जनजातीय नायक

भारत के जनजातीय सम्राट संग्राम शाह, गयासुद्दीन खिलजी को खदेड़ा, 52 गढ़ों पर फहराया ध्वज, इंग्लैंड के बराबर था साम्राज्य

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डॉ. आनंद सिंह राणा

भारत के गौरवशाली इतिहास की परंपरा में जनजातियों का अद्भुत और अद्वितीय माहात्म्य रहा है। ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों के आलोक में सतयुग में महादेव – बड़ा देव के पुत्र निषाद, जो तीर कमान विद्या में निपुण थे, भील जनजाति के आदि पुरुष के रूप में शिरोधार्य हैं। त्रेता में भगवान श्री राम के साथ निषादराज गुह और द्वापर युग में धनुर्धर अर्जुन की परीक्षा के लिए महादेव किरात भील के रूप में अवतरित हुए थे, वहीं वर्तमान युग के हर कालखंड में हुए स्वातंत्र्यसमर में जनजातियों का अति विशिष्ट योगदान रहा है, परंतु जनजातीय साम्राज्य की दृष्टि से भारत में सबसे बड़ा साम्राज्य मध्यकाल के नागवंशीय महानतम जनजातीय सम्राट संग्राम शाह का रहा है, जिन्होंने मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी को पराजित कर महारथी अमान दास से संग्राम शाह का नाम धारण किया। संग्राम शाह भगवान भैरव के उपासक होने कारण जीवन पर्यन्त अपराजेय रहे। संग्राम शाह के काल में महान गोंडवाना साम्राज्य ( राजधानी -गढ़ा कंटगा,अब जबलपुर में है) का चरमोत्कर्ष हुआ। इन्होंने 61 वर्ष शासन किया,जो भारतीय दृष्टि से सर्वाधिक शासनवधि है।

यह है पृष्ठभूमि

भारत के हृदय स्थल में स्थित त्रिपुरी के महान् कलचुरि वंश का 13 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अवसान हो गया था, फल स्वरुप सीमावर्ती शक्तियां इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए लालायित हो रही थी। अंततः इस संक्रांति काल में एक वीर योद्धा जादो राय (यदु राय) ने तिलवाराघाट निवासी एक महान् ब्राम्हण सन्यासी सुरभि पाठक के भगीरथ प्रयास से त्रिपुरी क्षेत्रांतर्गत अंतर्गत गढ़ा कटंगा क्षेत्र में गोंड वंश की नींव रखी। यही आगे चलकर गढ़ा मंडला के साम्राज्य के रूप में सुविख्यात हुआ। अधिकांश गोंड राजाओं के मंत्री ब्राम्हण ही हुए हैं जो इस बात का प्रमाण है कि धर्म, वर्ण और जाति को लेकर भारत में कभी किसी प्रकार का वैमनस्य नहीं रहा, जिसे प्रकारांतर से अंग्रेजों और वामपंथियों के साथ परजीवी इतिहासकारों ने फैलाया है।

गोंडवाना साम्राज्य का चरमोत्कर्ष का प्रारंभ 48 वीं के महानायक अमान दास (संग्राम शाह) के समय हुआ। 14 नवंबर सन् 1480 में राजा अमान दास सिंहासन पर बैठे थे। रामनगर प्रशस्ति के अनुसार गोंड राजाओं की वंशावली में 53 राजाओं के नाम मिलते हैं। इस प्रशस्ति के लेखक राजकवि और पंडित जय गोविंद हैं, इसके अनुसार 34 वीं पीढ़ी में मदन सिंह का नाम आता है और यहीं से स्व की भावना से अभिप्रेत होकर गोंडवाना साम्राज्य का वास्तविक उत्कर्ष शुरू होता है। मदन सिंह के बाद क्रमशः उग्रसेन, ताराचंद्र(रामकृष्ण) , ताराचंद.,उदय सिंह ,मान सिंह ,भवानीदास, शिवसिंह, हरनारायण, सबलसिंह, राजसिंह,दादीराय ,गोरखदास(जबलपुर अंतर्गत गोरखपुर बसाया) अर्जुन दास (अर्जुन सिंह) और उसके उपरांत 48 वीं पीढ़ी में अमानदास दास का जन्म हुआ। अमान दास ने बृहत गोंड राज्य की नींव डाली।

