नई दिल्ली । जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों के उत्पीड़न और कथित कन्वर्जन के मुद्दे पर कॉल फॉर जस्टिस द्वारा गठित तथ्यान्वेषण समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की। रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पिछले दो दशकों में कई हिंदू और खासकर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्र और संकाय सदस्य विश्वविद्यालय में भेदभाव, उत्पीड़न और जबरन धर्मांतरण का सामना कर रहे हैं। ”
कॉल फॉर जस्टिस” नामक एनजीओ द्वारा गठित इस समिति में पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिव नारायण ढींगरा, दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव सहित अन्य सदस्यों ने जामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ हुए उत्पीड़न और भेदभाव के मामलों की जांच की और रिपोर्ट को केंद्रीय गृह मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल को भेजने का निर्णय लिया है।
तथ्यान्वेषण समिति ने रिपोर्ट में खुलासा किया कि कई गैर-मुस्लिम शिक्षकों और छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया में उनके साथ हुए भेदभाव और उत्पीड़न की शिकायत की। कई पीड़ितों ने अपनी पहचान गोपनीय रखने का आग्रह किया, क्योंकि उन्हें डर था कि उनकी पहचान उजागर होने से उन्हें और भी अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट में एक उदाहरण दिया गया जिसमें एक सहायक प्रोफेसर ने कहा कि मुस्लिम कर्मचारियों ने उनके शोध कार्य पर तंज कसे और अपमानजनक टिप्पणियाँ की। इसी तरह, एक अन्य प्रोफेसर ने बताया कि उन्हें अन्य मुस्लिम सहकर्मियों के मुकाबले कम सुविधाएं प्रदान की गईं, जबकि उनसे बाद में नियुक्त हुए मुस्लिम प्रोफेसरों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं।
रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कुछ प्रोफेसर कक्षाओं में छात्रों पर दबाव डालते थे कि वे इस्लाम का अनुसरण करें। एक शिक्षक ने बताया कि कक्षा में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यदि छात्र इस्लाम का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें शिक्षा पूर्ण करने में बाधा उत्पन्न होगी। यह भी उल्लेख किया गया कि कई गैर-मुस्लिम छात्र अत्यधिक उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करने के कारण जामिया छोड़ने पर मजबूर हो गए।
तथ्यान्वेषण समिति के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस.एन. ढींगरा ने कहा कि इस जांच में कई लोगों ने गवाही दी, जिसमें 7 प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, और पीएचडी स्कॉलर शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एक फैकल्टी मेंबर को “वंदे मातरम” बजाने के कारण उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, वहीं कुछ अन्य मामलों में विधवा महिला कर्मचारियों को मुस्लिम से विवाह करने का दबाव डाला गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि लव जिहाद जैसे मामले समिति के सामने आए हैं।
यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि कई गैर-मुस्लिम कर्मचारियों और छात्रों को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। समिति ने 27 गवाहों के बयान के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की। समिति ने पाया कि कई गवाहों ने उत्पीड़न की बात स्वीकार की है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव ने बताया कि कई मामलों में पीड़ितों ने अपनी पहचान छिपाने की मांग की, क्योंकि वे उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में और भी प्रताड़ना झेलने से डरते थे।
तथ्यान्वेषण समिति ने इस रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय से इस मामले में उचित कार्रवाई करने की मांग की है। समिति का यह मानना है कि भारत के संविधान के तहत हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है और किसी भी व्यक्ति पर धर्मांतरण का दबाव डालना, उसे मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न देना गंभीर अपराध है।
Shivam Dixit started his career in journalism from 2015. He first worked as Special Correspondent in Mansukh Times (Weekly Newspaper) and later came to Delhi and worked as Digital Editor in Sanchar Times Media Group.
After this he joined the News Network of India (NNI) and held the post of Reporter Coordinator in India's paper here. After successfully launching India's Paper Project, Shivam Dixit started his new innings as Social Media In-charge at News1India, Dainik Hint and Niwan Times.
After working in various media organizations for many years, Shivam Dixit is currently working in the national weekly 'Panchjanya' continuously since 1948.
Talking about his achievements, he managed 500 websites of various newspapers of "India's Papers" as manager in NNI. Talking about the output of this project, this project was registered in Limca Book of Records.
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