आज मैसूर (कर्नाटक) में अशोदया समिति द्वारा दलित सेक्स वर्क्स बहनों के एक विशाल सम्मेलन में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाणा ने सहभागिता की। इस दलित महिला सेक्स वर्क्स सम्मेलन का उद्देश्य दलित सेक्स वर्कर्स की समस्याओं को समझना और उनके अधिकारों के लिए काम करना था।
अशोदया समिति और उनकी भूमिका
अशोदया समिति, जिसे 2004 में स्थापित किया गया था, एक सेक्स वर्कर्स द्वारा संचालित संगठन है। यह संगठन मैसूर, मंड्या, कोडागु और चिकमगलूर जिलों में लगभग 1,20,000 सेक्स वर्कर्स के साथ कार्य करता है। ये महिलाएं कई छोटे गाँवों से आती हैं और मुख्य शहरों में काम करती हैं। हर गाँव में स्थानीय नेता होते हैं जो महिलाओं के साथ लगातार संपर्क में रहते हैं। अशोदया समिति का मुख्य उद्देश्य सेक्स वर्कर्स में एचआईवी की रोकथाम करना और सरकारी अस्पतालों के माध्यम से उपचार और देखभाल प्रदान करना है। पिछले दो दशकों में इसने एचआईवी दर को 25% से घटाकर 1% से भी कम कर दिया है। अशोदया सदस्यता की लगभग 50% महिलाएं दलित सेक्स वर्कर्स हैं, जो अत्यधिक हाशिए पर हैं। इन्हें सेक्स वर्कर्स के रूप में ही नहीं, बल्कि दलित महिलाओं के रूप में भी कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, और यदि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं तो यह एक त्रिगुणीय संकट बन जाता है।
सम्मेलन में उठाई गई मुख्य समस्याएं-
सम्मेलन में उपस्थित दलित सेक्स वर्कर्स ने अपनी समस्याओं को निम्नलिखित बिंदुओं में प्रस्तुत किया।
आवश्यक दस्तावेजों की कमी
अनेक महिलाओं के पास आधार कार्ड होने के बावजूद, राशन कार्ड, हेल्थ कार्ड, इंश्योरेंस, आयुष्मान भारत या गृहलक्ष्मी योजना जैसे दस्तावेजों की कमी है, जिससे उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
एचआईवी से जीवनयापन का खर्च
सरकारी अस्पताल से दवाइयां प्राप्त करने के बावजूद, एचआईवी के साथ जीवनयापन महंगा पड़ रहा है, जिससे वे लगातार आर्थिक तंग में हैं।
बच्चों की शिक्षा
महिलाओं के बच्चों को स्कूल भेजना है, लेकिन होस्टल फीज़ और अन्य शैक्षणिक खर्चे भारी हैं।
व्यावसायिक कौशल की आवश्यकता
कई महिलाएं उम्रदार हो रही हैं और उनके लिए पूरक आजीविका के लिए व्यावसायिक कौशल विकसित करना आवश्यक है।
पुलिस और अधिकारियों से चुनौतियां
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद, पुलिस और अधिकारियों से समस्याएं हो रही हैं, जिससे उनमें भय उत्पन्न हो रहा है।
संसाधनों की कमी
आशोदया समिति उनके लिए एक मजबूत स्तंभ है और अधिकारियों के बीच उनके हितों का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन महिलाओं और संगठन को संसाधन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
किशोर मकवाणा की पहल
किशोर मकवाणा ने दलित सेक्स वर्कर्स की समस्याओं को समझने के लिए उनके मोहल्ले में जाकर उनकी वास्तविक स्थिति देखी। उनके घर में गरीबी और आर्थिक बेहतरी की कमी स्पष्ट रूप से दिखी। मकवाणा ने यह भी जाना कि अधिकांश महिलाओं के पास आयुष्मान भारत, राशन कार्ड या अन्य आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इस समस्या को सुलझाने के लिए मकवाणा ने जिला कलेक्टर से मुलाकात की और उन्होंने जिला अधिकारियों से तत्काल इस मुद्दे को संबोधित करने का वचन लिया। उन्होंने आशोदया और जिला कलेक्टर कार्यालय के बीच एक इंटरफेस बनाने की योजना बनाई, जिससे इन महिलाओं को उनके अधिकारों का लाभ मिल सके।
19 अक्टूबर 2024 का सम्मेलन
19 अक्टूबर 2024 को मैसूर शहर में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें 800 दलित सेक्स वर्कर्स ने हिस्सा लिया। इस समारोह में अध्यक्ष मकवाणा, अशोदया के कार्यक्रम निदेशक श्रीमती लक्ष्मी और सलाहकार डॉ. सुंदर सुन्दरारामन ने हिस्सा लिया। हिंदी से कन्नड़ और इसके विपरीत समकालीन अनुवाद के माध्यम से सभी उपस्थित लोगों को कार्यक्रम की जानकारी दी गई।
सम्मेलन के दौरान, मकवाणा ने महिलाओं को संबोधित करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने महिलाओं और दलितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन योजनाओं का लाभ इन महिलाओं को भी मिले। उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा संविधान में दिए गए न्याय और अधिकारों का भी उल्लेख किया, और कहा कि यह अधिकार इन महिलाओं को भी मिलना चाहिए।
आगे की योजनाएं-
मकवाणा ने महिलाओं को आश्वस्त किया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग दलित सेक्स वर्कर्स के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए गंभीरता से प्रयास करेगा। उन्होंने बताया कि एक सिंगल विंडो सुविधा डेस्क स्थापित की जाएगी, जहाँ सरकारी अधिकारी सप्ताह में तीन दिन आएंगे और आवश्यक दस्तावेजों तथा सेवाओं को प्राप्त करने में महिलाओं की मदद करेंगे। इसके अलावा, कौशल प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास के लिए भी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे, जिससे महिलाएं अपनी आजीविका के लिए वैकल्पिक साधन विकसित कर सकें।
यह दौरा न केवल दलित सेक्स वर्कर्स की समस्याओं को समझने का था, बल्कि उनके लिए एक सशक्त और सुरक्षित भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त करने का प्रयास था। मकवाणा की पहल से उम्मीद है कि इन महिलाओं को उनके अधिकारों का पूरा लाभ मिलेगा और उनका सामाजिक व आर्थिक उत्थान सुनिश्चित होगा।
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