ईरान में इस्लामिक कट्टरपंथ है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। राष्ट्रपति मसूद पजेशकियन की अगुवाई में ईरानी पत्रकारों की आवाजों को लगातार दबाया जा रहा है। इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि मसूद पजेशकियन ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिन के कार्यकाल में ही 78 पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स पर कार्रवाई की है।
ईरान इंटरनेशनल ने ‘डिफेंडिंग फ्री फ्लो ऑफ इन्फॉर्मेशन इन ईरान’ (DeFFI) की रिपोर्ट के हवाले से इस बात का दावा किया है। प्रेस फ्रीडम के लिए काम करने वाला ये संगठन एक एनजीओ है। एनजीओ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पजेशकियन प्रशासन के दौरान सूचना तक पहुंच पर प्रतिबंध तेज कर दिए गए हैं। पजेशकियन सरकार के कार्यकाल के पहले 100 दिनों के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के तरीकों का विस्तार किया गया है। इस दरमियान 78 मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई है। नई रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है कि ईरान में भले ही राष्ट्रपति के तौर पर व्यक्ति बदला है, लेकिन फिर भी प्रेस की स्वतंत्रता में किसी भी तरह का कोई सुधार नहीं हुआ।
DeFFI की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पजेशकियन सरकार के कार्यकाल में पत्रकारों के दमन का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि इस प्रशासन के पहले 100 दिन के दौरान जेल बंद पत्रकारों की संख्या 8 से बढ़कर 10 हो गई है। केवल जुलाई से नवंबर के मध्य के वक्त की ही बात करें तो इस दौरान अस्थायी हिरासत बढ़ी है, इसके पीड़ित फ़तेमेह घोलिपुर, फ़रदीन मुस्तफ़ाई, अजदार पिरी और रेज़ा वलीज़ादेह जैसे पत्रकार रहे हैं। इसी समय में सियासी और प्रेस अदालतों ने पत्रकारों के खिलाफ 32 दर्ज मामलों में आपराधिक आरोप तय किए गए हैं। इन सभी को जेल, जुर्माना या शारीरिक दंड दिया गया। इसमें इलाहे मोहम्मदी और निलोफर मोहम्मदी जैसे करीब 7 पत्रकारों को कुल मिलाकर 13 साल से अधिक की जेल हुई। इसके साथ ही कईयों को 70 कोड़े की सजा दी गई।
उल्लेखनीय है कि मोहम्मदी और हमीदी वो पत्रकार हैं, जिन्होंने महसा अमीनी की मौत की खबर को जोर-शोर से उठाया था। इसके बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की गई थी। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2024 में सितंबर का महीना ईरानी पत्रकारों के लिए बहुत ही खराब रहा। अकेले सितंबर में ही ईरान में करीब 24 पत्रकारों औऱ मीडिया संस्थाओं को 28 अलग-अलग केसों में सरकार से भिड़ना पड़ा।
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