नक्सली न तो बच्चों के प्रति दया दिखाते हैं और न ही महिलाओं के प्रति कोई सहानुभूति रखते हैं। ममता गोरला भी नक्सली हरकतों से पीड़ित हैं। 29 वर्षीया ममता गांव छिन्दगढ़, जिला सुकमा की रहने वाली हैं।
ये भी उस बस में बैठी थीं, जो 17 मई, 2010 को दंतेवाड़ा से सुकमा के लिए रवाना हुई थी। बस चिंगावरम पुलिया के पास पहुंची ही थी कि जोरदार धमाका हुआ।
लोग कुछ समझ पाते इसके पहले ही माओवादियों ने बस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। आईईडी धमाके और अंधाधुंध गोलीबारी में 15 ग्रामीणों की मौत हो गई और 12 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।
ममता के पैर और हाथों में चोट लगी थी। समय बीतने के साथ ही उनके घाव भी भर गए हैं, लेकिन मन में जो घाव बना है, वह अभी भी हरा है। 14 वर्ष बाद भी वे उस मंजर को भूल नहीं पा रही हैं।
कहती हैं, ‘‘मेरे घर वालों ने जरूर कुछ ऐसा पुण्य किया होगा, जिसने उस दिन मुझे काल के गाल से बाहर निकाल लिया था। ऐसा बुरा समय किसी को भी न देखना पड़े।’’
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