नई दिल्ली, (हि.स.)। दिल्ली हाई कोर्ट ने रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों के बच्चों को आधार कार्ड नहीं होने की वजह से स्कूल में दाखिला नहीं देने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि ये अंतरराष्ट्रीय मसला है और इससे सुरक्षा और राष्ट्रीयता पर असर पड़ेगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास प्रतिवेदन लेकर जाएं।
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले पर जितना जल्द हो विचार कर फैसला करे। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि असम में नागरिकता निलंबित करने का कानून है और आप उन्हें रोकने की बात कर रहे हैं। आप केंद्र के पास जाइए। कोई भी कोर्ट नागरिकता स्वीकार नहीं करती है। याचिका एनजीओ सोशल जूरिस्ट की ओर से वकील अशोक अग्रवाल ने दायर की थी।
याचिका में कहा गया था कि दिल्ली नगर निगम के स्कूल रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को आधार कार्ड नहीं होने की वजह से स्कूलों में दाखिला नहीं दे रहे हैं। जिन रोहिंग्या बच्चों का दाखिला हो भी चुका है उन्हें दूसरे वैधानिक लाभों से वंचित किया जा रहा है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 21ए के अलावा मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया था कि श्री राम कॉलोनी, खजूरी चौक क्षेत्र जैसे इलाकों में रहने वाले 14 साल से कम उम्र के बच्चों को आधार कार्ड, बैंक खाता और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी शरणार्थी कार्ड नहीं होने की वजह से नगर निगम स्कूलों में दाखिला नहीं दे रहे हैं। इन बच्चों को शिक्षा के अधिकारी से वंचित करना मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया था कि जब तक रोहिंग्या बच्चे भारत में रह रहे हैं तब तक शिक्षा प्राप्त करना संविधान के तहत मौलिक अधिकार है। संविधान प्रदत मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों को शिक्षा मिले, ये सुनिश्चित करना दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय और दिल्ली नगर निगम की जिम्मेदारी है।
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