैं ईसाई। ब्रिटिश शासन के दौरान ईसाई मिशनरियों ने लालच देकर कन्वर्जन शुरू किया जो अब तक जारी है। मिजोरम स्थित जो पुनर्मिलन संगठन (जेडआरओ), जिसका प्राथमिक लक्ष्य तीन देशों में जहां ‘जो’ बसे हुए हैं, उनका एकीकरण करना है। एकीकरण की मांग का मिजोरम में सत्तारूढ़ जोरम पीपुल्स मूवमेंट, विपक्षी मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस की राज्य इकाई ने भी समर्थन किया है। पश्चिमी देश अलगाववाद हो हवा दे रहे हैं।
भारत और बांग्लादेश की गुप्तचर एजेंसियों का कहना है कि यह मांग चर्च संगठनों, खासकर बैपटिस्ट चर्च द्वारा की जा रही है, जिसका आधार अमेरिका में है। इन चर्च संगठनों की सीआईए से निकटता है। यानी अमेरिका भारतीय उपमहाद्वीप में एक ईसाई देश बनाने की दीर्घकालिक योजना पर काम कर रहा है।
इस आशंका को आधार प्रदान करता है अमेरिका में 4 सितंबर, 2024 को मिजोरम के मुख्यमंत्री पी.यू. लालदुहोमा का दिया गया भाषण। उन्होंने इंडियानापोलिस में जो भाषण दिया, वह इस प्रकार है- ‘‘बीते कुछ वर्षों में अमेरिका में ‘हमारे समुदाय’ की आबादी काफी बढ़ी है। इंडियापोलिस में ही ‘जो समुदाय’ की आबादी 30,000 से अधिक है। उम्मीद है कि जैसे-जैसे हमारी संख्या बढ़ेगी, हम यह अच्छे से समझ सकेंगे कि एकजुट रहकर हम एक शक्तिशाली जनसांख्किीय शक्ति बन सकते हैं। एक ऐसी शक्ति जिसे राजनीतिक तौर पर या अन्य विषय क्षेत्रों के संबंध में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अमेरिका में ईसाई मत की विभिन्न शाखाओं की बड़ी संख्या से स्पष्ट है कि ईसाई मत के भीतर भी विभिन्न परंपराओं और चर्च की संख्या तेजी से बढ़ रही है। केवल मैरीलैंड में ही 20 अलग-अलग मत या चर्च के अनुयायी हैं। इस मुद्दे से संबंधित मेरी कुछ आशंकाएं भी हैं।
अनुयायियों का सही मार्गदर्शन करके चर्च को एक अखंड, सशक्त और अभेद्य किला बनाने के बजाय हमारे मत का ऐसी शाखा में परिवर्तित होने का खतरा मंडरा रहा है, जो लोगों के बीच फूट और अलगाव का कारण बन सकता है। ईसाई एकता, जो एक विश्वव्यापी आंदोलन का उद्देश्य है, जारी है। यहां तक कि भारत में भी, दक्षिण भारत के विभिन्न चर्च ने मिलकर चर्च आफ साउथ इंडिया की स्थापना की है। इसी तरह, चर्च आफ नॉर्थ इंडिया की स्थापना करने की दिशा में भी प्रयास किया गया, लेकिन दुर्भाग्य से चर्च आफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया का सपना अधूरा रह गया।
मिजोरम में भी विश्वव्यापी ईसाई एकता आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आठ शाखाओं के प्रयासों के परिणामस्वरूप मिजोरम काउंसिल आफ चर्चेज (एमसीसीसी) आज साकार हो चुका है। 27 अक्तूबर, 2024 को मिशन वेंग प्रेस्बिटेरियन चर्च में इसका भव्य उद्घाटन होने वाला है। (मिजोरम की राजधानी आइजोल में इसका उद्घाटन हो चुका है।) अत: अगर संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हमारे समुदाय इसी प्रकार की व्यवस्था स्थापित करते हैं और विभिन्न शाखाओं की अलग-अलग पहचान को बरकरार रखते हुए एकजुट होकर एक गठबंधन बनाते हैं, तो यह एक सकारात्मक कदम होगा।
अलग-अलग सिद्धांतों और मान्यताओं के कारण हम अभी अपने समुदाय के सदस्यों के बीच की खाई को बढ़ते हुए देख रहे हैं, जिसके कारण एकजुट होने के रास्ते में बाधाएं उभर रही हैं। अगर हम अपने व्यक्तिगत समुदायों के सिद्धांतों के बजाय सिर्फ मसीही सिद्धांतों का पालन करने के प्रति समर्पित रहें और उसी में शांति पाने का प्रयास करें तो हमारे बीच अलगाव होगा ही नहीं। हमें अलग-अलग चर्च या पादरी रखने की आवश्यकता नहीं होगी।
संयुक्त राज्य अमेरिका में हमारे समुदायों के लिए बहुत से संघ, समूह और गैर-सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हमारे पास एक समावेशी, सर्वव्यापी संगठन हो? हमारे देश के सीमावर्ती क्षेत्र चिन हिल्स में कई समूह आंदोलन कर रहे हैं। ऐसा भी देखा गया है कि एक ही शहर में दो या तीन सीडीएफ मौजूद हैं और काम कर रहे हैं। हम एक ही जातीय समूह से हैं फिर भी न जाने किस कारण से एक साथ काम नहीं कर पाते। सहयोग की बात तो दूर, कई बार हमने अपने ही भाइयों और बहनों का खून बहाया है, जो बड़े शर्म और अफसोस की बात है। हमें इसका सामना करना होगा और जवाबदेही भी लेनी होगी।
