महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वे तमाम शक्तियां कांग्रेस नीत महा विकास अघाड़ी के समर्थन में एकजुट हो गई हैं, जो सदैव मुस्लिम समुदाय को राष्ट्र की मूलधारा से अलग कर आक्रामक बनाने के लिए सक्रिय रही हैं। अब ये शक्तियां मुस्लिम मतदाताओं से अधिकतम मतदान कराकर भाजपा नेतृत्व वाली महायुति को सत्ता से दूर करने का प्रपंच रच रही हैं। इनमें उलेमा बोर्ड, 180 एनजीओ और कुछ छद्म सेकुलर संगठन शामिल हैं। महाराष्ट्र उलेमा बोर्ड ने तो महा विकास अघाड़ी को समर्थन के लिए बाकायदा 17 सूत्री मांग रखी है, जिसमें गजवा-ए-हिन्द की झलक साफ दिख रही है।
यह सर्वविदित है कि भारत में रह कर कुछ शक्तियों द्वारा भारत के स्वरूप को रूपांतरित करने का कुचक्र शताब्दियों से चल रहा है। यह कुचक्र भारत के विभाजन, लाखों लोगों के नरसंहार और करोड़ों लोगों के बेघर होने के बाद भी नहीं रुका। इसमें तीन प्रकार की शक्तियां कार्यरत हैं। एक, मुस्लिम कट्टरपंथी, जो मुस्लिम समुदाय को राष्ट्र की मूल धारा से अलग और आक्रामक बनाए रखना चाहते हैं। ये प्रयास कभी ‘सर तन से जुदा’ के नारे में सुनाई देते हैं तो कभी गजवा-ए-हिन्द के पोस्टर में।
दूसरी, वह छद्म सेकुलर मानसिकता है जो सनातन परंपराओं पर सतत हमला बोलती रहती है। ये वही लोग हैं, जो कभी सनातन धर्म को डेंगू, मलेरिया जैसा बताने वालों का समर्थन करते हैं तो कभी एक देशद्रोही आतंकवादी को मौत की सजा से बचाने के लिए आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं। तीसरे वे राजनीतिक दल हैं, जिनकी प्राथमिकता में राष्ट्र और संस्कृति नहीं, केवल सत्ता प्राप्त करना है। सत्ता तक पहुंचने के लिए ये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ये तीनों शक्तियां एकजुट दिखाई दे रही हैं। ये खुलेआम भाजपा नीत ‘महायुति’ को सत्ता से दूर करके कांग्रेस गठबंधन ‘महा विकास अघाड़ी’ को महाराष्ट्र की सत्ता में लाने की घोषणा कर रही हैं। इनकी घोषणाएं और इनके प्रयास उलेमा बोर्ड के मांग-पत्र और मुस्लिम बस्तियों में काम करने वाले 180 गैर-सरकारी संगठनों की सक्रियता से स्पष्ट हैं।
‘वोट जिहाद’ में जुटे एनजीओ
सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों का संघर्ष तो स्वाभाविक हो सकता है, लेकिन उलेमा बोर्ड और स्वयंसेवी संगठनों का पूरी शक्ति से ‘महायुति’ को सत्ता से बाहर करने के लिए मुहिम चलाने को सामान्य नहीं माना जा सकता। भाजपा गठबंधन के शासन में भी मुसलमानों को विकास के पर्याप्त अवसर मिले हैं। फिर भी मुस्लिम संगठनों का पूरी शक्ति से भाजपा विरोधी मुहिम चलाना समझ से परे है। ये संगठन केवल भारतीय मुस्लिम मतदाताओं में ही सक्रिय नहीं हैं, बल्कि बांग्लादेशी मुस्लिमों और रोहिग्याओं की घुसपैठ को प्रोत्साहित करके मुस्लिम वोट बढ़ाने में जुटे हैं।
हाल ही में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस की रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि मुंबई में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रभाव बढ़ रहा है। अकेले मुंबई में ही नौ लाख मुस्लिम मतदाता बढ़े हैं। ‘वोट जिहाद’ में जिन गैर सरकारी संगठनों के नाम सामने आए हैं, वे घुसपैठियों को आवश्यक सरकारी दस्तावेज बनवाने में मदद करते हैं। इस्लामी विचारकों के मार्गदर्शन में काम करने वाले एक एनजीओ के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विरुद्ध अधिक से अधिक संख्या में मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में