बांग्लादेश में कथित भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के बाद बीएनपी की अगुवाई में बनी रुढ़िवादी अंतरिम सरकार एक-एक कर शेख हसीना से जुड़ी प्रत्येक चीज को खत्म करती जा रही है। इसी क्रम में अब बांग्लादेश के संविधान को संशोधित करने की सिफारिश की गई है। ये सिफारिश गोनो फोरम के एमेरिटस अध्यक्ष डॉ कमाल हुसैन ने की है। कमाल हुसैन का कहना है कि बांग्लादेश इस वक्त इतिहास के टर्निंग प्वाइंट पर है। संघर्षों के जरिए हमने अपने अधिकारों को सुरक्षित किया है।
संविधान सुधार आयोग के सदस्यों प्रोफेसर अली रियाज से बात करते हुए हुसैन ने दावा किया कि वर्ष 1971 में मुक्ति आंदोलन के जरिए संविधान में प्रदत्त अधिकारों को हासिल किया गया था। उस दौरान इसमें असमानता को खत्म कर सेक्युलरिज्म को बनाए रखने पर बल दिया गया था। हुसैन का कहना था कि अब नए सिरे से संविधान में संशोधन की आवश्यकता आ गई है ताकि सत्तावादी शासन की संभावना को खत्म किया जा सके। इसके साथ ही कमाल खान ने शेख हसीना की सरकार पर दमन का आरोप लगाते हुए कहा कि क्रूर हिंसा और दमन हमारे छात्रों और असंख्य लोगों पर अत्याचार किए गए थे।
कमाल हुसैन का कहना था कि उनके व्यक्तिगत अनुभवों को भी संविधान में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। मुस्लिम नेता ने कहा कि हम इस तरीके से संविधान में सुधार करने के लिए जिम्मेदार हैं, जिससे भविष्य में दोबारा ऐसा न हो। हालांकि, इस मौके पर संविधान शोधकर्ता आरिफ खान ने इस बात की तरफ भी इशारा किया कि मुक्ति युद्ध द्वारा आकार दिए गए संवैधानिक ढांचे को बदलने की कोशिश राजनीतिक और राष्ट्रीय शून्यता आएगी।
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फिर से हिंसा शुरू
इस बीच बांग्लादेश में एक बार फिर से हिंसा शुरू हो गई है। वहां खुलना के डाकबंगला इलाके में जातीय पार्टी के कार्यालय में प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया। वहां पर तोड़फोड़ और आगजनी की गई। हालांकि, हमलावरों के बारे में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका।
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