गयासुद्दीन खिलजी को पराजित किया

सन् 1475 में अमान दास ने सत्ता संभाली ली थी और 1480 में विधिवत राज्याभिषेक हुआ, परंतु वास्तव में सन् 1484 में स्व का शंखनाद हुआ माड़ौगढ़ अर्थात् मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने अचानक गढ़ा कटंगा पर हमला दमोह की ओर से किया। प्रारंभ में तो गोंड सेनाएं पीछे हटीं परंतु अवधूत बाबा की सलाह पर जबलपुर में जहां आज कृषि उपज मंडी है वहां चंडाल भाटा के मैदान में गोंड सेनाओं ने मोर्चा जमाया। चंडाल भाटा के मैदान में गयासुद्दीन खिलजी की सेनाओं और राजा अमान दास की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। राजा अमान दास और सेनापति बघ शेर सिंह ने कहर बरपा दिया। अमानदास और शेर सिंह ने मिलकर गयासुद्दीन खिलजी को उसकी बची- खुची फौज समेत सिंगौरगढ़ की सीमाओं के परे खदेड़ दिया। इस विजय में बाबा अवधूत अर्थात अघोरी बाबा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंडाल भाटा के युद्ध में सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी की भयानक पराजय हुई, अमान दास ने सुल्तान से छत्र एवं निशान छीन लिए और इस विजय के उपलक्ष्य में अमान दास ने संग्राम शाह की उपाधि धारण की। इसी कालखंड में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी का भाई जलालुद्दीन लोदी बागी हो गया और बदनीयती से गढ़ा कटंगा में प्रवेश करने को उद्यत हुआ तब राजा संग्राम शाह ने उसे करारी शिकस्त देते हुए खदेड़ दिया। राजा संग्राम शाह के शौर्य और पराक्रम को देखते हुए इब्राहिम लोदी ने भी उनकी शाह की उपाधि को स्वीकार किया।

52 गढ़ों पर फहराई थी विजय पताका

रामनगर की प्रशस्ति में लिखा है कि “प्रतापी अर्जुन सिंह का पुत्र संग्राम शाह था। जिस भाँति विशाल कपास का ढेर एक छोटी सी चिंगारी से नष्ट हो जाता है – उसी भांति उसके शत्रुगण तेजहीन हो गए थे। मध्यकाल का सूर्य भी उसके प्रताप के सामने धूमिल सा दिखाई देता था। मानो सारी पृथ्वी को जीत लेने का उसने निश्चय किया हो। तदनुसार उस ने 52 गढ़ों को जीत लिया था। ये गढ़ या किले उच्च पर्वतीय श्रेणियों पर स्थित थे जो विशाल प्राचीरों और बुर्जियों से परिवेष्ठित होने के कारण दुर्भेद्य समझे जाते थे। गोंडो में तो यह कहावत ही प्रचलित हो गई है कि “आमन बुध बावन में”।