मणिपुर में हमारे लोगों और हमारे बनाए विभिन्न समूहों और संगठनों की स्थिति भी यही है। वे अक्सर परस्पर विरोधी उद्देश्यों के लिए काम करते हैं। हालांकि, मुझे खुशी है कि एकता की दिशा में पहल शुरू हो चुकी है और मैं पूरे विश्वास से आप सबसे यह कहना चाहता हूं कि मैं इन प्रयासों से निकलने वाले परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं। साथ ही, मुझे यह खुशी भी है कि विभिन्न शाखाओं में विभाजित होने के बावजूद 13 अलग-अलग संगठनों ने 23 जून, 2023 को नेटवर्क फॉर यूनिटी एसोसिएशन का गठन किया, जिसने अन्य कार्यों के साथ शरणार्थियों के लिए भी अनेक राहत कार्य किए हैं। आपने दो बार ‘चिन नेशनल डे’ भी मनाया है। एकता की दिशा में उठाए गए आपके कदमों के लिए मैं अपना आभार प्रकट करता हूं। मैं मिजोरम की चिन रिलीफ कमेटी और मिजोरम की म्यांमार रिलीफ कमेटी के सहायता कार्यों की भी सराहना करता हूं। मुझे सुकून है कि आपने हमारे शरणार्थी भाइयों और बहनों के लिए अपने दिल और अपनी जेबें खोल दी हैं।
मुझे बताया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में हमारे दो सबसे बड़े चर्च सीबीसी यूएसए और सीबीए एनए, शांति के राजदूत के रूप में काम करेंगे और मुझे पूरी उम्मीद है कि उनके प्रयास हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर होंगे। मिजोरम में हमारे विस्तारित समुदाय की एकता के लिए जोरो कड़ी मेहनत कर रहा है। सीएमआई फिनलैंड शांति स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है और मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा कि भारत सरकार की सलाह पर हमने उनके साथ काम करने का फैसला किया है। हमने 28 जुलाई 2018 को माया चैपल, मेथोडिस्ट चर्च, तहान में चिन यूनिटी फोरम की स्थापना की जहां, हमारे भाई-बहनों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। फोरम अभी भी कार्यरत है। मैंने इसके कुछ सदस्यों के साथ अपने कार्यालय में पिछले दिनों एक बैठक की थी।
अपने भाषण के अंत की ओर बढ़ते हुए मैं सभी से कहना चाहता हूं कि संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के निमंत्रण को स्वीकार करने के पीछे मेरा मुख्य उद्देश्य था-हम सभी के लिए एकता की राह तलाशना। हम एक हैं और हम विभाजित या अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकते। मैं चाहता हूं कि हमारे अंदर यह दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास हो कि एक दिन ईश्वर, जिसकी कृपा से हमारा राष्ट्र बना है, उसके भाग्य को संवारने के लिए हम एक नेतृत्व के तले एक साथ काम करेंगे। देश सीमाओं में बंधा होता, लेकिन एक सच्चा राष्ट्र सीमाओं से परे होता है। हमें अन्यायपूर्ण तरीके से विभाजित किया गया है, तीन अलग-अलग देशों में तीन अलग-अलग सरकारों के अधीन रहने के लिए मजबूर किया गया, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं कर सकते।’’
मणिपुर में हिंसा के बीच अमेरिका यात्रा के दौरान मिजोरम के मुख्यमंत्री का अलग ईसाई राष्ट्र का आह्वान आग में पेट्रोल डालने जैसा है। इससे साफ है कि भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के ईसाइयों को एकजुट कर एक अलग देश बनाने का उनका आह्वान चर्च संगठनों द्वारा समर्थित संभावित पांथिक और राजनीतिक एजेंडे पर प्रकाश डालता है। यह उन आरोपों से मेल खाता है कि चर्च पूर्वोत्तर के राज्य में ईसाई-बहुसंख्यक समुदायों के बीच उग्रवादी गतिविधियों का समर्थन करने में गुप्त भूमिका निभा रहा है।
मणिपुर में दो समुदायों के बीच विभाजन को और गहरा करने वाला मिजोरम के मुख्यमंत्री का बयान मैतेई समुदाय की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सीधा खतरा है। जिस तरह 6 मैतेई महिलाओं और बच्चों की निर्ममता से हत्या की गई, वह जारी हिंसा में क्रूरता को दर्शाता है। मैतेई समुदाय का कहना है कि आतंकियों द्वारा ऐसी घटनाएं व्यवस्थित जातीय सफाई अभियान का हिस्सा हैं। इन सबके बावजूद मीडिया में इस हिंसा को एक जातीय संघर्ष के रूप में चित्रित किया जाता है। लेकिन इसके पीछे मादक पदार्थों की तस्करी और चर्च के षड्यंत्र भी है, उसे सिरे से गायब कर देता है। इसलिए लोगों का मुख्य समस्या से ध्यान हट जाता है।
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