भारतीय परिवार : विश्व कल्याण का आधार
May 26, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

भारतीय परिवार : विश्व कल्याण का आधार

भारतीय जीवन दृष्टि में परिवार केवल समाज और राष्ट्र की स्थिरता के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए आवश्यक है। परिवार का विघटन न केवल समाज में अस्थिरता लाता है, बल्कि यह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए भी खतरा पैदा करता है।

by हितेश शंकर
Oct 27, 2024, 09:11 am IST
in भारत, सम्पादकीय, संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

मनुष्य अपनी विकास यात्रा में सदैव कहीं बीच में होता है। यानी यह एक प्रवाहमान प्रक्रिया है, जिसमें बहुत कुछ देश-काल-परिस्थिति के आधार पर बदलता रहता है। इस परिवर्तनशील यात्रा का मार्ग रैखिक हो सकता है और वृत्ताकार भी। रैखिक यानी सीधे आगे बढ़ना और वृत्ताकार यानी लौटकर उसी बिंदु पर आ जाना, जहां से चले थे। कुछ संदर्भों में हमारा यात्रा मार्ग रैखिक हो सकता है, कुछ में वृत्ताकार। यह इस पर निर्भर करता है कि ज्ञान, संस्कार और अनुभव की त्रिवेणी हमें किस संगम की ओर ले जाती है। परिवार व्यवस्था हमारी जीवन-पद्धति का आधार रहा है और समय के साथ इसमें कई तरह के बदलाव आए हैं। उक्त कसौटी पर परिवार को कसकर देखना आवश्यक है, क्योंकि जैसा परिवार वैसा समाज और जैसा समाज वैसा देश।

यह देखना होगा कि परिवार व्यवस्था में आ रहा बदलाव कितना स्वाभाविक है और कितना आरोपित यानी थोपा या ओढ़ा हुआ। यदि स्वाभाविक है, तो इसका भविष्य कैसा दिख रहा है और यदि आरोपित है, तो इसके पीछे आखिर वे कौन से कारक हैं और आगे यह किस रूप और परिणाम में सामने आ सकता है। इसमें संदेह नहीं कि विकास की कसौटी पर व्यापक होती आकांक्षाओं ने घरों की चारदीवारियों को छोटा किया है, अवसरों के केंद्र बने नगरों-महानगरों में कबूतरखानों में शांति खोजते जीवन के अर्थ महानगरीय भूलभुलैया में भटकते दिखते हैं। इसके बीच सामाजिक सहबद्धता के धागे कमजोर पड़ते और पीछे छूट गए साथी-संबंधी को हाथ पकड़कर आगे खींच लेने की भावना धुंधली होती दिखती है। इसकी प्रतिक्रिया में आत्म-केंद्रित भाव लोगों को अपने कब्जे में ले रहा है। यह सब हम अपने आसपास देख रहे हैं।

भारत में परिवार केवल एक सामाजिक इकाई नहीं है, यह एक ऐसी संस्था है, जहां जीवन के सभी रंग समाहित होते हैं। यह हमारे जीवन के हर पहलू को दिशा देता है और समाज, राष्ट्र और विश्व कल्याण का केंद्र बनता है। भारतीय संस्कृति में परिवार का महत्व ऐसा है कि इसे जीवन के हर क्षेत्र का आधार माना गया है।

भारतीय दृष्टि में परिवार सिर्फ रिश्तों की परिधि में सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा भाव है, जो प्रेम, सहयोग और नैतिकता से भरा है। परिवार में यह वात्सल्य और प्रेम हर सदस्य को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है। यह वैसी ही भावना है, जिसे तमिल ग्रंथ ‘तिरुक्कुरल’ में ‘अथिगारम् उडैर्योे कत्तलै वढु अर्ण्णे कत्तलै यन्नोदिअदु’ श्लोक के माध्यम से समझाया गया है। इसका तात्पर्य है कि जिन्हें अधिकार मिले हैं, उनका कर्तव्य है कि वे अपनी जिम्मेदारियों को निष्ठा से निभाएं। यह विचार भारतीय परिवार व्यवस्था के मूल्यों और आदर्शों की पहचान कराता है।

