दिवाली, जिसे हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है और इसके पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा छिपी हुई है, जो भगवान कृष्ण से संबंधित है।
कथा के अनुसार, भौमासुर या नरकासुर नामक एक राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसकी दुष्टता से सभी, चाहे वे मनुष्य हों या देवता, त्रस्त थे। नरकासुर को श्राप मिला था कि उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही होगी। इस श्राप के चलते, उसने 16,100 कन्याओं का अपहरण कर लिया था, जिससे सभी में भय व्याप्त हो गया।
भगवान कृष्ण की सहायता
इस संकट को देखकर इंद्रदेव ने भगवान कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। भगवान कृष्ण, जो हमेशा धर्म और न्याय के पक्षधर रहे हैं, ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध करने का निश्चय किया। उन्होंने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और दोनों मिलकर राक्षस के खिलाफ निकल पड़े।
नरकासुर का वध
भगवान कृष्ण ने अपनी रणनीति और युद्ध कौशल का उपयोग करते हुए नरकासुर का सामना किया। सत्यभामा ने भी अपने साहस और बुद्धिमानी से कृष्ण की सहायता की। अंततः भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध कर दिया और उसके द्वारा कैद की गई 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया।
नरक चतुर्दशी का महत्व
कहा जाता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसी उपलक्ष्य में इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का एक और कारण है – नरकासुर के वध के बाद भक्तों ने दीप जलाकर खुशी मनाई थी, जो आगे चलकर दिवाली के उत्सव का हिस्सा बन गया।
इस प्रकार, नरक चतुर्दशी, जिसे हम छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं, न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह न्याय और धर्म की विजय का प्रतीक भी है। इस दिन हम अपने घरों को रोशनी से भरते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं।
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