उत्तराखंड

उत्तराखंड में ईसाई मिशनरियों का कन्वर्जन अभियान तेज, साक्ष्यों के अभाव में धर्मांतरण कानून बेअसर.?

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दिनेश मानसेरा

खटीमा (उत्तराखंड) राज्य के नेपाल सीमा से लगे खटीमा सितारगंज नानकमत्ता विधानसभा क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों का जाल बिछा हुआ है, ईसाई मिशनरियां न सिर्फ यही बसी महाराणा प्रताप के वंशज मानी जाती थारू बुक्सा जनजाति को ईसाई बना रही है बल्कि सिक्खों और जौनसारी जनजाति में भी कन्वर्जन का काम करने में लगी है।

उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था तब से लेकर अब तक या कहें आज़ादी के कुछ समय बाद से ही ईसाई मिशनरियों ने अपना कन्वर्जन का कार्य कर रही है। चिकित्सा और शिक्षा के बहाने सेवा कार्य करने वाले मिशनरियो ने जनजाति क्षेत्रो में अपना काम पहले फैलाया। नदी किनारे रहने वाली मलिन बस्तियों में भी ईसाई मिशनरियां अपने स्थानीय नेटवर्क से पहुंच रही है।

खास बात ये कि नेपाल से लगे इस सीमांत राज्य में चर्च और मिशनरियां इस लिए सक्रिय हुई कि ये इलाका अत्यंत ही पिछड़ा हुआ था। थारू बुक्सा जोकि महाराणा वंशज कहलाती है,मुगलो के आतंक से यहां तराई के जंगलों में आकर बसी थी,आज़ादी के बाद इन्हें यहां कानूनी रूप से  इन्हें जनजाति का दर्जा दिया गया और इन्हें नौकरियों में आरक्षण जैसी सुविधाएं भी दी गयी।

चर्च ने यहीं से अपना खेल शुरू किया कि सरकारी पदों पर ईसाई कैसे काबिज हो? इसके लिए चर्च मिशनरियो ने यहां मिशनरी कान्वेंट स्कूल खोले और अच्छी शिक्षा के लिए जनजाति के बच्चो और उनके परिवारों को प्रलोभन देकर  ईसाई बनने का ताना बाना बुना और तब से ये कन्वर्जन का षड्यंत्र आजतक चला आरहा है।

राणा वशंज, सिखो में राय और मजबी जाति जो कभी कट्टर हिन्दू थे वो भी हिंदू धर्म से ही विमुख होने लगे। विदेशों से मिशनरियो को मिलने वाले सहायता से कन्वर्जन का अभियान बड़े पैमाने पर चलाया गया जो अभी भी चल रहा है।थारू बुक्सा जनजाति की 40 प्रतिशत आबादी चर्च के चंगुल में फंस कर ईसाई बन चुकी है।

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से मिशनरियो के विदेशी मदद पर रोकथाम तो हुई लेकिन चर्च मिशनरी संचालित स्कूलों ने अपने यहां पढ़ने वाले सम्पन्न हिन्दू बच्चों की फीस में वृद्धि करके इस पैसे को कन्वर्जन में लगाने का रास्ता खोज लिया है। यानि हिन्दू सम्पन्न परिवारों के पैसों से ही अब कन्वर्जन होने लगा है।

अब ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां केरल से आई नन या सफेद चौला पहने पादरी नही चलाते है अब इनके द्वारा ईसाई बनाए गए हिंदू पुरुष महिलाए ही ये कार्य कर रही है, चर्च की जगह प्रार्थना भवन या मंदिर,  आश्रम ,संत जैसे शब्दों को इस्तेमाल करने वाले ईसाई प्रचारक भी अब भगवा वस्त्र धारण करते है,सिक्खों में काम करने वाले प्रचारक पादरी सिक्खों की वेशभूषा में बकायदा पगड़ी कृपाण धारक होकर राय सिक्खों में धर्मान्तरण का काम कर रहे है। इनके नाम भी हिंदू है लेकिन काम हिंदू विरोधी है। जैसे जौनसार क्षेत्र चकराता में स्थानीय युवक सुंदर सिंह चौहान को इन मिशनरियों ने ईसाई बनाया फिर उसे चर्च का पादरी बनाते हुए स्थानीय लोगो को कन्वर्जन कराने के काम में लगा दिया।  जौनसार क्षेत्र में कई फोक सिंगर भी चर्च के प्रभाव में काम कर रहे है।

खुफिया जानकारी के अनुसार हरबर्टपुर का एक नाम हॉस्पिटल और हल्द्वानी ग्रामीण क्षेत्र का एक अस्पताल ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। नैनीताल जिले का मैथोडिस्ट चर्च जिसे अब सात ताल आश्रम के नाम से जाना जाता है, मिशनरियों के द्वारा संचालित है।

खुफिया रिपोर्ट के अनुसार अभी ऐसे ही सितारगंज क्षेत्र में रमेश कुमार को रमेश मैसे बना कर उसे पास्टर का पद दे दिया। रमेश मैसी ने तो विधायक का चुनाव भी लड़ा और इस समय कन्वर्जन अभियान का सबसे बड़ा अधिकारी माना जाता है। राणा जनजाति समुदाय में  दान सिंह राणा, गोपाल राणा को ईसाई धर्म के प्रचार में लगा दिया। झांझरा क्षेत्र में पास्टर डा. चांदना का नाम ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार में लिया जाता है।

