मुस्लिम समुदाय के वोटिंग के मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMLB) और कांग्रेस पार्टी और कुछ अन्य दलों का पूर्व मिलीभगत समय के साथ उजागर होता जा रहा हैं। एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी ने मुस्लिम समुदाय से 100% वोट करने की अपील की। इसी तरह की अपील कांग्रेस पार्टी के नेता शंकर सिंह वाघेला और कमलनाथ ने अपने-अपने राज्यों में मुसलमानों से की थी। इन नेताओं ने मुस्लिम समुदाय से 90% या उससे भी अधिक वोट करने की अपील की थी जिससे की वो चुनाव जीत सकें, कई अन्य दलों के नेता भी समय समय पर गाहे-बगाहे ऐसी ही अपील मुस्लिम समुदाय से करते आए हैं। एआईएमपीएलबी की इस अपील से कांग्रेस पार्टी और एआईएमपीएलबी के विचारों में समरूपता देखने को मिल रही है।
अगर हम मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मतदान प्रतिशत पर विचार करें तो देखते हैं कि सज्जाद नोमानी की मुस्लिम समुदाय से अधिक मतदान की अपील करना केवल प्रतीकात्मक ही है। हम लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य सीटों व अन्य सीटों पर भी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की समीक्षा करें तो देखते हैं कि देश भर के किसी भी क्षेत्र में मुस्लिम अधिकतम वोट करते आये हैं। इतना ही नहीं मुस्लिम समुदाय रणनीतिक तरीके से वोट करने के लिए जाना जाता हैं। मुसलमान अपने वोट की कीमत जानते हैं और जब उनका वोट सबसे ज्यादा मायने रखता है तो वोट उनकी प्राथमिकता में शामिल होता है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है रामपुर लोकसभा सीट का उपचुनाव। 2023 में रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। क्योंकि मौजूदा सांसद आजम खान को 27 अक्टूबर 2022 को अयोग्य घोषित कर दिया गया था। क्योंकि रामपुर की अदालत ने 2019 के नफरत भरे भाषण मामले में खान को तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी।
आजम खान ने जब 2019 में लोकसभा चुनाव जीता तो मतदान प्रतिशत 63.19 प्रतिशत था जो उपचुनाव में आधे से भी कम होकर सिर्फ 31.40 प्रतिशत ही रह गई। क्योंकि उप-चुनाव में मतदान प्रतिशत कम था, इसलिए भाजपा उम्मीदवार घनश्याम सिंह लोधी ने उपचुनाव में रामपुर की लोकसभा सीट जीत ली। उपचुनाव में मुसलमानों ने बहुतायत में मतदान नहीं किया क्योंकि वे जानते थे कि सरकार बनाने में उनके मतदान का कोई महत्व नहीं है। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में रामपुर लोकसभा सीट पर मतदान बढ़कर 55.90 प्रतिशत हो गया और फिर से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार ने भाजपा के मौजूदा सांसद घनश्याम सिंह लोधी को हराकर सीट जीत ली। पांच साल के भीतर तीन लोकसभा चुनावों में रामपुर लोकसभा सीट पर मतदान प्रतिशत स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मुस्लिम रणनीतिक मतदान करते हैं और वे स्थिति के अनुसार मतदान करते हैं।
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में असम की धुबरी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग फीसद दर्ज़ किया गया है। 2014, 2019 और 2024 में इस सीट पर वोटिंग प्रतिशत क्रमशः 88.36, 90.66 और 92.08 रहा। इस सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक वोटों के अंतर से कांग्रेस के रकीबुल हुसैन ने तीन बार के लगातार के सांसद बदरुद्दीन अजमल को हराया। अतएव इस सीट को सबसे अधिक मतदान प्रतिशत के साथ ही सबसे अधिक मतों से जिताने का भी का तमगा मिला हुआ है।
अगर हम राज्यवार भी लोकसभा सीटों के वोटिंग प्रतिशत का विश्लेषण करें देखते हैं कि मुस्लिम बाहुल्य इलाके इसमें भी अन्य इलाकों से कोसों आगे रहते हैं। बिहार के मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल क्षेत्र की लोकसभा सीटें राज्य के बाकी हिस्सों पर मतदान प्रतिशतता में भारी पड़ती हैं। सीमांचल क्षेत्र की लोकसभा सीटों में पिछले कई चुनावों में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा होती रही है। बिहार में 2024 में चार मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों पर सबसे अधिक मतदान प्रतिशत देखा गया। बिहार में 2024 में कटिहार, सुपौल, पूर्णिया और किशनगंज सीटों पर घटते क्रम में सबसे अधिक मतदान हुआ।
उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटें सहारनपुर और अमरोहा मतदान प्रतिशत में शीर्ष चार सीटों में शामिल हैं। 2019 में उत्तरप्रदेश में अमरोहा लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग प्रतिशत रहा। कम्युनिस्ट शासन के दिनों से ही पश्चिम बंगाल अपने उच्च मतदान प्रतिशत के लिए जाना जाता रहा है। पश्चिम बंगाल में कोलकाता तथा कुछ अन्य शहरी प्रभुत्व वाली लोकसभा सीटों को छोड़कर अधिकांश सीटों पर 70 प्रतिशत से अधिक मतदान होना एक सामान्य प्रक्रिया है। पश्चिम बंगाल में गैर-मुस्लिम सीटें मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों जैसे मुर्शिदाबाद और मालदा उत्तर और मालदा दक्षिण लोकसभा सीटों को कड़ी टक्कर देती हैं। पश्चिम बंगाल में कुछ सीटों को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम बहुलता ही है।
लक्षद्वीप लोकसभा सीट मुस्लिम बहुलता वाली है। 1967 के लोकसभा चुनाव से इस सीट पर 80 प्रतिशत से अधिक मतदान होने का रिवाज बना हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के लागू होने से पहले भी इस सीट पर उच्च मतदान प्रतिशत देखा जाता था। ईवीएम शुरू होने के बाद मतदान प्रक्रिया आसान और कम समय लेने वाली हो गई, जिससे मतदान प्रक्रिया आसान हो जाती है। ईवीएम में मतदान प्रक्रिया में कम समय लगता है और लोगों को मतदान के लिए मतपत्रों के दिनों की तरह लंबी अवधि तक मतदान कतार में खड़ा नहीं रहना पड़ता है।
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