मद्रास हाई कोर्ट ने ईसाई संस्थाओं की संपत्तियों, उनके फंड्स और अस्पतालों और स्कूलों, कॉलेजों जैसी संस्थाओं को वक्फ बोर्ड की ही तर्ज पर एक लीगल बोर्ड बनाकर उसके अंतर्गत लाकर उन्हें जबावदेह बनाने के लिए केंद्र और तमिलनाडु सरकार से ओपनियन मांगा है।
ये बात मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन सतीश कुमार ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान के तहत हिन्दुओं और मुस्लिमों के धर्मार्थ बंदोबस्त कानूनी नियमों के अधीन है। लेकिन ईसाइयों के लिए इस तरह की कोई संस्था नहीं है। ईसाइयों से जुड़े मामलों की एक मात्र जांच सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के तहत का केस दर्ज किया गया था। उल्लेखनीय है कि CPC की धारा 92 उन मुकदमों से संबंधित है, जिनमें अदालतों से प्रशासकों की नियुक्ति करने का अनुरोध किया जाता है।
क्या है पूरा मामला
मामला कुछ यूं है कि तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित नागरकोइल में स्कॉट क्रिश्चियन कॉलेज में संवाददाता की नियुक्ति और कर्मचारियों को सैलरी देने के तरीकों को लेकर एक याचिका मद्रास हाई कोर्ट में दायर की गई थी। एक समूह की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सतीश कुमार ने टिप्पणी की कि चर्चों के पास न केवल विशाल संपत्तियां हैं, बल्कि कई शिक्षण संस्थान भी ईसाइयों के अंतर्गत हैं। इस प्रक्रिया में जिन संस्थानों की रक्षा और सुरक्षा इन निर्वाचित व्यक्तियों से अपेक्षित है। उनका कहना था कि वे प्रशासनिक रूप से पीड़ित हैं, क्योंकि उनके धन को सत्ता संघर्ष को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।
हाई कोर्ट ने चर्च प्रशासन को और अधिक जबावदेह बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि अब ये वक्त आ गया है कि चर्चों के लिए भी एक स्थायी समाधान खोजा जाए। जस्टिस सतीश कुमार कहते हैं कि चूंकि इस क्षेत्र में कोई केंद्रीय कानून नहीं है, इसलिए इस संबंध में मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर केंद्र या राज्य सरकारों को कानून बनाने से कोई रोक नहीं हो सकती है।
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