विश्लेषण

बांग्लादेश में अब राष्ट्रपति पर निशाना, असली मकसद है संविधान हटाना

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सोनाली मिश्रा

बांग्लादेश में एक बार फिर से कथित छात्र सड़कों पर हैं। मंगलवार को अचानक राष्ट्रपति महल में हजारों प्रदर्शनकारियों ने घुसने की कोशिश की। बंगभवन के नाम से विख्यात इस भवन में हालांकि प्रदर्शनकारी घुस नहीं पाए, मगर जो फुटेज और वीडियो सामने आए हैं, उनमें यह देखा जा सकता है कि कैसे हजारों लोग पुलिस के साथ लड़ रहे हैं।

बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री शेख हसीना को मुल्क छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उसके बाद सभी ने उस घृणा को देखा था जो शेख हसीना के अस्तित्व से उस भीड़ को थी। बार-बार यह प्रश्न उठाया कि क्या वह वास्तव में छात्र ही थे, जो शेख हसीना का विरोध कर रहे थे। शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद से ही वहां दमन का दौर जारी है। न्यायाधीशों से लेकर प्रोफेसर्स तक के इस्तीफे लिए जा रहे हैं। लोगों को जेल भेजा जा रहा है। अब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति पद के पीछे पड़ गए हैं और कहीं न कहीं राष्ट्रपति पद के बहाने उनका निशाना वह संविधान है, जिसे शेख मुजीबुरहमान के बांग्लादेश में बनाया गया था। खास बात यह भी है कि अभी हाल ही में पाकिस्तान में संविधान में बड़ा संशोधन किया गया है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पर कतर दिए गए।

मगर राष्ट्रपति के लिए इस सीमा तक गुस्सा क्यों है? और वह भी तब जब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हो गया है? दरअसल बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने शनिवार को बांग्ला दैनिक मानब जमीन से बात करते हुए यह कह दिया था कि उनके पास ऐसे कोई भी दस्तावेजी सबूत नहीं है, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि शेख हसीना ने छात्र आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शन के समय इस्तीफा दे दिया था। यूनुस ने कहा था कि उन्होंने शेख हसीना का इस्तीफा लेने का कई बार प्रयास किया मगर उन्हें नहीं मिला। हो सकता है कि उनके पास समय न हो। हालांकि यह भी सच है कि 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश को दिए गए संदेश में उन्होंने यह कहा था कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने राष्ट्रपति को इस्तीफा दे दिया है और मैंने उसे रिसीव कर लिया है। अब इस घटना के बाद एक बार फिर से छात्र सड़कों पर उतर आए हैं क्योंकि लोगों का कहना है कि राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं।

इस्तीफे की प्रति कितनी है जरूरी?

इस्तीफा कितना जरूरी है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि यही वह कुंजी है, जिससे होकर अंतरिम सरकार मोहम्मद यूनुस की सरकार की वैधता का रास्ता जाता है। यदि इस्तीफे की प्रति नहीं मिलती है तो अंतरिम सरकार वैध सरकार नहीं हो सकती है। इसको लेकर अब अंतरिम सरकार के आलोचक भी सक्रिय हो गए हैं। बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने एक्स पर लिखा कि शेख हसीना ने इस्तीफा नहीं दिया है और वह अभी जिंदा है। इसलिए यूनुस सरकार अवैध है। इसके बाद उन्होंने दूसरा पोस्ट लिखा कि बांग्लादेश में सभी ने झूठ बोला। सेना प्रमुख ने कहा कि हसीना ने इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति ने कहा कि हसीना ने इस्तीफा दे दिया है। यूनुस ने कहा कि हसीना ने इस्तीफा दे दिया है। लेकिन किसी ने भी इस्तीफा नहीं देखा है। इस्तीफा भगवान की तरह है, हर कोई कहता है कि यह वहाँ है, लेकिन कोई भी यह नहीं दिखा सकता या साबित नहीं कर सकता कि यह वहाँ है।

मगर इन प्रदर्शनों में एक बात जो सबसे ज्यादा खतरनाक उभर कर आई कि कथित प्रदर्शनकारी छात्र संगठनों सहित अन्य प्रदर्शनकारियों ने पांच मांगें की हैं। इनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण मांग है कि राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन का इस्तीफा और साथ ही वर्ष 1972 में लागू किए गए संविधान को हटाया जाए। एंटी-डिस्क्रिमनैशन स्टूडेंट्स मूवमेंट के एक समन्वयक हसनत अब्दुल्ला ने कहा कि हमारी पहली मांग है कि तत्काल ही मुजीब समर्थक 1972 का संविधान हटाया जाए, जिसके कारण चुपपु (राष्ट्रपति का लोकप्रिय नाम (निक नेम) अभी तक राष्ट्रपति है।

अब्दुल्ला ने अंतरिम यूनुस सरकार को धमकी दी कि अगर उनकी मांग एक सप्ताह के भीतर नहीं मानी गई तो वे एक बार फिर से सड़कों पर लौटेंगे। हालांकि यह भी सच है कि अंतरिम सरकार के पास यह संवैधानिक शक्ति नहीं है कि वह राष्ट्रपति को पद से हटा पाए, इसीलिए शायद यह जिम्मेदार प्रदर्शनकारियों को दे दी गई है कि वे राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन करें और उन्हें इस्तीफे के लिए बाध्य करें। ऐसा नहीं है कि संविधान बदलने की बात शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद पहली बार हो रही है। शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के कुछ दिनों बाद ही यह मांग उठाई गई थी कि मुजीबुर्रहमान द्वारा बनाया गया संविधान बदला जाए। हालांकि उस समय यह मांग इस्लाम के अनुपालन में कायदे और कानून बनाने की थी। प्रदर्शनकारी कैसा संविधान चाहते हैं, यह अभी तय नहीं हुआ है।

ढाका ट्रिब्यून के अनुसार हसनत का कहना है कि नए राष्ट्रपति के नाम पर मोहर सभी पार्टियों के साथ चर्चा करके लगाई जाएगी। क्योंकि यदि बिना किसी नए नाम के राष्ट्रपति को हटाया जाता है तो पड़ोसी मुल्कों को हमारे खिलाफ साजिश रचने की आजादी मिल जाएगी। अब इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि किस पड़ोसी मुल्क की बात की जा रही है। हसनत का इशारा शायद भारत की तरफ ही है। यह बार-बार कथित छात्र आंदोलनकारियों की ओर से कहा गया कि शेख हसीना तानाशाह थीं, उन्होनें 15 वर्ष तक घोटाले आदि किए, मगर संविधान तो बांग्लादेश की नींव डालने वाले शेख मुजीबुर्रहमान की सरकार में बना और लागू हुआ था, तो उस संविधान से क्या समस्या है?

या फिर कहें इन कथित प्रदर्शनकारियों को शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा बनाए गए उस समय के नए बांग्लादेश से ही समस्या है और इसीलिए संविधान पर निशाना है, क्या इनका लक्ष्य बांग्लादेश की मुजीबुर्रहमान की पहचान मिटाकर ईस्ट पाकिस्तान या असली पाकिस्तान की पहचान वापस पाना है?

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