27 फरवरी, 2002 को गोधरा में इस्लामी जिहादियों ने साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डब्बे में आग लगा कर 58 रामभक्तों को जिंदा जला दिया था। पाञ्चजन्य (10 मार्च, 2002) में उसकी विस्तृत रपट प्रकाशित हुई थी। आंशिक संपादन के साथ उसे यहां पुन: प्रकाशित किया जा रहा है
बर्बर जिहादियों ने 27 फरवरी, 2002 की प्रात: गोधरा में निहत्थे, रामधुन गाते उन राम-भक्तों को जीवित ही आग में झोंक दिया, जो अयोध्या से श्रीराम जप महायज्ञ की पूर्णाहुति में भाग लेकर लौट रहे थे। श्रीराम मंदिर के लिए स्वयं की पूर्णाहुति देने वाले इन राम-भक्तों को जरा-सा भी भान नहीं था कि गोधरा रेलवे स्टेशन के निकट की मुस्लिम बस्ती में उन पर भीषण हमला करने की योजना बन रही है। वहां की स्थितियां बता रही थीं कि हमला पूर्व नियोजित षड्यंत्र था।
इस भीषण अग्निकांड में एक ही डिब्बे में 15 पुरुष, 25 महिलाएं तथा 18 मासूम बच्चों सहित कुल 58 निर्दोष लोगों की जान गई। मुजफ्फरपुर (बिहार) से साबरमती (गुजरात) के लिए चलने वाली 1166 डाउन साबरमती एक्सप्रेस में अयोध्या से लगभग 1,500 राम-भक्त सवार हुए थे। अधिकांश राम-भक्तों का आरक्षण था। एक सप्ताह पूर्व इसी मार्ग से इसी ट्रेन के द्वारा लगभग 2,000 राम-भक्त सपरिवार अयोध्या गए थे।
श्रीराम जप महायज्ञ की पूर्णाहुति में भाग लेकर लगभग 1,500 राम-भक्तों का पहला जत्था वापस आ रहा था। इस गाड़ी का रात्रि 2 बजकर 55 मिनट पर गोधरा पहुंचने का समय नियत था, पर 27 फरवरी को यह गाड़ी अपने निश्चित समय से 5 घंटे देरी से यानि प्रात: 7 बजकर 43 मिनट पर गोधरा पहुंची। यह गाड़ी गोधरा रेलवे स्टेशन पर 5 मिनट ठहरती है। सुबह होने के कारण सामान्य यात्री एवं राम-भक्त चाय इत्यादि के लिए स्टेशन पर उतरे।
उल्लेखनीय है कि रेलवे स्टेशन पर चाय, पान-बीड़ी की दुकान वाले, अखबार बेचने वाले और यहां तक कि सफाई कर्मचारियों में भी 99 प्रतिशत मुस्लिम थे। स्टेशन पर चाय इत्यादि के लिए उतरे राम-भक्तों के साथ मुस्लिम चाय विक्रेताओं ने योजनाबद्ध ढंग से झगड़ा किया, बात गाली-गलौज से हाथापाई तक पहुंच गई।
लोगों ने समझा कि यह यात्रियों और खोमचे वालों का सामान्य झगड़ा है। शायद वे समझ नहीं पाए कि यह एक बड़े षड्यंत्र की शुरुआत है। ठहरने के नियत समय के बाद 7 बजकर 48 मिनट पर जैसे ही रेलगाड़ी ने चलना प्रारंभ किया, रेलगाड़ी रोकने के अभ्यस्त खोमचे वालों ने चेन खींचकर रेलगाड़ी रोक ली। रेलगाड़ी 5 मिनट फिर रुकी रही। इस बीच दंगाई अलग-अलग डिब्बों में घुसकर राम-भक्तों से हाथपाई करते रहे। खोमचे वालों के साथ पास की बस्ती के लोग भी आ मिले थे। उस समय स्टेशन के प्रभारी सैयद ने मामले की गंभीरता को नहीं समझा और न ही रेलवे सुरक्षाबल के जवानों ने ही कोई कार्रवाई की। रेलगाड़ी फिर चला दी गई।
अभी मुश्किल से 500 मीटर चली होगी कि वैक्यूम काट कर उसे फिर से रोक लिया गया। देखते ही देखते 1,500 से 2,000 मजहबी उन्मादियों ने रेलगाड़ी को चारों तरफ से घेरकर पथराव शुरू कर दिया। रेलवे लाइन के पश्चिमी भाग के घरों से भी भीषण पथराव शुरू हो गया। ये आततायी रेलगाड़ी के दोनों ओर दो भागों में बंट गए और लगातार पथराव करते रहे, ताकि डिब्बों से कोई उतर न सके। कुछ ने इंजन के चालक को अपने कब्जे में ले लिया।
दूसरी तरफ कुछ मजहबी उन्मादियों ने रेलवे लाइन के बराबर में बनी मस्जिद से दंगाइयों को निर्देश देना शुरू कर दिया। फिर बर्बर जिहादियों ने रेलगाड़ी के डिब्बों को आग लगा दी। अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थों से सराबोर एस-6 डिब्बा धू-धू कर जल उठा। आग इतनी भीषण थी कि भीतर बैठे यात्रियों को संभलने का मौका ही नहीं मिला। डिब्बे को आग लगाते समय भी इतना ध्यान रखा गया कि डिब्बे के जोड़ों पर पहले आग लगाई गई, ताकि यात्री दूसरे डिब्बे में न भाग सकें। यह सब दो मिनट में हो गया। देखते ही देखते पूरा डिब्बा आग की लपटों से घिर गया। जिहादी 58 यात्रियों को जीवित जला देने में सफल हो गए।
