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अखिलेश यादव की जेपी की विरासत पर दावेदारी की जिद्द और कांग्रेस के साथ दोस्ती भी?

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सोनाली मिश्रा

सपा प्रमुख अखिलेश यादव सम्पूर्ण क्रांति का नारा देने वाले जय प्रकाश नारायण की जयंती मनाने को लेकर पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार से भिड़ गए थे। पिछले वर्ष भी यही हुआ था और इस वर्ष भी यही हुआ। जय प्रकाश नारायण ने कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार की तानाशाही के विरुद्ध सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था। कौन भूल सकता है कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं, तो उन्होनें कैसे धीरे-धीरे सारी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण कर लिया था। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठता को किनारे करते हुए ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था।

इंदिरा गांधी जिस प्रकार से हर संवैधानिक संस्था को अपनी मर्जी से चलाना चाहती थीं, और उस संविधान को ताक पर रख रही थीं, जिस संविधान और जिस स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने जीवन बलिदान कर दिया था, तो इस अन्याय को जय प्रकाश नारायण बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। इस पर उन्होंने इंदिरा गांधी की इस तानाशाही के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था।

जेपी की इस सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन से निकले हुए शिष्य रहे सपा के संस्थापक मुलायम सिंह और जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार तथा राजद के लालू प्रसाद यादव जैसे नेता। कांग्रेस विरोधी राजनीति में जयप्रकाश नारायण को तमाम अत्याचार झेलने पड़े थे। जय प्रकाश नारायण ने महात्मा गांधी एवं जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर भारत को अंग्रेजों के जाल से मुक्त कराने के लिए आंदोलन किया था। मगर यह विडंबना ही थी कि उन्हें उनके ही देश के अंग्रेजों से आजाद होने के बाद फिर से कॉंग्रेस की तानाशाही के विरुद्ध सम्पूर्ण क्रांति का नारा देना पड़ा था और आजादी की दूसरी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस लड़ाई में वह जनता को कांग्रेस की तानाशाही शक्ल दिखा रहे थे। जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तो उस समय जय प्रकाश नारायण को भी हिरासत में ले लिया गया था।

जय प्रकाश नारायण को आपातकाल के दौरान जब गिरफ्तार किया गया था तो अन्य नेताओं की तरह किसी को नहीं पता था कि उन्हें कहां ले जाया गया है। उन्हें गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार किया गया था। पीजीआई चंडीगढ़ में नजरबंद किया गया था। उन्हें ऐसी जगह रखा गया था, जहां न ही धूप थी और न ही हवा। वे किसी से बात नहीं कर सकते थे। वे नजरबंद रहते हुए ही इस सीमा तक बीमार हो गए थे कि कांग्रेस की सरकार को उन्हें मजबूरी में रिहा करना पड़ा था। बाद में उन्हें मुंबई जब इलाज के लिए ले जाया गया था, तो पता चला था कि उनकी दोनों किडनी खराब हो गई हैं और उन्हें अब जिंदगी भर डायलिसिस पर ही रहना होगा। यह वाकया हुआ था वर्ष 1975 में। जेपी का निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ। वे 1975 से लेकर अपनी मृत्यु तक डायलिसिस पर ही रहे। इस बीमारी का उत्तरदायी क्या आपातकाल के दौरान उन्हें मिली नजरबंदी नहीं थी?

इंदिरा गांधी के खिलाफ राज नारायण के मुकदमे में उनके वकील जेपी गोयल ने अपने संस्मरणों में ऐसा दावा किया है कि उन्हें यह संदेह था कि जय प्रकाश नारायण को कहीं खाने में कुछ दिया तो नहीं जा रहा है? हालांकि उन्होंने यह कहा था कि डॉक्टर ऐसा नहीं कर सकते हैं, मगर इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। जो व्यक्ति आपातकाल लगने से एक दिन पहले तक स्वस्थ थे, सम्पूर्ण क्रांति के लिए रैली कर रहे थे, वही आपातकाल में जब नजरबंद होते हैं, तो इस स्थिति में बाहर आते हैं कि उनकी दोनों किडनी ही काम करना बंद कर चुकी हों।

जय प्रकाश नारायण को नजरबंद करने वाली कांग्रेस के साथ अखिलेश

जब लखनऊ में जेपी की जयंती पर अखिलेश यादव उनकी विरासत को संभालने का दावा करते हैं, तो यह चर्चा होनी स्वाभाविक है कि वे दोतरफा कैसे चलने का प्रयास कर रहे हैं? एक तरफ तो वे उसी कांग्रेस का साथ लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा उपचुनाव में लिए हुए हैं, जिस कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता के कारण देश पर आपातकाल लगा और जय प्रकाश नारायण को नजरबंद किया गया और दूसरी तरफ वे जय प्रकाश नारायण की जयंती भी मनाना चाहते हैं?

ऐसा उस स्थिति में कैसे संभव है जब कांग्रेस ने अभी तक आपातकाल की घटना के लिए देश से माफी नहीं मांगी है? हालांकि आपातकाल हटाने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष मोहसिना किदवई ने लखनऊ दूरदर्शन के चुनाव प्रसारण दौरान कहा था कि पार्टी को यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आपातकाल के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करने में ज्यादती हुई थी और उन ज्यादतियों के लिए पार्टी खेद व्यक्त करती है। मगर कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने माफी मांगी हो ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

ऐसे में अखिलेश यादव भले ही जय प्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने की हठ में उत्तर प्रदेश प्रशासन से दो-दो हाथ कर लें, कि उन्हें उनके द्वारा शुरू किये गए जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर में जाने नहीं दिया जा रहा है, जो अभी कतिपय कारणों से बंद पड़ा है, परंतु वे तब तक जय प्रकाश नारायण की विरासत पर बात नहीं कर सकते, जब तक आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस के साथ वे राजनीतिक यात्रा कर रहे हैं। आपातकाल का विरोध करने वाले नेता की विरासत का दावा और आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस के साथ पक्की यारी, ये दोनों एकसाथ नहीं चल सकती हैं।

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