आंध्र प्रदेश

‘मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, समाजीकरण हो’

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WEB DESK

तिरुपति मंदिर में प्रसादम् को गंभीर रूप से अपवित्र करने से आहत विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने 24 सितंबर को एक प्रेस विज्ञपित जारी कर कहा कि अब मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, समाजीकरण होना चाहिए। इस दुर्भाग्यजनक महापाप की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कर दोषियों को कठोरतम सजा होनी चाहिए। साथ ही भगवान के भक्तों को समाविष्ट कर ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी चाहिए जिसमें इस तरह के षड्यंत्र की कोई संभावना न रह सके।

उन्होंने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर से मिलने वाले प्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिंदुओं की अगाध श्रद्धा होती है। दुर्भाग्य से इस प्रसाद के घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक समाचार आए हैं। पूरे देश का हिंदू समाज आक्रोशित है और हिंदुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है। उन्होंने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड करता है।

वहां केवल प्रसाद निर्माण के मामले में ही हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया, अपितु हिंदुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं। कई बार तो धर्म पर आघात कर हिंदुओं का कन्वर्जन करने वाली संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। इस प्रकार के समाचार तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक से भी मिल रहे हैं।

हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद सभी सरकारों से आग्रह करती है कि वे अपने द्वारा अवैधानिक और अनैतिक कब्जों में लिए गए सभी मंदिरों को अविलंब मुक्त करके उन्हें हिंदू संतों व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अंतर्गत सौंप दें।

कुछ दिन पूर्व ही समाचार आया था कि राजस्थान की पिछली कांग्रेस सरकार ने जयपुर के प्रसिद्ध श्री गोविंद देव जी मंदिर से 9 करोड़ 82 लाख रुपए ईदगाह को दिए थे। ये राज्य सरकारें मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर-हिंदू या यूं कहें कि हिंदू विरोधी कार्यों में करती रही हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई तो बार-बार दी जाती है, परंतु दुर्भाग्य से हिंदुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिंदुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं।

जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही हैं। अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर वे संविधान की धारा 12, 25 व 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही हैं। जबकि न्यायपालिका ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि सरकारों को मंदिरों के संचालन और उनकी सम्पत्ति की व्यवस्था से अलग रहना चाहिए।

क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिंदुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को तो अपने मजहबी संस्थान चलाने की अनुमति है, परंतु हिंदू को यह संविधान-सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्वविदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था।

अंग्रेजों ने चतुराई से उन पर नियंत्रण स्थापित करके उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी। तमिलनाडु में 400 से अधिक मंदिरों पर कब्जा करके वहां की हिंदू विरोधी सरकार मनमानी लूट कर रही है और न्यायपालिका के कहने के बावजूद खुलेआम हिंदुओं की आस्था और सम्पत्ति पर डाका डाल रही है। वहां के कई बड़े मंदिर विशाल चढ़ावे के बावजूद इतने घाटे में दिखाए जाते हैं कि उनमें पूजा-अर्चना तक की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती।

केरल के कई मंदिरों में इफ्तार पार्टी दी जा सकती है, लेकिन हिंदुओं को धार्मिक कार्यक्रमों के लिए भारी शुल्क देना पड़ता है। तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिंदू समाज का यह विश्वास और दृढ़ हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता।

हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद सभी सरकारों से आग्रह करती है कि वे अपने द्वारा अवैधानिक और अनैतिक कब्जों में लिए गए सभी मंदिरों को अविलंब मुक्त करके उन्हें हिंदू संतों व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अंतर्गत सौंप दें।

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