पंजाब के बाद सबसे ज्यादा सिक्ख तराई में बसते है और इनमें अनुसूचित जाति के राय सिक्ख है जिनको ईसाई बनाने का काम मिशनरियां कर रही है। चर्च की प्रार्थना सभाओं में पगड़ीधारी सिक्खों को देख कर हैरानी तब होती है जब सिक्खों के पवित्र तीर्थस्थल श्री नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा यहां स्थापित है और सिक्ख कौम हमेशा गुरु घर के प्रति कट्टर आस्था रखती आयी है।

सितारगंज विधानसभा में ईसाई मिशनरियों केसबसे बड़े कन्वर्जन केंद्र अनुग्रह आश्रम में प्रत्येक रविवार को भक्ति पाठ के नाम पर  थारू समाज व राय सिक्ख समाज के अनेक लोग यहां फादर से बात अपनी परेशानियां जाहिर कर समाधान पाते हैं फादर इन्ही से ईसा मसीह का गुणगान करने से सब दुख दर्द  दूर होने की बात करते हैं। दूरदराज से आए लोग प्रत्येक रविवार को लगभग चार घंटे की प्रार्थना के बाद चर्च के फादर से भी मिलते हैं। फादर उनके आर्थिक रूप से कमजोर होने का फायदा उठाकर उन्हें धन, घरेलू समान इत्यादि उपलब्ध कराकर लुभाने का भी प्रयास करते हैं। ऐसे ही सितारगंज में खटीमा रोड स्थित अराधलय केंद्र में कन्वर्जन का खेल चलता है।बच्चों से लेकर बड़ो के लिए ऑनलाइन ईसा मसीह के वीडियो यहां से जारी किए जाते है ।

इसमें आसपास के गांव थारू बाघोरी, पैरपुरा, पिंडारी, सजनी आदि गाव के थारू समाज के लोग प्रतिभाग करते हैं। ईसाइयत का प्रचार प्रसार करने के लिए ईसाई मिशनरी छोटे बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के नाम पर विभिन्न शिक्षण संस्थान भी चला रही हैं। जिनमें छोटे बच्चों को ईसा मसीह के जीवन परिचय के साथ-साथ बाइबल के बारे में भी जानकारी देते हैं। छोटे बच्चों को जरूरत का सामान जैसे कॉपी, किताब, पेन, पेंसिल खिलोने और अब ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन तक भी मिशनरी शिक्षण संस्थानों से निशुल्क प्राप्त हो जाता है।बचपन से ही चर्च ईसा मसीह के किस्से सुन जब बच्चा बड़ा होकर उच्च शिक्षा में जाता है तो वो पूरी तरह से चर्च में रंग जाता है।

खटीमा विधानसभा क्षेत्र नेपाल सीमा से लगा हुआ है यहां अमाउ  चर्च मिशनरी खुलकर कन्वर्जन का काम करती है इनके वाहन   नेपाल में बेरोकटोक आते जाते देखे गए, नेपाल में माओवादी आंदोलन चला और उसी दौर में भारत के नेपाल सीमा से लगे  रंसाली कड़ापानी के जंगलों के वन ग्रामों तक ईसाई मिशनरियां पहुंच गई है ।ईसाई मिशनरियों के चर्च मोहम्मद पुर भुड़िया लोहियापुल, उमरकला, फुलईयां, मझोला, पोलीगंज में सक्रिय है।

इनका इतना बड़ा नेटवर्क स्थापित हो चुका है जिसकी कल्पना भी नही की जासकती। मलिन बस्तियों में अब ये मिशनरियां कहीं भी प्रार्थना केंद्र बना कर अपने लक्ष्य साध रही हैं। खास बात ये भी है कि कन्वर्जन कराने वाले कोई साक्ष्य ऐसा नहीं छोड़ते जिससे ये साबित होता हो कि यहां किसी का धर्म परिवर्तन करवाया गया हो। अब धर्म परिवर्तन करने के लिए कोई नाम नहीं बदला जाता।

पुख्ता जानकारी ये भी है कि ईसाई मिशनरियों ने उत्तराखंड में रहने वाले गरीब नेपाली मूल के लोगो का भी कन्वर्जन अभियान शुरू किया है,धर्म परिवर्तन करने वाले नेपाली लोगो के जरिए अब मिशनरियां पड़ोसी देश नेपाल देश के भीतर भी पहुंच गई है।इनका नेटवर्क खटीमा सितारगंज से संचालित हो रहा है।

एडवोकेट अमित रस्तोगी कहते है कि थारू बुक्सा जनजाति दर्जा प्राप्त है और ये ईसाई बन जाने के बाद अल्पसंख्यक होने का भी फायदा उठाती आरही है जबकि उत्तराखंड में 2018 के कन्वर्जन कानून में और सख्त धाराएं ला कर 2024  में  कन्वर्जन विधेयक  को कानून का रूप दिया गया जिसके मुताबिक यदि कोई अल्पसंख्यक बन जाता है तो उसे जनजाति श्रेणी की सुविधायों से वंचित किया जा सकता है। इन पर भारी जुर्माना और कठोर कारावास की सजा का भी प्रावधान किया गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी का बयान

राज्य में कन्वर्जन की घटनाएं रोकने के लिए ही सरकार ने कठोर धर्मांतरण कानून लागू किया है, धर्म परिवर्तन करने वाले और करवाने वाले दोनो बक्शे नही जाएंगे और उनसे उनके आरक्षण संबंधी अधिकार भी छीन लिए जाएंगे।

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