ये थे सुदृढ़ 52 गढ़ और साम्राज्य था इंग्लैंड के बराबर

“वज्रप्रायै: पर्वत प्रौढ़ गाढ़ै सप्रकारैरम्बुभिश्चयाक्षयाणि।। द्वापंचाशद्घेन दुर्गाणि राज्ञां निर्वृत्तानि क्षोणिचक्र विजित्य।। ये 52 गढ़ वर्तमान संदर्भ में 13 जिलों में अवस्थित हैं। ये 52 गढ़ इस प्रकार थे – 1.गढ़ा 2.मारु गढ़ 3.पचेल गढ़ 4.सिंगौरगढ़ 5.अमोदा 6.कनोजा 7.बगसरा 8.टीपागढ़ 9.रामगढ़ 10.परतापगढ़ 11.अमरगढ़ 12.देवगढ़ 13. पाटनगढ़ 14.फतहपुर 15.निमुआगढ़ 16.भंवरगढ़ 17.बरगी 18.घुनसौर 19. चावड़ी (सिवनी) 20.डोंगर ताल 21.कोरवा (करवागढ़) 22.झंझनगढ़ 23. लाफ़ागढ़ 24.सौंटा गढ़ 25. दिया गढ़ 26.बांका गढ़ 27. पवई करहिया 28.शाह नगर 29. धामोनी 30.हटा 31.मडियादो 32. गढ़ा कोटा 33. शाह गढ़ 34. गढ़ पहरा 35.दमोह 36. रानगिर (रहली) 37.इटावा 38.खिमलासा (खुरई ) 39.गढ़ गुन्नौर 40.बारीगढ़ 41.चौकी गढ़ 42.राहतगढ़ 43.मकड़ाई 44. कारौबाग (कारुबाग) 45.कुरवाई 46.रायसेन 47.भौंरासो 48. भोपाल 49.उपतगढ़ 50.पनागर 51.देवरी 52.गौरझामर। अबुल फजल गोंडवाना राज्य के बारे में लिखता है कि “उस राज्य के पूर्व में रतनपुर (झारखंड प्रदेश) पश्चिम में रायसेन (मालवा) जिसकी लंबाई 150 कोस थी, उत्तर में पन्ना (बुंदेलखंड) और दक्षिण में दक्कन सूबा (बरार) जिसकी चौड़ाई 80 कोस थी। वह राज्य गढ़ा कटंगा कहलाता था।” इस दृष्टि से भी देखा जाए तो संग्राम शाह का साम्राज्य लगभग इंग्लैंड के क्षेत्रफल के बराबर था।

भैरव के परम उपासक थे एवं भगवा था राज्य का झंडा

राजा संग्राम शाह भगवान भैरव के परम भक्त थे इसलिए उनके राज्य का झंडा भगवा था। उन्होंने बाजनामठ की स्थापना करवाई थी और भैरव की कृपा से वो आजीवन अपराजेय रहे । राजा संग्राम शाह ने सिक्के चलवाए, अनेक मंदिर और मठों का निर्माण कराया इसके साथ ही जल प्रबंधन के अंतर्गत तालाबों का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। उनका राजमहल, संग्राम सागर और संग्रामपुर आज भी उनकी अमिट स्मृति के प्रतीक हैं। राजा संग्राम शाह उत्तर भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से भलीभांति परिचित थे। उत्तर भारत में शेरशाह ने हुमायूं को परास्त कर सूर वंश की नींव डाली थी। शेरखां (शेरशाह)साम्राज्य विस्तार कर रहा था और जैसे ही उसने बुंदेलखंड की ओर रुख किया वैसे ही कालिंजर के महाप्रतापी राजा कीरत सिंह की चिंताएं बढ़ गईं। उन्होंने गोंडवाना के महाप्रतापी राजा संग्राम शाह से सहायता मांगी, यहीं से राजा संग्राम शाह और कालिंजर के राजा कीरत सिंह के मध्य मैत्री स्थापित हुई। राजनीतिक संधि हुई और उसे प्रगाढ़ करने के लिए संग्राम शाह ने अपने सुपुत्र दलपति शाह का विवाह कीरत सिंह की वीरांगना पुत्री रानी दुर्गावती से करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। इस तरह राजा संग्राम शाह ने “स्व” का शंखनाद कर “स्व” की सिद्धि भी प्राप्त की। सन् 1541 में एक समृद्ध और सुदृढ़ गोंडवाना साम्राज्य को अपने योग्य पुत्र दलपति शाह को सौंपकर महारथी राजा संग्राम शाह पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके स्वर्गारोहण पर आज भी एक वेदना से संपृक्त लोक गीत गाया जाता है जिसकी प्रथम पंक्ति है-कहाँ गए राजा अमान? वन की रौवे चिरैया!”गोंडवाना के महा प्रतापी राजा संग्राम शाह ने सन् 1480 से सन् 1541 तक कुल 61 वर्ष शासन किया जो कि संभवतः भारतीय इतिहास में सर्वाधिक शासनावधि है।

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