कुल 48 जिले हैं और षड्यंत्रकारी संगठनों की संख्या 180 है। यानी एक जिले में लगभग चार एनजीओ सक्रिय हैं। इनके पास राज्य या जिले ही नहीं, बल्कि ग्रामीण स्तर पर भी मुस्लिम मतदाताओं का ब्योरा है। हालांकि, इन संगठनों का दावा है कि उनकी मंशा किसी दल का समर्थन या विरोध करना नहीं है। वे तो बस मुस्लिम मतदाताओं को मतदान के लिए जागरूक कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो इनका ‘जागरूकता अभियान’ मुस्लिम इलाकों तक ही क्यों सीमित है? दूसरी बात, महाराष्ट्र के अधिकांश क्षेत्रों में वैसे भी मुस्लिम मतदाताओं का मतदान प्रतिशत हिंदुओं से अधिक रहता है। इसलिए इनके दावे पर स्वत: ही प्रश्न चिह्न लग रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि महाराष्ट्र के इस्लामी विचारक खुलेआम भाजपा को हराने की अपील कर रहे हैं। इसमें उलेमा, इमाम, मदरसों के मौलवी अति सक्रिय हैं।
ऐसे ही एक एनजीओ ‘मराठी मुस्लिम सेवा संघ’ के फकीर महमूद ठाकुर के अनुसार, उनके संगठन ने पूरे महाराष्ट्र में 200 से अधिक बैठकें कर मुसलमानों को ‘मतदान का महत्व’ समझाया है। एक अन्य संगठन महाराष्ट्र डेमोक्रेटिक फोरम के समन्वयक शाकिर शेख के अनुसार, उनके संगठन ने 70 बैठकें कर मुस्लिम मतदाताओं को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), समान नागरिक संहिता और वक्फ विधेयक जैसे मुद्दों के बारे में ‘समझाया’ और अधिक से अधिक संख्या में मतदान करने की अपील की। मुस्लिम संगठनों के इन प्रयासों की झलक लोकसभा चुनाव में भी दिखी थी।
गजवा-ए-हिन्द की झलक
दूसरी ओर, विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवारों को जिताने की अपील करने वाले आल इंडिया उलेमा बोर्ड की महाराष्ट्र इकाई का 17 सूत्री मांग-पत्र सामने आया है। इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध, शिक्षा-नौकरियों में मुस्लिमों को 10 प्रतिशत आरक्षण, वक्फ बिल का विरोध, महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड को 1,000 करोड़ रुपये का अनुदान, 2012 से 2024 के दौरान दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार मौलाना सलमान अजहरी सहित सभी मुसलमानों की रिहाई, मस्जिदों के इमामों और मौलवियों को 15,000 रुपये मासिक वेतन, पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवाओं को वरीयता, रामगिरी महाराज और नितेश राणे पर कार्रवाई, सरकारी समितियों में उलेमा बोर्ड के मौलवियों और इमामों को शामिल करने, महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड में 500 कर्मचारियों की भर्ती में मुसलमानों को प्राथमिकता, वक्फ बोर्ड की संपत्ति से अतिक्रमण हटाने, ईश निंदा कानून बनाने, सभी जिलों में मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों की जब्त जमीन का सर्वेक्षण कराने और उलेमा बोर्ड को महाराष्ट्र के सभी 48 जिलों में जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने जैसी मांगें शामिल हैं।
उलेमा बोर्ड की अपील और मांग-पत्र भले ही चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में सामने आए, लेकिन वह बहुत पहले भाजपा गठबंधन को हराने और कांग्रेस गठबंधन को जिताने के लिए सक्रिय हो गया था। इसे विभिन्न एनजीओ की बैठकों में उलेमाओं के दिए भाषणों से समझा जा सकता है, जिनके अनेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। उलेमा बोर्ड ने यह भी स्पष्ट किया है कि महाविकास अघाड़ी के समर्थन में पत्र जारी करने से पहले महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले से चर्चा हो चुकी थी। कहा जा रहा है कि यह बैठक 2023 में मुंबई में हुई थी। नाना पटोले ने भी इससे जुड़े मीडिया के सवालों को टाला है और बैठक के दावे पर चुप्पी साध ली है। इससे पूर्व लोकसभा चुनाव में भी उलेमा बोर्ड ने महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवारों का खुलकर समर्थन किया था। कहीं-कहीं तो स्थानीय स्तर पर फतवे भी जारी किए गए थे।
उलेमा बोर्ड ने 17 मांगों वाला समर्थन-पत्र महाविकास अघाड़ी के तीनों प्रमुख घटकों, राकांपा (एसपी) के मुखिया शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले को भेजा है। इसमें कहा गया है कि यदि राज्य में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनी तो इन 17 मांगों को पूरा किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि मांग-पत्र में कुछ बिंदु ऐसे हैं, जो भारत का रूपांतरण करने के लिए सल्तनत काल में लागू हुए थे, जबकि कुछ मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश काल में लागू कराए थे। सरकारी समितियों में इमामों और उलेमाओं की सहभागिता सल्तनत काल का नियम थी ताकि शासकीय निर्णय इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार हों, जबकि पुलिस में ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम युवाओं की भर्ती का अभियान मुस्लिम लीग ने अंग्रेजी हुकूमत में चलाया था।
षड्यंत्र का लंबा इतिहास
इस संगठन की स्थापना के बहुत पहले से मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र बनाने की तैयारी कर रहे थे। मुस्लिम लीग ने न केवल अपने आर्म्स गार्ड तैयार किए, बल्कि अंग्रेजों से मिलकर पुलिस में मुस्लिम युवाओं की भर्ती के लिए अभियान भी चलाया था। 16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग के ‘डायरेक्ट एक्शन’ और भारत विभाजन के समय बंगाल व पंजाब में तैनात मुस्लिम पुलिस के जवानों की भूमिका का विवरण इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
महाराष्ट्र पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवकों को प्राथमिकता देने की मांग को इसी से समझा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एआईएमआईएम के नेता और असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि ‘15 मिनट के लिए पुलिस हटाकर देखो, फिर बताते हैं कि हम क्या हैं।’ कहने को एआईएमआईएम अलग पार्टी है, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इसने चुनिंदा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं ताकि मुस्लिम वोट न बंटे। यानी उसका जोर इस पर है कि मत विभाजन का लाभ भाजपा को न मिले। इस रणनीति को पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवकों की भर्ती की मांग से भी जोड़ कर देखना चाहिए।
इसी तरह, उलेमा बोर्ड ने सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को 10 प्रतिशत आरक्षण और सरकारी समितियों में इमामों व उलेमाओं को जोड़ने की मांग भी बहुत सोच-समझ कर रखी है। इसके पीछे उसकी योजना भारतीय प्रशासन में मुसलमानों का प्रभाव बढ़ाना है। वहीं रा.स्व.संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी नई नहीं है। संघ की स्थापना के समय से ही अंग्रेज और मुस्लिम लीग संघ विरोधी मुहिम चलाते रहे हैं। इसका प्रमाण ब्रिटिश काल में 1931 के जंगल सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद भारत की रियासतों को लिखे गए पत्रों में और भारत विभाजन के समय मोहम्मद अली जिन्ना के भाषणों में भी मिलता है।
रा.स्व.संघ राष्ट्र और संस्कृति के संरक्षण के लिए काम करता है। केवल यही वह बिंदु है, जहां संघ भारत का रूपांतरण करने का कुचक्र करने वालों के मार्ग में बाधक है। यदि उलेमा बोर्ड या किसी संगठन का उद्देश्य केवल राजनीति या सत्ता परिवर्तन होता, तो वे मजहबी आधार पर सरकारी समितियों में उलेमाओं की सहभागिता, पुलिस में मुसलमानों की भर्ती को प्राथमिकता देने और संघ पर प्रतिबंध की मांग नहीं रखते।
बहरहाल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उलेमाओं की सक्रियता के साथ उलेमा बोर्ड के मांग-पत्र की ‘टाइमिंग’ भी आश्चर्यजनक है। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कांग्रेस सहित महाविकास अघाड़ी में शामिल सभी दलों ने जातिगत जनगणना, ओबीसी, जनजाति और अनुसूचित जाति जैसे मुद्दों को बहुत उभारा। जब उन्हें लगा कि सनातन समाज में जाति आधारित विभाजन रेखाएं गहरी हो गई हैं, तब उलेमा बोर्ड का मांग-पत्र आया। इस ‘टाइम मैनेजमेंट’ के पीछे कोई खतरनाक योजना है या महज एक संयोग, यह समझने में समय लगेगा।
‘वोट जिहाद’ के लिए 125 करोड़ की फंडिंग
भाजपा नेता किरीट सोमैया का कहना है कि ‘वोट जिहाद’ के लिए करोड़ों की फंडिंग हुई है। उन्होंने मुसलमानों को भड़काने और मजहबी मुहिम चलाने के लिए मराठी मुस्लिम सेवा संघ और ऐसे अन्य एनजीओ के खिलाफ मुलुंड (पूर्व) पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई है और चुनाव आयोग से भी शिकायत की है। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ‘वोट जिहाद’ के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग कहां से हुई और कहां दी गई, इसका खुलासा वे जल्द करेंगे। उनके अनुसार, सिराज और मोईन खान नामक व्यक्तियों ने 17 हिंदू किसानों का आधार कार्ड चोरी कर मालेगांव के एक कोआॅपरेटिव बैंक में दो दर्जन बेनामी खाते खोले, जिनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों की 175 बैंक शाखाओं से मात्र चार दिन में 125 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा की गई। फिर अलग-अलग 37 बैंक खातों में हस्तांतरित कर हवाला के जरिये यह राशि महाराष्ट्र और मुंबई के अलग-अलग गांवों में भेजी गई। कुल मिलाकर बैंक खातों में 2,500 लेन-देन हुए। इसके बाद से सिराज और मोईन गायब हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मालेगांव कट्टरपंथी मुसलमानों का अड्डा बन गया है। सोमैया ने अपनी शिकायत में मराठी मुस्लिम सेवा संघ द्वारा मुसलमानों से की जा रही कुछ अपीलों पर भी पुलिस का ध्यान आकृष्ट किया है, जो इस प्रकार हैं-
- क्या आप सैकड़ों बेगुनाह मुसलमानों की लिंचिंग करने वालों को वोट देंगे?
- क्या मुसलमानों से अलीगढ़ छीनने वालों को वोट देंगे?
- क्या मुसलमानों पर समान नागरिक संहिता थोपने वालों को वोट देंगे?
- क्या मदरसों को खत्म करने का इरादा रखने वालों को वोट देंगे?
- क्या वक्फ बोर्ड के खिलाफ वालों को वोट देंगे?
- क्या हम पर सीएए, एनआरसी थोपने वालों को वोट देंगे?
- क्या हमारी बेटियों के सिरों से हिजाब खींचने वालों को वोट देंगे?
- क्या मस्जिद में घुस कर मारने वालों के साथ खड़े होने वाली पार्टियों को वोट देंगे?
- क्या बुलडोजर से मुसलमानों की बस्तियां उजाड़ने वालों को वोट देंगे?
- महा विकास अघाड़ी को अपना कीमती वोट देकर कामयाब बनाइए।
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