उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जनसंख्या असंतुलन यानी डेमोग्राफिक चेंज को परमाणु बम से कम खतरनाक नहीं बताया है। अगर हम अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर गौर करें तो पाते हैं कि यह मसला काफी गंम्भीर रूप ले चुका है। पांच राज्यों असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सीमावर्ती राज्य हैं, इसलिए इस समस्या पर ज्यादा गहराई से विचार करना समय की मांग है।
जनसंख्या असंतुलन राजनीतिक व सामाजिक समीकरण को काफी प्रभावित करते हैं। भारत के चुनावी इतिहास में कम से कम तीन बार एक वोट के अंतर से चुनाव का परिणाम देखने को मिल चुका है। जनसंख्या का यह असंतुलन राजनितिक लाभ के लिए करवाया जा रहा है। कई राज्य हैं जैसे उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, झारखण्ड व दिल्ली, जहां हर विधानसभा क्षेत्र में दो से तीन हजार नए मुस्लिम बनाकर राजनीति को पूरी तरह से पलटने की साजिश के तौर पर देखा जा सकता है।
वर्तमान में झारखण्ड व महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है। हम पहले झारखण्ड के संथाल क्षेत्र के जनसंख्या असंतुलन की चर्चा करें तो पाते हैं कि यहां पर राजनीतिक व सामाजिक स्वार्थों के चलते जान-बूझकर जनसंख्या असंतुलन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इन आकड़ों से स्पष्ट है कि वनवासी समाज (जनजातीय) की जनसँख्या में 1951 की तुलना में 2011 में 16.6 प्रतिशत की कमी आयी है, वहीं मुस्लिम आबादी में 13.30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 1951 से 2011 तक मुस्लिम आबादी में 4 .40 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। अब सवाल उठता है कि यह किस मंशा के तहत किया जा रहा है क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर प्राकृतिक तौर पर जनसंख्या का बदलाव नहीं देखा जा सकता है।
असम में मुस्लिम जनसँख्या पर गौर करे तो संथाल की तरह ही वहां भी बेहताशा वृद्धि देखी जा रही है। असम में मुस्लिम जनसँख्या विगत 120 सालों में 45 गुना बढ़ चुकी है। एक रिसर्च के मुताबिक अगले 20 साल में यानी 2040 तक असम एक मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य बन जाएगा।
पश्चिम बंगाल के जनसंख्या असंतुलन की कहानी भी काफी गंभीर है। आजादी के बाद बंगाल में मुस्लिमों की आबादी पांच गुना बढ़ गई है।
जहां पूरे देश में मुस्लिम जनसँख्या की वृद्धि दर 1951 से 2011 के बीच 4.4 प्रतिशत है, वही पश्चिम बंगाल में यह 7.2 प्रतिशत देखी गई है।
उत्तराखंड में भी मुसलमानों की आबादी बेहताशा बढ़ती जा रही। असम के बाद उत्तराखंड में सबसे तेजी से मुस्लिम जनसंख्या बढ़ रही है। उत्तराखंड में 2001 से 2011 में बीच 39 प्रतिशत मुस्लिम जनसख्या में वृद्धि हुयी है। उत्तराखंड में उधमसिंह नगर, नैनीताल व देहरादून में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है।
असम में अवैध बांग्लादेशियों की जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि देखी जा रही है। असम में कांग्रेस पार्टी का लम्बे समय तक शासनकाल रहा, जिसमें अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को काफी प्रश्रय दिया गया। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री स्वर्गीय तरुण गोगोई के समयकाल में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को गुपचुप मदद ही की गई।
1961 2.95
1971 7
1991 21.2
2001 42.35
असम में असम गण परिषद के शासनकाल में यह समस्या थोड़ी कम अवश्य हुयी मगर कांग्रेस के समय में यह समस्या और बढ़ गई। असम में वर्तमान हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार इस समस्या के समाधान के लिए कड़े कदम उठा रही है। असम, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में एकाएक जनसंख्या असंतुलन को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। असम के सीमावर्ती जिलों व लोकसभा का 2024 का परिणाम भी कुछ अलग ही बयान करता है। धुबरी लोकसभा सीट पर विगत तीन लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक मतदाम दर्ज किया गया है। साथ ही इस बार तीन बार के सांसद बदरुद्दीन अजमल 10 लाख से अधिल मतों से परिजित हुए है।
इस लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक मतों से इसी क्षेत्र का फैसला हुया है। इस लोकसभा चुनाव में लगभग सभी मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने ही बढ़त बनाई है। बदरुद्दीन अजमल की पार्टी 3 लोकसभा की सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें 25 विधानसभ की सीट हैं मगर उनकी पार्टी द्वारा एक भी सीट पर बढ़त नहीं बनाया जाना एक बड़े राजनीतिक वो जनसांख्यिकी असंतुलन की ओर संकेत करता है।
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