भारत

विस्फोट से उजड़ा बचपन

Published by
Sudhir Kumar Pandey

वर्ष 2013 का सर्दियों का समय। बस्तर के नारायणपुर जिले के छोटे-से गांव कगेरा में ठिठुरन भरे दिन। सैनू सलाम की 3 वर्षीया बेटी राधा सलाम और 5 वर्षीय चचेरा भाई रामू सलाम आंगनवाड़ी केंद्र पढ़ने जा रहे थे। दोनों मासूम अपनी उम्र के बच्चों की तरह दुनिया के खतरों से अनजान, खेल-कूद में खोए थे।

रास्ते में, रामू की नजर इमली के पेड़ के नीचे एक चमकती हुई चीज पर पड़ी। कौतूहलवश, दोनों बच्चे उस ओर बढ़ गए। चमकदार चीज एक केतली थी, जो सूर्य की रोशनी में चमक रही थी। रामू ने उस केतली को उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। उस केतली में विस्फोटक था। जैसे ही रामू ने उसे उठाया, जोरदार धमाका हुआ। धमाके में राधा की एक आंख चली गई, और उसके चेहरे पर बम के छर्रों ने गहरे निशान छोड़ दिए। उधर रामू का एक हाथ खराब हो गया और पैर में गंभीर चोट आई। रामू की उम्र अब 15 वर्ष है, और राधा 13 वर्ष की हो चुकी है। रामू के पिता इस घटना के बाद मानसिक रूप से इतने टूट गए कि उनका कुछ समय बाद ही निधन हो गया। परिवार की जिम्मेदारी रामू के बड़े भाई के कंधों पर आ गई। तंगहाली के बीच उनका जीवन मुश्किल से गुजर रहा है, लेकिन रामू के सपने अब भी जिंदा हैं। वह पढ़-लिखकर उद्यमी बनना चाहता है और अपने गांव के विकास में योगदान देना चाहता है। राधा भी पढ़-लिखकर आईपीएस अफसर बनना चाहती है।

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