ड्रॉपशिपिंग व्यवसाय ने भारत में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से लोकप्रियता हासिल की है। दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों की तो बात ही छोड़ दीजिए, राज्यों की राजधानियों, छोटे शहरों और गांवों तक से चतुर लोग इंटरनेट कनेक्टिविटी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मोें का लाभ उठाकर यह काम कर रहे हैं। ड्रॉपशिपिंग नए जमाने का, वर्चुअल माध्यमों पर आधारित स्मार्ट कारोबार है और पूरी तरह से वैध है।
अगर आप इसकी तुलना पारंपरिक व्यापार से करेंगे तो पाएंगे कि दोनों तरह के कारोबार की अपनी-अपनी विशेषताएं और चुनौतियां हैं। दोनों के अपने-अपने लाभ भी हैं। ड्रॉपशिपिंग की सबसे खास बात यह है कि आप घर बैठे थोड़ा समय लगाकर भी यह कारोबार कर सकते हैं। यह उन लोगों के लिए भी अनुकूल है जो किसी अन्य काम में अपना अधिकांश समय देते हैं या कहीं और नौकरी करते हैं, लेकिन अपने खाली समय का प्रयोग अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए करना चाहते हैं। आइए, पारंपरिक दुकानों और ड्रॉपशिपिंग के बीच का कुछ अंतर समझते हैं।
पारंपरिक खुदरा दुकानों या रिटेल स्टोर में उत्पाद खरीदने (इन्वेंट्री) और उन्हें भंडार में रखने की जरूरत होती है। यह प्रक्रिया बहुत महंगी हो सकती है और कई बार व्यापारियों का बहुत सारा माल बिना बिके रह जाता है। दूसरी तरफ, ड्रॉपशिपिंग में कोई इन्वेंट्री रखने की जरूरत नहीं होती। आप सीधे सप्लायर से उत्पाद खरीदते हैं और ग्राहक के पास भेजते हैं। आपको स्टॉक के लिए पैसे खर्च करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
पारंपरिक रिटेल स्टोर में शुरुआती लागत बहुत अधिक होती है। आपको इन्वेंट्री खरीदनी होती है, दुकान का खर्च उठाना होता है और कर्मचारियों, बिजली, रखरखाव आदि कई अन्य खर्च भी होते हैं। जबकि ड्रॉपशिपिंग में प्रारंभिक लागत बहुत कम होती है। आपको केवल एक वेबसाइट सेटअप करनी होती है और उसे प्रचारित करना होता है। इसी तरह, पारंपरिक रिटेल में आपको माल की सप्लाई और ढुलाई की व्यवस्था करनी पड़ सकती है। इसमें आपका समय और संसाधन लगेंगे।
उधर ड्रॉपशिपिंग में सप्लायर सीधे ग्राहक के पास उत्पाद भेजता है- इस प्रक्रिया में आपकी भूमिका बहुत सीमित होती है। पारंपरिक रिटेल के लिए आपको किसी एक स्थान पर टिककर काम करना होगा जहां आप दुकान लेंगे और कारोबार चलाएंगे। ड्रॉपशिपिंग का काम तो आप कहीं से भी और किसी भी समय कर सकते हैं—एक शहर से दूसरे शहर, घर से, यात्रा करते समय, या यहां तक कि किसी कैफे से भी।
इतना लचीलापन बहुत कम व्यवसायों में देखने को मिलेगा। और भी कई अंतर हैं। उदाहरण के तौर पर, पारंपरिक कारोबार में आपके पास उत्पादों की कितनी रेंज या वैरायटी (विविधता) है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके सप्लायर कौन-से हैं। लेकिन ड्रॉपशिपिंग में आपके पास उपलब्ध उत्पादों की बहुत व्यापक रेंज हो सकती है क्योंकि आप किसी एक शहर, क्षेत्र, राज्य आदि के सप्लायरों तक सीमित नहीं हैं। आप किसी एक तरह के कारोबार तक सीमित रहें, यह भी जरूरी नहीं। अनेक श्रेणियों के उत्पाद भी बेच सकते हैं जिनका एक-दूसरे के साथ कोई संबंध न हो लेकिन वे अच्छा मुनाफा देते हों।
पारंपरिक रिटेल में बिना बिके बच जाने वाले सामान, आग-पानी-दीमक आदि का नुकसान, माल खराब हो जाने, पुराना पड़ जाने, चोरी हो जाने आदि का भी जोखिम होता है और माल की दरों में आने वाले बदलावों का भी। लेकिन ड्रॉपशिपिंग में, आपके पास इनमें से अधिकांश जोखिम नहीं होते। हां, माल की दरों में बदलाव आ जाए तो वह अलग बात है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में वरिष्ठ अधिकारी हैं)
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