चुनावों का मौसम है और झारखंड एवं महाराष्ट्र विधानसभा के साथ ही कई सीटों पर उपचुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में राजनेता नए नारों, वादों और इरादों के साथ मतदाताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। इन दिनों भाजपा के “बटेंगे तो कटेंगे” नारे पर बहस चल रही है। कहा जा रहा है कि यह मुस्लिम विरोधी नारा है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस नारे के कारण डराया जा रहा है और न जाने क्या-क्या इस नारे को लेकर कहा जा रहा है।
इस नारे में किसी समुदाय का नाम नहीं है और न ही किसी के विरोध में यह नारा कहा गया है। मगर कांग्रेस और विपक्षी दल इस नारे को विभाजक और हिंसक नारा कह रहे हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है “United we stand, divided we fall” अर्थात हम एक रहेंगे तो विजयी होंगे और बंटेंगे तो हम विफल होंगे।
इसी प्रकार एकता के संबंध में एक श्लोक प्राप्त होता है-
“ऐक्यं बलं समाजस्य तदभावे स दुर्बल: |
तस्मात ऐक्यं प्रशंसन्ति दॄढं राष्ट्र हितैषिण: ||”
अर्थात एकता समाज का बल होती है, एकताहीन समाज दुर्बल होता है। इसलिए राष्ट्रहित सोचने वाले एकता को प्रोत्साहित करते हैं।
इस भाव को ही यदि आज की देशज भाषा में लाते हैं या फिर कहें कि नेताओं की भाषा में लाते हैं, जिससे वे अपने मतदाताओं से कनेक्ट हो सकें, संवाद कायम रख सकें तो पाएंगे इसका अर्थ यही निकलकर आ रहा है कि “बंटेंगे तो कटेंगे”! या फिर “एक हैं तो सेफ हैं!”
हर काल खंड की अपनी भाषा होती है और एक पुस्तक की भाषा होती है तो वहीं दूसरी सहज संवाद की भाषा होती है। मगर इस मूलभूत एकता की बात पर इतना हंगामा क्यों है? इस नारे में क्या विभाजनकारी बातें हैं यह उन लोगों को समझ नहीं आएंगी, जिनकी राजनीति विभाजनकारी नारों पर ही चलती है।
इन दिनों कांग्रेस में एक नेता हैं कन्हैया कुमार। कन्हैया कुमार को कभी यूथ का नेता कहा जाता था। मगर कन्हैया कुमार किन बातों से या कहें किन नारों से चर्चा में आए थे? कन्हैया कुमार जब जेएनयू में छात्र संघ का अध्यक्ष था, तब किन नारों की वजह से चर्चा में आया था। वे कौन से नारे थे, जिन्होंने आजादी के बाद भारत की आत्मा पर हमले किए थे? अभी तक ये जारी है।
ये नारे थे-
“अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’,
‘तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा”
अब अफजल कौन था, इसके विषय में बहुत विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है। जिन नारों को कांग्रेस अभिव्यक्ति की आजादी कहती है, उन नारों में भारत को काटने की बात की गई थी। वे नारे हैं-
“भारत तेरे टुकड़े होंगे – इंशाअल्लाह-इंशा अल्लाह”
“कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी, जंग रहेगी”
“हम क्या चाहते, आजादी,”
“कश्मीर मांगे आजादी, केरल मांगे आजादी, असम मांगे आजादी!”
ये कुछ नारे थे, जिनमें भारत के कटने की बातें की गई थीं और वह भी कहीं और नहीं बल्कि देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान कहे जाने वाले संस्थान में। वही कन्हैया कुमार इन दिनों कांग्रेस में हैं। अभिव्यक्ति की आजादी केवल यहीं तक नहीं सीमित नहीं रही थी। जब नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में कथित आंदोलन हो रहा था तो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक शायरी को बहुत क्रांतिकारी बताकर गाया जा रहा था, कि ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे!’
मगर यह नज़्म स्वभाव में कैसी है, इसे पूरा पढ़कर ही पता चलता है। इसमें बुत गिराने की बात है तो वहीं “खल्क-ए-खुदा” के राज करने की भी इच्छा है। यह मजहबी हो सकती है, मगर भारत जैसे संविधान का पालन करने वाले देश में, जहां पर हर मत-पंथ और संप्रदाय के लोग रहते हैं, वहाँ पर बुत गिराकर कौन सी क्रांति हो सकती है, यह समझ से परे है। और इस आंदोलन को किसका समर्थन था, यह भी सभी को पता है।
इसी आंदोलन के समय काली माता तक को हिजाब में दिखा दिया गया था। क्या यह सब भड़काऊ और विभाजनकारी नहीं था? “बटेंगे तो कटेंगे” को विभाजनकारी बताने वाले वही लोग हैं, जो लगातार नूपुर शर्मा के खिलाफ लग रहे “सर तन से जुदा” के नारे का विरोध नहीं कर पाए थे।
क्या भारत में संविधान से ऊपर उठकर मजहबी कट्टरता है? ऐसा इसलिए प्रश्न आता है क्योंकि बार-बार किसी न किसी मामले पर किसी के भी खिलाफ “सर तन से जुदा” के नारे लग जाते हैं। भाजपा की पूर्व नेता नूपुर शर्मा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उनके विरुद्ध जो माहौल बनाया गया और जिस प्रकार से नारे लगे, वह दिल दहला देने वाले तो थे ही, साथ ही उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी को पूरी तरह से तहसनहस करने वाले भी थे। आज वे कई सुरक्षा परतों में जीवन बिता रही हैं, मगर अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देकर “सर तन से जुदा” नारे का विरोध न करने वाले लोगों के लिए अभी भी नूपुर शर्मा की आजादी मसला नहीं है।
और न ही मसला है उदयपुर के दर्जी कन्हैया की हत्या, न ही काजल हिन्दुस्तानी को मिली धमकियाँ या फिर ऐसी ही अन्य घटनाएं!” उनके लिए मसला है कि “बटेंगे तो कटेंगे” या “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे” जैसे नारे! जबकि ये पूरी तरह एकता की बात करते हैं! इनकी शैली देशज है, सहज संवाद की शैली है। कनेक्ट होने की शैली है। एक होने से केवल भारत विरोधियों को चिढ़ होनी चाहिए, हर राष्ट्रप्रेमी को यह बात बहुत अच्छी तरह से पता है कि यदि वे छोटे-छोटे मतभेदों में फँसकर आपस में बटेंगे तो बाहरी लोगों के हमलों का शिकार होंगे और निर्बल होंगे और अंतत: कटेंगे।
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