नक्सलियों के अत्याचारों से पीड़ित 36 वर्षीय हिड़मोराम मरकाम गांव मुंदेनार, जिला बस्तर के निवासी हैं। बात 23 मई, 2015 की है। बस्तर जिले के बातानार गांव में मेला भरा था। हिड़मोराम भी मेला देखने गए थे। लोग मेले का आनंद ले रहे थे।
पूरे मेले में उमंग और उसाह का वातावरण था, लेकिन जल्दी ही खलल पड़ गया। मेले में माओवादी आ धमके। उन्होंने वहां मौजूद लोगों पर हमला कर दिया। इस हमले की चपेट में हिड़मोराम मरकाम भी आ गए।
हमले की जानकारी मिलते ही पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया। पुलिस ने हवा में गोली चलाई। इसके बाद हमलावर वहां से भाग गए। यही नहीं, हमले के बाद मेला भी समाप्त हो गया। लोग डर के मारे अपने-अपने घर चले गए।
भीड़ छंटने के बाद वहां का दृश्य डरावना था। कई लोग धरती पर बेसुध पड़े थे। उनमें एक हिड़मोराम मरकाम भी थे। पुलिस ने इन सभी को अस्पताल पहुंचाया। हिड़मोराम मरकाम लहूलुहान थे।
माओवादियों ने उनकी कमर के ऊपर दाईं ओर, कंधे और पीठ पर धारदार हथियार से जानलेवा हमले किए थे। पुलिस की तत्परता और चिकित्सकों की मेहनत से उनकी जान तो बच गई, लेकिन आज भी वे डरे-सहमे रहते हैं। गहरे जख्मों ने उनकी शारीरिक जटिलताएं बढ़ा दी हैं।
ऊपर से मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में वे भी नक्सलियों की समाप्ति की कामना करते हैं। उनका कहना है कि नक्सलियों ने अनगिनत लोगों का जीवन बर्बाद किया है। उन्हें भी बर्बाद करना ही होगा।
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