नई दिल्ली । भारतीय भक्ति परंपरा के इतिहास में संत नामदेव का नाम अत्यंत सम्मानित और श्रद्धेय माना जाता है। तेरहवीं शताब्दी में महाराष्ट्र के मराठी क्षेत्र में जन्मे संत नामदेव ने अपने उपदेशों और विचारों के माध्यम से समाज में भक्ति, समरसता और एकता का संदेश दिया। वे जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव को मिटाकर मानव मात्र के प्रति प्रेम, सम्मान और सेवा का प्रचार-प्रसार करने वाले महान संत माने जाते हैं। उनका योगदान न केवल मराठा समाज में बल्कि संपूर्ण भारत में देखने को मिलता है, विशेषकर पंजाब में जहां वे निर्गुण भक्ति परंपरा के आदिपुरुष कहे जाते हैं।
संत नामदेव का संक्षिप्त परिचय
संत नामदेव का जन्म कार्तिक शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत 1327 (1270 ई.) में महाराष्ट्र के नरसी बामनी गांव में हुआ। उनके पिता का नाम दयाशेठ और माता का नाम गोणाई था। वे एक दर्जी परिवार में जन्मे थे, लेकिन व्यवसाय से अधिक उन्हें भगवान विठोबा (श्रीकृष्ण) की भक्ति में रुचि थी। संत ज्ञानेश्वर से उनकी भेंट बीस वर्ष की आयु में हुई और इसके बाद उन्होंने उनके साथ पूरे भारत की यात्रा की। संत नामदेव का जीवन और शिक्षा समाज में व्याप्त कुरीतियों और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देते हैं।
पंजाब और उत्तर भारत में संत नामदेव का प्रभाव
संत नामदेव का प्रभाव केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि वे उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब में भी भक्ति परंपरा के अग्रणी संत माने जाते हैं। उनके भजन और पद श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं, जो उनके व्यापक दृष्टिकोण और सभी प्राणियों में एक ही परमात्मा को देखने की भावना को दर्शाते हैं। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ – “एकल माटी कुंजर चींटी, भाजन हैं बहु नाना रे” – यह संदेश देती हैं कि ईश्वर सभी प्राणियों में एक समान हैं।
जाति और वर्ग भेदभाव के विरुद्ध संत नामदेव के विचार
संत नामदेव ने समाज में व्याप्त जाति और वर्ग भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया। उनका मानना था कि हर व्यक्ति को परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए और जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर एक समान समाज का निर्माण करना चाहिए। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनका एक पद है:
“कहा करउ जाती कहा करउ पाति, राम को नाम जपउ दिन राति।”
संत नामदेव के लिए प्रभु स्मरण ही जीवन का आधार था और वे जाति-पाति से ऊपर उठकर सभी को प्रभु के नाम का स्मरण करने का संदेश देते थे।
निर्गुण और सगुण भक्ति का समन्वय
संत नामदेव का आध्यात्मिक दृष्टिकोण सगुण और निर्गुण दोनों भक्ति धाराओं का अद्भुत समन्वय है। उन्होंने भगवान कृष्ण के सगुण स्वरूप का गुणगान किया है, लेकिन साथ ही निर्गुण ईश्वर की उपासना को भी उतनी ही महत्ता दी। उन्होंने कहा, “त्रिवेणी पिराग करौ मन मंजन, सेवौ राजा राम निरंजन।”
वे अपनी कविताओं में सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपों को ईश्वर का मानते थे और इस प्रकार सगुण-निर्गुण भक्ति परंपरा का समन्वय प्रस्तुत करते हैं।
सामाजिक समरसता का संदेश
संत नामदेव की शिक्षा समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने और मानव मात्र के प्रति प्रेम और सेवा की भावना को जागृत करने का आह्वान करती है। वे कहते हैं:
“हमारे करता राम सनेही, काहे रे नर गरब करत हो। बिनस जायगी देही। हरि नाम हीरा हरि नाम हीरा, हरि नाम लेत मिटें सब पीरा।”
उनकी दृष्टि में ईश्वर का नाम सबसे मूल्यवान है, जो जीवन की समस्त पीड़ाओं को समाप्त कर सकता है। वे मानते थे कि समाज में सामाजिक समरसता और प्रेम का विस्तार प्रभु स्मरण और भक्ति से ही संभव है।
संत नामदेव का योगदान और पंजाब में प्रभाव
संत नामदेव को पंजाब में भी अत्यंत श्रद्धा के साथ देखा जाता है। वे श्री गुरु नानक देव जी से दो सौ वर्ष पहले पंजाब आए और निर्गुण उपासना का प्रचार किया। श्री गुरु नानक जी के विचारों में संत नामदेव के उपदेशों का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। आज भी पंजाब में उनके लाखों अनुयायी हैं और उन्हें उनके नाम के साथ “नामदेव” जोड़ते हैं।
संत नामदेव के भजन और पद
संत नामदेव ने मराठी में अभंग और हिंदी में पदों की रचना की है। उनके भजनों और पदों में प्रभु स्मरण, सामाजिक समरसता और जीवन में भक्ति की महत्ता का बखान है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनका एक प्रसिद्ध पद है:
“भइया कोई तुलै रे रामाँय नाम, जोग यज्ञ तप होम नेम व्रत। ए सब कौंने काम॥”
संत नामदेव का मानना था कि राम नाम के समक्ष सारे यज्ञ, हवन, तपस्या, और व्रत तुच्छ हैं।
संत कबीर और संत रैदास के विचारों पर संत नामदेव का प्रभाव
संत कबीर और संत रैदास जैसे संतों ने संत नामदेव की महिमा का गुणगान किया है। संत रैदास ने कहा:
“नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरे। कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै॥”
संत नामदेव भारतीय समाज में सामाजिक समरसता, धार्मिक एकता, और भक्ति की परंपरा के एक महान अग्रदूत थे। उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी समाज को एकजुट करने और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रेरणा देती हैं। संत नामदेव के विचारों का असर पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर भारत में आज भी जीवित है, जो समाज को प्रेम, समानता और सेवा का संदेश देता है।
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