जैसे ही यह खबर फैली कि राम-भक्तों की रेलगाड़ी में आग लगा दी गई है, हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ता बचाव के लिए दौड़ पड़े, पर तब तक डिब्बा पूरी तेजी से आग पकड़ चुका था। आग बुझाने के सारे उपाय विफल हो रहे थे। पानी का भी कोई प्रबंध नहीं था। अब तक सारे जिहादी अपनी बस्ती वाले छोर पर एकत्र हो गए थे और लगातार पथराव कर रहे थे। रेलवे स्टेशन केवल 500 मीटर के फासले पर था, रेलगाड़ी के अंतिम दो-तीन डिब्बे भी प्लेटफार्म पर ही थे, पर रेलवे सुरक्षा बल और राजकीय रेलवे पुलिस के कर्मियों ने यात्रियों को बचाने के लिए न जिहादियों पर गोली चलाई, न ही कोई कार्रवाई की। वे भीड़ के सामने असहाय नजर आ रहे थे। इससे बचाव कार्य में जुटे हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं को भी कार्य करने में कठिनाई हो रही थी। वहां कुछ जिहादी लाउडस्पीकर से दंगाइयों को उकसा रहे थे-‘जला के मार डालो।’
इसी माहौल के बीच हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं ने यात्रियों को बाहर निकालना शुरू किया। दूसरी तरफ से पथराव भी हो रहा था। इसी बीच रेलवे सुरक्षा बल के जवानों ने हवा में गोलियां चलाईं। इससे वे जिहादी थोड़े पीछे हटे, लेकिन कुछ दूरी पर जमे रहे। वे लोग तीन घंटे तक आसपास के घरों की छतों से ‘अल्लाहू अकबर’ के नारे लगाते रहे। कुछ राम-भक्तों ने बताया कि हमलावर 4-5 युवतियों को भी खींचकर ले गए हैं।
जब चुप्पी पर सेकुलर दलों को जयललिता ने लताड़ा
रामभक्तों के बर्बर नरसंहार की तुरंत भर्त्सना नहीं करने पर तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने देश के सभी सेकुलर राजनीतिक दलों के नेताओं की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, ‘‘ये राजनीतिक दल गुजरात में रेल में हुई ऐसी हत्याओं और उस जैसे अन्य जघन्य अपराधों पर भी बहुसंख्यक विरोधी और ‘अल्पसंख्यक’ समर्थक अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आते। यह अत्यंत आश्चर्यजनक और दु:खद है। जब ऐसे जघन्य अपराध ‘अल्पसंख्यकों’ के विरुद्ध किए जाते हैं तो सभी दलों के नेताओं में उनकी आलोचना करने की होड़ लग जाती है। लेकिन बहुसंख्यकों के साथ ऐसी घृणित घटना पर किसी भी बड़े नेता ने आलोचना करते हुए वक्तव्य जारी नहीं किया है। बहुसंख्यकों के विरुद्ध यह नृशंस कृत्य उस समय किया गया, जब देश आतंकवाद और सीमाओं पर तनाव से जूझ रहा है। यह बहुत ही निन्दनीय कार्य है। ऐसी हिंसक घटनाओं की तुरंत भर्त्सना करनी चाहिए, चाहे उसके लिए कोई भी जिम्मेदार हो और कोई भी उससे प्रभावित हुआ हो। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई अपराध यदि ‘अल्पसंख्यकों’ के विरुद्ध किया जाए तो वह अपराध है और यदि वही कृत्य बहुसंख्यक वर्ग के विरुद्ध किया जाए तो अपराध ही नहीं है। संविधान के तहत दिए गए सभी अधिकार केवल ‘अल्पसंख्यकों’ के लिए ही नहीं बने हैं, अपितु बहुसंख्यकों को भी इस देश में शांति से रहने का अधिकार है।’’
पूरी तरह से जल गए डिब्बे एस-6 और एस-5 को छोड़कर बाकी डिब्बों को दोपहर 12 बजकर 40 मिनट पर अमदाबाद के लिए रवाना कर दिया गया। 50 से अधिक घायलों को स्थानीय सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना की सूचना मिलते ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत प्रदेश के अनेक मंत्री घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। राहत और बचाव कार्य शुरू हो गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार डिब्बे के भीतर का दृश्य इतना ह्दय-विदारक था कि चारों तरफ आक्रोश की ज्वाला भड़क उठी।
डिब्बे के भीतर बुरी तरह जले हुए शव एक-दूसरे में इस तरह चिपटे हुए थे कि उनको अलग करना भी कठिन था। जैसे-तैसे शवों को बाहर निकाला गया। देखते ही देखते 58 शवों का ढेर लग गया। इन शवों को विश्व हिंदू परिषद् के प्रदेश महामंत्री जयदीप पटेल की देखरेख में देर रात्रि पांच ट्रकों द्वारा अमदाबाद भेज दिया गया, जहां 28 फरवरी की सायं उनका अंतिम संस्कार किया गया।
जैसे-जैसे इस लोमहर्षक, दर्दनाक घटना की जानकारी फैलनी शुरू हुई, चारों तरफ जनाक्रोश फूट पड़ा। गोधरा में तो सुबह 11.30 बजे ही प्रशासन ने कर्फ्यू की घोषणा कर दी और देखते ही देखते यह आग पूरे गुजरात में फैलती चली गई।
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