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वीरांगना रानी दुर्गावती की बहादुरी: अकबर की तिलमिलाहट और गोंडवाना की रक्षा की गौरव गाथा

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डॉ. आनंद सिंह राणा

रानी दुर्गावती के गोंडवाना साम्राज्य की संपन्नता और समृद्धि की चर्चा कड़ा और मानिकपुर के सूबेदार आसफ खान द्वारा मुगल दरबार में की गई । धूर्त, लंपट और चालाक अकबर लूट और विधवा रानी को कमजोर समझते हुए बदनीयती से बलात् गोंडवाना साम्राज्य हथियाने के उद्देश्य से रानी को आत्मसमर्पण के लिए धमकाया और अपने दूत से यह परवाना लिख कर भेजा कि “अपनी सीमा राज की, अमल करो परमान। भेजो नाग सुपेत सोई, अरु अधार दीवान।।

परंतु गोंडवाना की निर्भीक, स्वाभिमानी, स्वतंत्र प्रिय और स्व की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी दुर्गावती नहीं मानी ।तब अकबर का एक और संदेश आया कि स्त्रियों का काम रहंटा कातने का है, तो रानी ने जवाब में अपने संदेश के साथ एक सोने का पींजन भेजा और कहा कि आपका भी काम रुई धुनकने का है। अकबर तिलमिला गया और उसने आसफ खान को गोंडवाना साम्राज्य की लूट और उसके विनाश के लिए रवाना किया। इसके पूर्व अकबर ने दो गुप्तचरों क्रमशः गोप महापात्र और नरहरि महापात्र को भेजा परंतु वीरांगना ने दोनों को अपनी ओर मिला लिया। उन्होंने अकबर की योजना और आसफ खाँ के आक्रमण के बारे में रानी दुर्गावती को सब कुछ बता दिया।

वीरांगना रानी दुर्गावती के मुगलों से 6 भीषण युद्ध

वीरांगना रानी दुर्गावती सतर्क हो गईं और सिंगौरगढ़ में मोर्चा बंदी कर ली। आसफ खान 6 हजार घुड़सवार सेना 12 हजार पैदल सेना एवं तोपखाने तथा स्थानीय मुगल सरदारों के साथ सिंगोरगढ़ आ धमका। इधर रानी दुर्गावती के साथ, उनके पुत्र वीर नारायण सिंह, अधार सिंह, हाथी सेना के सेनापति अर्जुन सिंह बैस, कुंवर कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि, महारुख ब्राह्मण, वीर शम्स मियानी, मुबारक बिलूच,खान जहान डकीत, महिला दस्ता की कमान रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी (वीर नारायण सिंह की होने वाली पत्नी) संभाली। अविलंब युद्ध आरंभ हो गया।

सिंगोरगढ़ का प्रथम युद्ध

आसफ खान ने आत्मसमर्पण के लिए कहा, वीरांगना दुर्गावती ने कहा कि किसी शासक के नौकर से इस संदर्भ में बात नहीं की जा सकती है। वीरांगना रानी दुर्गावती ने भयंकरआक्रमण किया, मुगलों के पैर उखड़ गये आसफ खान भाग निकला।
★सिंगौरगढ़ का द्वितीय युद्ध★ – प्रथम युद्ध की तरह पुनः मुगलों के वही हाल हुए, लेकिन मुगलों का तोपखाना पहुंच गया और रानी को जानकारी लग गयी उन्होंने गढ़ा में मोर्चा जमाया और सिंगोरगढ़ छोड़ दिया।

सिंगौरगढ़ का तृतीय युद्ध

सेनानायक अर्जुन सिंह बैस ने मुगलों के पैर उखाड़ दिए परंतु मुगलों का तोपखाना भारी पड़ गया। इसलिए सिंगोरगढ़ का किला एक रणनीति के अंतर्गत छोड़ दिया गया।