समाज का स्तंभ

भारतीय समाज में परिवार को जीवन के हर क्षेत्र में एकता, त्याग और समर्पण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। माता-पिता, गुरु और बुजुर्ग, परिवार के आदर्श-मार्गदर्शक होते हैं। ये अपने अनुभव और ज्ञान से परिवार के सदस्यों को न केवल व्यक्तिगत रूप से सशक्त बनाते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी प्रेरणास्रोत बनते हैं। परिवार के इसी भाव को ‘कुटुम्बस्य वात्सल्यं सर्वधमार्णां परिपालकम्’ के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जो बताता है कि पारिवारिक स्नेह, नैतिक मूल्यों और धार्मिक कर्तव्यों के पालन का आधार है।

वामपंथी दृष्टि

वामपंथी विचारधारा में परिवार को समाज में क्रांति के मार्ग में बाधा के रूप में देखा गया है। वामपंथी विचारक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स परिवार को एक ऐसी संस्था मानते थे, जो निजी संपत्ति और पूंजीवादी व्यवस्था को बनाए रखने का काम करती है। उनके अनुसार, ‘‘परिवार समाज में वर्ग विभाजन को स्थिर करता है और क्रांतिकारी परिवर्तन की राह में रुकावट बनता है।’’

नारीवादी वामपंथी विचारक शुलामिथ फायरस्टोन इसे पितृसत्ता का आधार मानती हैं, जहां महिलाओं की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। वामपंथी दृष्टिकोण के अनुसार, ‘‘परिवार को नष्ट करने से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन आसान हो सकता है।’’ लेकिन यह दृष्टिकोण समाज और राष्ट्र के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि परिवार समाज की एकता, नैतिकता और सामंजस्य का आधार है।

विघटन के दुष्प्रभाव

परिवार के विघटन से सबसे बड़ा प्रभाव समाज और राष्ट्र की स्थिरता पर पड़ता है। जब परिवार टूटते हैं, तो समाज में नैतिकता, अनुशासन और सामूहिकता का ह्रास होता है। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है, जिससे समाज में अव्यवस्था, असुरक्षा और अपराध बढ़ते हैं। परिवार के विघटन से राष्ट्र की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना भी कमजोर होती है।

वामपंथी दृष्टि, जो परिवार और समाज को तोड़कर केवल राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की दिशा में काम करती है, समाज में विभाजन, संघर्ष और अस्थिरता को बढ़ावा देती है। इसके विपरीत भारतीय दृष्टि, जो परिवार को एकजुटता और समर्पण के माध्यम से देखती है, समाज और राष्ट्र के हर वर्ग के कल्याण का मार्ग खोलती है।

भारतीय दृष्टि

भारतीय दृष्टि केवल भारत तक सीमित नहीं है, यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’(संपूर्ण विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत पर आधारित है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो केवल भारत के समाज और राष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि संपूर्ण मानवता और प्राणी-जगत के कल्याण की बात करता है।

परिवार की एकता, सामंजस्य और करुणा का यह भाव, समाज में शांति, सद्भाव और समृद्धि लाता है। भगवद्गीता का श्लोक ‘पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामह:’ इस बात की पुष्टि करता है कि भगवान स्वयं सृष्टि के पिता, माता और पालनकर्ता हैं। यह बताता है कि परिवार न केवल सामाजिक एकता और विकास का माध्यम है, बल्कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का भी मार्गदर्शक है।

भारतीय जीवन दृष्टि में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह केवल समाज और राष्ट्र की स्थिरता के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए आवश्यक है। परिवार का विघटन न केवल समाज में अस्थिरता लाता है, बल्कि यह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए भी खतरा पैदा करता है।

इसके विपरीत भारतीय दृष्टि, जो परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्व, कर्तव्य और नैतिकता का संदेश देती है, संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकती है। परिवार की इस व्यवस्थित संरचना को सुदृढ़ और सुरक्षित रखना भारतीय समाज और मानवता के लिए आवश्यक है। यही वह आधार है, जिस पर भारत और दुनिया का भविष्य टिका हुआ है।

