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भारत का पथप्रदर्शक महाभारत

महाभारत का दुष्प्रचार करते हुए भ्रम फैलाया गया कि इसे घर में रखने से कलह होती है। वेदव्यास तो इसके रचयिता थे, लेखक तो स्वयं भगवान गणेश थे। क्या विघ्नहर्ता गणेश लिखित ग्रंथ से घर में कलह या अशांति हो सकती है

by आचार्य मनमोहन शर्मा
Nov 5, 2024, 10:55 am IST
in भारत, विश्लेषण, संस्कृति, शिक्षा
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आचार्य मनमोहन शर्मा
लेखक,भारतीय इतिहास संकलन समिति, हरियाणा

महाभारत भारतवर्ष का अनुपम और सबसे बड़ा ग्रंथ है। चारों वेदों में जितने मंत्र हैं, इसमें उससे 5 गुना अधिक श्लोक हैं तथा यह रामायण से भी चार गुना बड़ा है। गीता तो महाभारत का अंश मात्र है, जिसका विश्व में अपना ही बड़ा साहित्य खड़ा हो गया है। विश्व की सभी मुख्य भाषाओं में गीता तथा महाभारत का अनुवाद हो चुका है। विभिन्न दृष्टिकोणों से बीते 200 वर्षों से समूचे संसार में लगातार महाभारत पर शोध कार्य हो रहे हैं। इस पर हर वर्ष देश-विदेश में सैकड़ों सेमिनार आयोजित होते हैं। समस्त पुस्तकालयों, विद्वानों के घरों तथा प्राय: सभी मंदिरों में महाभारत रखा जाता है। लेकिन इसके विषय में यह भ्रांति फैलाई गई कि महाभारत को घर में रखने से झगड़े-क्लेश होते हैं और अशांति बढ़ती है। वास्तविकता यह है कि इसे घर में रखने से धर्म की वृद्धि होती है। अब इसे अधर्म फैलाने वालों का दुष्प्रचार कहें या महाभारत न पढ़ने वालों का आलस्य!

…फिर डर कैसा!

महाभारत और रामायण, दो ऐसे प्राचीन महाकाव्य हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। विशेषकर भारत में विदेशी आक्रांताओं के सैकड़ों हमलों के बावजूद ये ग्रंथ भारतीय समाज के मानस में बसे रहे। महाभारत की रचना करने में महर्षि वेदव्यास को तीन वर्ष लगे थे। तो क्या उन्होंने महाभारत की रचना इसलिए की कि इसे घर में रखने से झगड़े हों या अशांति हो? दूसरी बात, महर्षि वेदव्यास तो रचयिता थे, इसके लेखक तो स्वयं विघ्नहर्ता भगवान गणेश थे। वेदव्यास उन घटनाओं के साक्षी भी थे, जो क्रमानुसार घटित हुईं। प्रश्न यह है कि भगवान गणेश जो विघ्नहर्ता और सर्व क्लेश दूर करने वाले हैं, क्या उनके द्वारा लिखे हुए ग्रंथ से किसी घर में कलह या अशांति हो सकती है?

महाभारत में महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, द्रोणाचार्य, भीष्म, विदुर, युधिष्ठिर जैसे अनेक विद्वानों के विवरण तो हैं ही, इसमें रामायण का संक्षिप्त विवरण भी मिलता है। इस महान ग्रंथ में ही सत्यवान-सावित्री, नल-दमयंती, राजा शिवि आदि की कथाएं भी समाहित हैं। महाभारत के शांति पर्व में 365 अध्याय हैं, जिनमें 14,700 श्लोक हैं। महाभारत में 18 पर्व हैं, जिनमें शांति पर्व 12वां है। अनुशासन पर्व के 8,000 श्लोकों में भीष्म पितामह ने सभी प्रकार की राजनीति, अर्थ, धर्म, काम तथा मोक्ष संबंधी विस्तृत चर्चा की है। साथ ही, इसमें चारों वर्णों तथा चारों आश्रमों के कर्तव्यों का भी निरूपण किया गया है। शांति पर्व में अनेक कथाएं हैं। अत: इस महाग्रंथ को न पढ़ना और घर में न रखना भारतीय मनीषा का घोर अपमान है।

भारतीय संस्कृति का विश्वकोश

महाभारत की रचना का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करना था। महाभारत के आदि पर्व (प्रथम अध्याय) में स्वयं महर्षि वेदव्यास ने कहा है-
इतिहास पुराणाभ्याम् वेदं समुपबृंहयेत्।
बिभेत्यल्पश्रताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति।।
अर्थात् इतिहास एवं पुराण से वेद के अर्थ को समझने में सहायता मिलती है। जिसने महाभारत का अध्ययन नहीं किया, उससे तो वेद भी डरते हैं, क्योंकि उन्हें भय होता है कि वह उन्हें हानि पहुंचा सकता है।

महाभारत भारतीय संस्कृति का विश्वकोश है। इसलिए इसे पांचवां वेद कहा जाता है। यह भारतीय पंथनिरपेक्ष एवं धार्मिक ज्ञान का सच्चा कोश है। इसके अतिरिक्त ऐसा कोई सरल ग्रंथ नहीं है, जो भारतीय समाज की आत्मा को गहराई से प्रभावित करता हो। महाभारत में इतिहास, राजनीति शास्त्र, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, कानून तथा विज्ञान के विषय भी समाहित हैं। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति और विकास आदि का विवरण भी है। महाभारत को इतिहास, पुराण, काव्य, आख्यान, धर्मशास्त्र, नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्ष शास्त्र भी कहा जाता है। महाभारत में ही कहा गया है कि जो इसमें है, वह विश्व में है। जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं नहीं है।

धर्मे अर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्।।
(महाभारत, 1.56.33)
अर्थात् जीवन के चार पुरुषार्थों यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संबंध में जो कुछ महाभारत में कह दिया गया है, उसके बाद कुछ कहने को शेष नहीं रहता।

47 वर्ष की साधना

महाभारत के हजारों हस्तलिखित संस्करण उपलब्ध थे, जिनमें अधिकतर अपूर्ण थे। ये सारे देश में फैले हुए थे और अनेक भाषाओं में उपलब्ध थे। 1919 में भंडारकर प्राच्यविद्या शोध संस्थान, पुणे ने महाभारत का एक सर्वमान्य संस्करण निकालने का प्रयास आरंभ किया। संस्थान को 1,259 हस्तलिखित प्रतियां मिलीं। देशभर से पाण्डुलिपियां एकत्र करने में संस्थान को 47 वर्ष लगे। इन पाण्डुलिपियों में 89,000 श्लोक हैं, जिन्हें 18 खंडों में प्रकाशित किया गया है। इसका विमोचन 1966 में राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था। आज समस्त शोधकार्यों में इसका ही उपयोग किया जाता है।

इस ग्रंथ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानन्द ने सन् 1900 में कहा था, ‘‘आप से महाभारत के बारे में बात करते हुए मेरे लिए व्यास जी की प्रतिभा और उच्चबुद्धि द्वारा चित्रित शक्तिशाली नायकों के भव्य और राजसी चरित्रों की अंतहीन शृंखला प्रस्तुत करना असंभव है। ईश्वरभक्त, फिर भी कमजोर, वृद्ध, दृष्टिहीन राजा धृतराष्ट्र के मन में धार्मिकता और पुत्रवत् स्नेह के बीच आंतरिक संघर्ष, भीष्म का राजसी चरित्र, राजा युधिष्ठिर और अन्य चार भाइयों का महान और सदाचारी चरित्र, वीरता के साथ-साथ भक्ति और वफादारी में भी उतना ही शक्तिशाली, श्रीकृष्ण का अद्वितीय चरित्र, मानवीय ज्ञान में अद्वितीय और कम शानदार नहीं है। वहीं, महिलाओं के चरित्र-राजसी रानी गांधारी, प्यारी माता कुंती, सदैव समर्पित और द्रौपदी- ये और इस महाकाव्य और रामायण के सैकड़ों अन्य पात्र पोषित विरासत रहे हैं, जो हजारों वर्षों से संपूर्ण हिंदू जगत के विचारों और उनके नैतिक और नीतिपरक विचारों का आधार बना हुआ है।

महाभारत न केवल भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतिनिधि ग्रंथ है, बल्कि यह पुरुषार्थ की गहनता, गहराई व बहुविधता की पड़ताल भी करता है। इसमें न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या और धर्मशास्त्र का विस्तार से वर्णन है। इसके अतिरिक्त महाभारत की कथाएं बुराई पर अच्छाई की विजय जैसे नैतिक मूल्यों का महत्व बताती हैं। ये कथाएं आज की पीढ़ी को भारतीय सभ्यता को आकार देने वाली विचार प्रक्रियाओं को समझने का अवसर प्रदान करती हैं। अत: महाभारत को घर में रखना व पढ़ना अति आवश्यक है।

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