भारत

न देख सकता हूं, न चल सकता हूं

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WEB DESK

गांव बुरकापाल, जिला सुकमा के रहने वाले 50 वर्षीय माड़वी नन्दा के साथ नक्सलियों ने जो किया है, उसे वे देख भी नहीं सकते हैं। नक्सलियों द्वारा लगाए गए विस्फोटक से वे नेत्रहीन हो गए हैं।

बात 21 अक्तूबर, 2013 की है। सुबह वे अपने रोजमर्रा के काम निपटा कर खेती के काम से बाहर निकले। कुछ ही दूर गए होंगे कि अचानक धमाका हुआ। आवाज सुनकर गांव के लोग उधर भागे, तो देखा कि वहां का मंजर बड़ा भयानक था।

धमाके की जगह से दूर उछलकर गिरे माड़वी नन्दा का लहू-लुहान शरीर पड़ा था। हालत चिंताजनक थी। ग्रामीणों ने तो उन्हें मरा हुआ मान लिया था। इसलिए उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित किया।

पुलिस ने तत्परता के साथ हेलीकॉप्टर से माड़वी नन्दा को जगदलपुर अस्पताल भेजा। वहां इलाज के बाद उनकी जान बचा ली गई, पर उन्हें अब जीते-जी नर्क का कष्ट भोगना पड़ रहा है।

धमाके से उनकी दोनों आंखें चली गईं। पैरों में भी गंभीर चोट आई। अब हालात ऐसे हैं कि कभी अपने पूरे परिवार का भार संभालने वाले माड़वी स्वयं को परिवार पर भार मान रहे हैं।

दिखाई न देने और चलने में होने वाली दिक्कतों के कारण उनके साथ परिवार के एक सदस्य का रहना जरूरी हो जाता है। वे कहते हैं, ‘‘यदि भगवान को मुझे जिंदा ही रखना था, तो दोनों आंखें भी ठीक कर देते। अब न तो देखा जाता है और न ही चला जाता है। इससे अच्छा तो भगवान मुझे उसी समय उठा जाते।’’

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