परिवार जितना कमजोर होगा, सुरक्षा-आवश्यकताओं की सामूहिक गारंटी कमजोर होगी और विभिन्न तरह की वैयक्तिक गारंटी की व्यवस्था करनी होगी। यह सब हमारे सामने हो रहा है। समाज के धागे उधेड़कर क्रांति के रास्ते पर चलकर ‘आदर्श सम-समाज’ स्थापित करने की वामपंथी अवधारणा दुनियाभर में विफल हो चुकी है। जिस तरह प्रकृति दोहन को विकास का मार्ग समझते-समझते आज हम इसके संरक्षण में मनुष्य के भविष्य के मर्म को समझने लगे हैं, वैसे ही हमारी पारिवारिक व्यवस्था भी शायद वृत्ताकार मार्ग की ओर बढ़ने का मन बना रही हो!
पाञ्चजन्य का दीपावली विशेषांक परिवार की इसी परिधि, इसी वृत के नाम।

पढ़िए विचारिए, अपने कुटुंब के सदस्यों के चेहरों और मुस्कानों को निहारिए। दीपावली के इस ज्योतिर्मय वर्तुल में रामजी के उस बड़े परिवार की कहानी भी गुंथी है जो केवल अयोध्या नरेश दशरथ या महाराजा जनक के परिवारों तक सीमित नहीं है। आपको हमारा यह आयोजन कैसा लगा अवश्य बताइए।

पाञ्चजन्य के पूरे परिवार अर्थात् सभी पाठकों, वितरकों, विज्ञापनदाताओं और समस्त शुभचिंतकों को पंचपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
@hiteshshankar

Topics: आदर्श सम-समाजवामपंथी दृष्टिकोणपरिवार के विघटन से राष्ट्र की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचनाIdeal societyIndian perspectiveLeftist perspectiveभारतीय संस्कृतिCultural and social structure of the nation due to disintegration of familyIndian CultureSociety and nationसमाज और राष्ट्रपंचपर्वभारतीय दृष्टिपाञ्चजन्य विशेष
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

“सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर ना हों…’’ : सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजु से मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भेंटवार्ता

वक्फ संशोधन : मुस्लिम समाज की तरक्की का रास्ता!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ @100 : राष्ट्र निर्माण की यात्रा, आपके सहभाग की प्रतीक्षा

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे

पलटू पलटन

जिम्मेदार बने मीडिया और सोशल मीडिया

महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर

मानवता की रक्षा के लिए अपनाएं लोकमाता अहिल्याबाई का आदर्श

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Uttarakhand communal violence

उत्तराखंड: बनभूलपुरा में सांप्रदायिक तनाव,  पथराव के बाद भारी फोर्स तैनात

Trukiye president Rechep taiyap erdogan Shahbaz sarif

लो हो गई पुष्टि! तुर्की ने भारत के खिलाफ की थी पाकिस्तान की मदद, धन्यवाद देने इस्तांबुल पहुंचे शहबाज शरीफ

British women arrested with Kush

मानव हड्डियों से बने ड्रग ‘कुश’ की तस्करी करते श्रीलंका में ब्रिटिश महिला गिरफ्तार

वट पूजन पर्व पर लें वृक्ष संरक्षण का संकल्प

सीडीएस  जनरल अनिल चौहान ने रविवार को उत्तरी एवं पश्चिमी कमान मुख्यालयों का दौरा किया।

ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद उभरते खतरों से मुकाबले को सतर्क रहें तीनों सेनाएं : सीडीएस अनिल चौहान 

तेजप्रताप यादव

लालू यादव ने बेटे तेजप्रताप काे पार्टी से 6 साल के लिए किया निष्कासित, परिवार से भी किया दूर

जीवन चंद्र जोशी

कौन हैं जीवन जोशी, पीएम मोदी ने मन की बात में की जिनकी तारीफ

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नई दिल्ली में आयोजित मुख्यमंत्री परिषद की बैठक में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने प्रतिभाग किया।

उत्तराखंड में यूसीसी: 4 माह में  डेढ़ लाख से अधिक और 98% गांवों से आवेदन मिले, सीएम धामी ने दी जानकारी

Leftist feared with Brahmos

अब समझ आया, वामपंथी क्यों इस मिसाइल को ठोकर मार रहे थे!

सीबीएसई स्कूलों में लगाए गए शुगर बोर्ड

Mann Ki Baat: स्कूलों में शुगर बोर्ड क्यों जरूरी? बच्चों की सेहत से सीधा रिश्ता, ‘मन की बात’ में पीएम मोदी ने की तारीफ

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies