45 वर्षीया करतम जोगक्का गृहिणी हैं। वह बीजापुर जिले के गांव मेटलाचेरू की रहने वाली हैं। लगभग एक दशक पहले तक वे परिवार की छोटी-मोटी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में सहयोग करती थीं।
26 मार्च, 2012 को अपने पड़ोस की कुछ महिलाओं के साथ सुबह लगभग 10 बजे बकरी चराने जंगल में गई थीं। चरते-चरते कुछ बकरियां उनकी आंखों से ओझल हो गर्इं तो वे उन्हें ढूंढने के लिए निकलीं।
उन्होंने बहुत खोजा, लेकिन बकरियों का कुछ पता नहीं चला। निराश होकर बाकी बकरियों को लेकर वह जंगल से घर की ओर लौट रही थीं। रास्ते में पगडंडी पर नक्सलियों ने प्रेशर बम लगा रखा था।
जोगक्का का पैर प्रेशर बम पर पड़ा। तेज धमाका के साथ वह उछल कर दूर जा गिरीं। उनके दोनों हाथों और चेहरे पर चोटें आईं, जबकि दाहिना पैर शरीर से अलग हो गया।
आज स्थिति यह है कि जोगक्का को दैनिक क्रियाओं के लिए भी सहयोगी की जरूरत पड़ती है। वह लाठी के सहारे चलती हैं। एक पैर गंवाने के बाद वह अवसाद में रहती हैं। उन्होंने स्वयं को सार्वजनिक गतिविधियों से पूरी तरह दूर कर लिया है।
बहुत पूछने पर नपे-तुले शब्दों में उन्होंने स्थानीय भाषा में अपनी आपबीती सुनाई। अपनी व्यथा सुनाने के लिए भी उन्हें हिंदी बोलने-समझने वाले एक सहयोगी की जरूरत पड़ी, क्योंकि वे हिंदी नहीं जानती हैं। साहस जुटाकर वह दिल्ली आई थीं।
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