भारत के विभाजन से पहले, उस बंगभूमि पर भी दुर्गा पूजा के विशाल आयोजन होते थे, कभी वहां भी गांव गांव, शहर शहर पूजा के पंडाल सजते थे और हिन्दू पूरे भक्तिभाव के साथ उत्सव में शामिल होते थे। लेकिन अब पद्मा में बहुत पानी बह चुका है, आज कट्टरपंथी हिन्दुओं के घरों में की जा रही पूजा तक से चिढ़ते हुए घरों पर हमले कर रहे हैं। यूनुस ‘सरकार’ की दुर्गा पूजा की आड़ में चार दिन की छुट्टी के दौरान उन उन्मादियों को खुलकर हिन्दुओं पर कहर बरपाने का मौका न मिल जाए, इस बात का भी डर बढ़ गया है।
भारत के पड़ोसी इस्लामी देश में हिन्दुओं का जबरदस्त दमन चल रहा है। 5 अगस्त 2024 के बाद से, हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानकर उनके मानवाधिकारों का खुलेआम हनन करने की मजहबी उन्मादियों को खुली छूट देने वाली यूनुस की अंतरिम सरकार ने दुर्गा पूजा पर चार दिन की छुट्टी देकर आखिर दुनिया को झांसे में रखने की असफल नीति अपनाई है। उसे लगता होगा कि ‘उत्सव के आनंद’ को भरपूर तरीके से मनाने का यह झांसा शायद हिन्दुओं के खून से सने उसके चेहरे को उजला दिखा देगा। लेकिन ऐसा संभव नहीं है।
बांग्लादेश में जिस सरकार ने अब दुर्गा पूजा पर चार दिन की छुट्टी की मुनादी की है, यह वही सरकार है जिसने हिन्दू मंदिर समितियों को मजहबी उन्मादियों की तरफ से लिखकर दी गईं ‘सिर तन से जुदा’ की धमकियों को अनदेखा किया है। मंदिरों से कट्टरपंथियों ने इस बार दुर्गा पूजा मनाने देने के एवज में 5 लाख टका की फिरौती चिट्ठी भेजकर मांगी थी।
मजहबी कट्टरपंथी इस्लामवादियों की ऐसी धमकियों और उस पर प्रशासन से कोई मदद न मिलने के बाद, कितने ही मंदिरों ने इस बार परंपरागत पूजा का आयोजन न करने का फैसला किया है। खुलना सहित अनेक जिलों में इस बार पूजा का उत्साह देखने में नहीं आ रहा है। जिस प्रकार का आनंद भारत के विशेषरूप से पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तरपूर्वी राज्यों में देखने में आता है, वैसा जोश आज 7—8 प्रतिशत बची बांग्लादेश की हिन्दू आबादी में देखने को नहीं मिल रहा है। सब सशंकित हैं, भयभीत हैं, खौफ में हैं कि पंडाल लगाया तो स्थानीय मुस्लिम उन पर टूट पड़ेंगे और चार दिन की त्योहार की सार्वजनिक छुट्टी देने वाली सरकार उनकी मदद को नहीं आएगी।
दुर्गापूजा और दशहरा, हिन्दुओं के ये दोनों त्योहार इस बार उस इस्लामी देश में फीके रह जाने वाले हैं। ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर जैसी ‘कॉस्मेटिक सुरक्षा’ तक दूर—दराज के मंदिरों को वहां की उन्मादियों के इशारों पर चल रही ‘सरकार’ नहीं दे रही है। इसलिए पूजा में विघ्न डालने को तैयार असुर उन्मादियों के डर से वे पंडाल तक नहीं लगा पा रहे हैं। मंदिर के गर्भ गृह में ही मां दुर्गा की आराधना करने का मजबूर हैं।
परन्तु यूनुस के सलाहकार शायद दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि इस्लामी देश होकर भी वे कितने ‘सेकुलर’ हैं कि हिन्दुओं के इस उत्सव पर चार दिन सरकारी छुट्टी दे रहे हैं! उन्हें इस बड़े ‘सेकुलर’ कदम पर दुनिया भर की, विशेषकर पश्चिमी देशों की शाबाशी की उम्मीद है। लेकिन उनकी यह मंशा सफल इसलिए नहीं होगी क्योंकि अनेक मानवाधिकारी संगठन जानते हैं कि शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से हसीना के प्रति जितना आक्रोश कट्टर मजहबियों में बसा है वे सब वहां के बचे—खुचे हिन्दुओं पर आज भी उतारा जा रहा है।
किसी भी इस्लामी देश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिन्दुओं की जो दुर्गति हो रही है, बांग्लादेश के हिन्दू भी उससे अछूते नहीं रहे हैं। साल दर साल सुनियोजित तरीके से हिन्दू आबादी को ‘ठिकाने’ लगाने की जिन्ना के देश की मुहिम यहां भी चल रही है। आज कुल आबादी में सिर्फ 7-8 प्रतिशत बचे हिन्दू अपने घर तक में सुरक्षित नहीं हैं।
भारत के विभाजन से पहले, उस बंगभूमि पर भी दुर्गा पूजा के विशाल आयोजन होते थे, कभी वहां भी गांव गांव, शहर शहर पूजा के पंडाल सजते थे और हिन्दू पूरे भक्तिभाव के साथ उत्सव में शामिल होते थे। लेकिन अब पद्मा में बहुत पानी बह चुका है, आज कट्टरपंथी हिन्दुओं के घरों में की जा रही पूजा तक से चिढ़ते हुए घरों पर हमले कर रहे हैं। यूनुस ‘सरकार’ की दुर्गा पूजा की आड़ में चार दिन की छुट्टी के दौरान उन उन्मादियों को खुलकर हिन्दुओं पर कहर बरपाने का मौका न मिल जाए, इस बात का भी डर बढ़ गया है।
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