चंडाल भाटा (अघोरी बब्बा) का युद्ध
यह चौथा युद्ध था जिसका उद्देश्य मुगल सेना को पीछे हटाना था ताकि वीरांगना रानी दुर्गावती गढ़ा से बरेला के जंगलों की ओर निकल जाए।चंडाल भाटा के मैदान में घमासान युद्ध हुआ और सेनानायक अर्जुन सिंह बैस ने आसफ खाँ को बहुत पीछे तक खदेड़ दिया। वीरांगना ने तोपखाने से निपटने के लिए एक शानदार रणनीति बनायी जिसके अनुसार बरेला (नर्रई) के सकरे और घने जंगलों के मध्य मोर्चा जमाया ताकि तोपों की सीधी मार से बचा जा सके।

गौर नदी का युद्ध

गौर नदी पर आसफ खान ने तोपखाना ले जा के लिए पुल का निर्माण करवाया, जिसे ध्वस्त करने के लिए गये महारथी अर्जुन सिंह बैस लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन के 15वें बड़े और मुगलों से 5वें युद्ध में 22 जून 1564 को स्वतंत्रता,स्वाभिमान और शौर्य की देवी – विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती ने,प्रात:सेनानायक अर्जुन सिंह बैस के बलिदान होने का समाचार मिलते ही “अर्द्धचंद्र व्यूह”बनाते हुए “गौर नदी के युद्ध” में आसफ खाँ सहित मुगलों की सेना पर भयंकर आक्रमण किया और पुल तोड़ दिया ताकि तोपखाना नर्रई (बरेला) न पहुँच सके। मुगल सेना तितर-बितर बितर हो गई जिसको जहां रास्ता मिला भाग निकला। वीरांगना रानी दुर्गावती ने पुन:रात्रि में आक्रमण की योजना बनाई परंतु सरदारों की असहमति के कारण निर्णय बदलना पड़ा। यहीं भारी चूक हो गई, यदि रात्रि में आक्रमण होता तो इतिहास कुछ और ही होना था।

नर्रई के घमासान युद्ध और स्व के लिए वीरांगना का प्राणोत्सर्ग

अंततः वीरांगना ने नर्रई की ओर कूच किया और युद्ध के लिए “क्रौंच व्यूह” रचना तैयार की.।23 जून 1564 को नर्रई में प्रथम मुठभेड़ हुई, रानी और उनके सहयोगियों ने मुगलों की की दुर्गति कर डाली ।आसफ खान सहित मुगल सेना भाग निकली और डरकर बरेला तक निकल गई । 23 जून की रात तक तोपखाना गौर नदी पार कर बरेला पहुंच गया। 23 जून की रात को घातक षड्यंत्र हुआ। .आसफ खान ने रानी के एक छोटे सामंत बदन सिंह को घूस देकर मिला लिया। उसने रानी की रणनीति का खुलासा कर दिया कि कल युद्ध में रानी मुगलों को घने जंगलों की ओर खींचेगी जहाँ तोपखाना कारगर नहीं होगा और सब मारे जाएंगे। आसफ खान डर गया उसने उपचार पूंछा, तब बदन सिंह ने बताया कि नर्रई नाला सूखा पड़ा है और उसके पास पहाड़ी सरोवर है जिसे यदि तोड़ दिया जाए तो पानी भर जाएगा और रानी नाला पार नहीं कर पाएगी और तोपों की मार सीधा पड़ेगी।उधर रात में रानी को अनहोनी का अंदेशा हुआ, उन्होंने सरदारों से रात में ही हमले का प्रस्ताव रखा पर सरदार नहीं माने ! यदि मान जाते तो इतिहास कुछ और ही होता। अंततोगत्वा युद्ध की अंतिम घड़ी समीप आ ही गयी। वीरांगना रानी दुर्गावती ने “क्रौंच व्यूह” रचा। सारस पक्षी के समान सेना जमाई गई। चोंच भाग पर रानी दुर्गावती स्वयं और दाहिने पंख पर युवराज वीरनारायण और बायें पंख पर अधारसिंह खड़े हुए। 24 जून 1564 को प्रातः लगभग 10 बजे भयंकर मोर्चा खुल गया और घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ पहले हल्ले में मुगलों के पांव उखड़ गए।

मुगलों ने 3 बार आक्रमण किये और तीनों बार गोंडों ने जमकर खदेड़ा, इसलिए मुगलों ने तोपखाना से मोर्चा खोल दिया। रानी दुर्गावती ने योजना अनुसार घने जंगलों की ओर बढ़ना प्रारंभ किया परंतु बदन सिंह की योजना अनुसार पहाड़ी सरोवर तोड़ दिया गया। नर्रई में बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी, अब वीरांगना घिर गयी। इसी बीच अपरान्ह लगभग 3 बजे वीरनारायण के घायल होने की खबर आई परंतु वीरांगना रानी दुर्गावती तनिक भी विचलित नहीं हुई। आंख में तीर लगने के बाद भी युद्ध जारी रखा, मुगल सेना के बुरे हाल थे परंतु अचानक रानी को एक तीर गर्दन पर लगा रानी ने तीर तोड़ दिया। हाथी सरमन के महावत को अधार सिंह पीछे हटने का आदेश दिया परंतु रानी समझ गयी थी कि अब वो नहीं बचेंगी! अत: अधार सिंह को उन्होंने स्वयं को मार देने का आदेश दिया परंतु अधार सिंह ने वीरांगना को मारने से मना कर दिया। वीरांगना रानी दुर्गावती, अधार सिंह से यह कहते हुए कि “मृत्यु तो सभी को आती है अधार सिंह, परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिये और मरे”, युद्ध के गोल में समा गयीं और लगभग 150 मुगल सैनिकों का वध करते हुए, भीषण युद्ध किया जब उनको मूर्छा आने लगी तो उन्होंने अपनी कटार से प्राणोत्सर्ग किया।

वहीं सेनापति अधार सिंह के नेतृत्व में कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि और महारुख ब्राम्हण ने युद्ध जारी रखा और वीरांगना के पवित्र शरीर को सुरक्षित किया तथा युवराज वीर नारायण सिंह को रणभूमि से सुरक्षित भेज कर अपनी पूर्णाहुति दी।इस युद्ध में वीरांगना के पक्ष से लगभग 700 सैनिकों का बलिदान हुआ जबकि मुगल सेना से लगभग 2000 सैनिक मारे गए। युवराज वीरनारायण सिंह ने वीरांगना रानी दुर्गावती का अंतिम संस्कार कर चौरागढ़ में सेनापति अधार सिंह के साथ मुगलों के विरुद्ध मोर्चा जमाया, जहाँ मुगलों के विरुद्ध चौरागढ़ ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया।

वीरांगना रानी दुर्गावती की समाधि और कर्नल स्लीमन का नत मस्तक होना

जबलपुर के समीप बरेला, ग्राम पंचायत-पिपरिया खुर्द, बारहाग्राम में स्थित नर्रई की युद्ध भूमि में वीरांगना रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। रानी दुर्गावती की समाधि स्थल पर सफेद पत्थर की कंकरी डालकर आदरांजलि प्रथा थी। कर्नल स्लीमन स्वयं समाधि स्थल के दर्शनार्थ पहुंचे थे तो उन्होंने भी नतमस्तक होते हुए भावुक होकर एक सफेद कंकर अर्पित किया था।उन्होंने रानी दुर्गावती को भारत की महानतम वीरांगना के रुप स्वीकार किया।कर्नल स्लीमन ने भी रानी दुर्गावती पर अच्छा इतिहास लिखा है।

वीरांगना की समाधि बनी स्वाधीनता संग्राम का पवित्र तीर्थ

जबलपुर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों का शुभारंभ रानी दुर्गावती की समाधि स्थल से ही हुआ। इतिहास के पन्नों को पलटें तो उल्लेख मिलता है कि गाँधी जी ने जब नमक कानून तोड़ा तब इसे लेकर जबलपुर में भी प्रतिक्रिया आरंभ हो गई। सेठ गोविंददास और पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र सहित अनेक सत्याग्रहियों को साथ लेकर 6अप्रैल 1930 को रानी दुर्गावती की समाधि नर्रई नाला गए और वहां पर प्रण किया कि जब तक पूर्ण स्वराज्य प्राप्त नहीं कर लेंगे, तब तक आंदोलन बंद नहीं करेंगे। सेठ गोविंददास और पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र तो रात में गौर नदी के किनारे विश्राम करते रहे, परंतु 6 अप्रैल को जब समाधि स्थल पहुंचे तो हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी वहीं रामनवमी के दिन सबने शपथ ली कि जब तक देश को विदेशी शासन से मुक्त नहीं करा लेंगे, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।

नर्रई से रानी दुर्गावती की समाधि से पवित्र माटी का कलश लेकर सभी आंदोलन स्थल तिलक भूमि तलैया पहुंचे। यहाँ 8 अप्रैल 1930 को मुंबई से लाए गए पानी से नमक बनाकर कानून को तोड़ा गया। तदुपरांत सुंदरलाल तपस्वी की पुस्तक प्रतिबंधित पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ में के कि कुछ अध्याय पढ़कर सुनाए गए तो पुलिस हरकत में आई और उसी रात सेठ गोविंददास, पं. द्वारका प्रसाद मिश्र, माखनलाल चतुर्वेदी तथा विष्णुदयाल भार्गव, ब्योहार राजेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया। वहीं सदर में सेना को भड़काने के आरोप में पंडित बालमुकुंद त्रिपाठी को सर्वाधिक लंबी सजा सुनाई गयी। प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने के कारण जन साधारण के प्रतिनिधियों ने मोर्चा संभाला और प्रतिदिन एक व्यक्ति अधिनायक चुना जाता था जिसके नेतृत्व में सत्याग्रह अनवरत् चलता रहा।
जबलपुर नगर समुद्र के निकट न होने के कारण यहां नमक सत्याग्रह आगे नहीं बढ़ पा रहा था। ऐसे में शासन से विरोध प्रगट करने के लिए, नए तरीके अपनाए गए।वस्तुतः पं. द्वारका प्रसाद मिश्र जंगल सत्याग्रह के प्रणेता थे। इसके अंतर्गत जंगल सत्याग्रह नामक एक नए आंदोलन की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत लिए युवा सत्याग्रही जबलपुर के निकट रानी दुर्गावती समाधि से जंगलों में जाते और सरकारी नियमों का उल्लंघन कर पेड़ों को काटते और अपनी गिरफ्तारी देते थे।अतः वीरांगना रानी दुर्गावती का समाधि स्थल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पवित्र तीर्थ है। इसलिए जबलपुर के उत्कृष्ट कवि श्रीयुत नर्मदा प्रसाद खरे वीरांगना रानी दुर्गावती के लिए ये पंक्तियाँ कितनी सार्थक हैं कि,”आसफ खां से लड़कर तूने, अमर बनाया कोसल देश। अमर रहेगी रानी तू भी, अमर रहे तेरा संदेश।” विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती का व्यक्तिव और कृतित्व सनातन धर्म में नारी शक्ति की मीमांसा का पर्याय है। ऋग्वेद के देवी सूक्त में माँ आदिशक्ति स्वयं कहती हैं,”अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां,अहं रूद्राय धनुरा तनोमि ” अर्थात् मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूँ।

हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुत: स्त्री शक्ति की अपरिमितता का द्योतक है।यह शोध आलेख उन हिंदू वीरांगनाओं और समग्र नारियों को सादर समर्पित है,जो जीवन के संग्राम में स्व के लिए मां, बेटी, बहन, पत्नी के रुप में देश की रक्षा के लिए अनादि काल से पूर्णाहुति देती आ रही हैं और दे रहीं हैं जिनकी आस्था और समर्पण अटल है और उन्हें विपरीत परिस्थितियाँ भी हरा नहीं सकीं। हिन्दुओं में बेटी का जन्म एक परिवार, एक कुटुम्ब का जन्म है, इसलिए मातृशक्ति हिंदुत्व का मूलाधार है।एतदर्थ हिन्दू धर्म में एक बेटी का जन्म शक्ति के अवतार के रूप में शिरोधार्य किया जाता है, जिसे विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती ने चरितार्थ किया है।कालजयी वीरांगना रानी दुर्गावती चिरकाल तक स्व के लिए आन -बान -शान और बलिदान की पराकाष्ठा का प्रतीक रहेंगी।

 

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