कर्नाटक

कर्नाटक: 2 जिलों में आंगनबाड़ी शिक्षकों के लिए कन्नड़ के साथ उर्दू जरूरी! मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तुष्टिकरण का खेल?

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सोनाली मिश्रा

कर्नाटक में हिंदी विरोध की बातें बहुत सुनी जाती हैं। इसी बहस के बीच जो हैरान करने वाली घटना सामने आई है, वह है कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार द्वारा 2 मुस्लिम बहुल जिलों में आंगनबाड़ी शिक्षकों के लिए उर्दू भाषा अनिवार्य करना। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया है और उसमें मुदिगेरे और चिक्कमगलुरु जिलों में आंगनवाड़ी शिक्षकों के पद के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के लिए उर्दू में कुशलता आवश्यक की गई है।

इन दोनों जिलों में मुस्लिम आबादी लगभग 32 प्रतिशत है। इंडिया टुडे के अनुसार सरकार की अधिसूचना के अनुसार उन क्षेत्रों में जहां पर कुल जनसंख्या का 25 प्रतिशत अल्पसंख्यक हो, तो वहाँ पर कन्नड़ भाषा में कुशल होने के अतिरिक्त अल्पसंख्यकों की भाषा मे दक्ष लोगों को नियुक्त किया जाना चाहिए। हालांकि उर्दू पर जिस प्रकार से जोर दिया गया है, उस पर विवाद है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे कन्नड़ भाषा बोलने वाले लोगों को किनारे कर दिया गया है। मगर इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या यह हिन्दू महिलाओं को नौकरी से बाहर करने की चाल है? यदि उर्दू की जानकारी को अनिवार्य कर दिया गया है, तो नौकरी क्या केवल एक मजहब के लिए आरक्षित कर दी गई है? सोशल मीडिया पर लोग इसी तरह के प्रश्न कर रहे हैं?

सोशल मीडिया पर भी लोग प्रश्न उठा रहे हैं कि कन्नड़ भाषा के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं का रवैया इस पर क्या है? वे यह पूछ रहे हैं कि हिंदी भाषा का विरोध करने वाले, हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है कहने वाले उर्दू की इस अनिवार्यता पर क्या कहेंगे?

मजहब के आधार पर भाषा?

यह नोटिफिकेशन इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यह भाषाई अतिक्रमण एक विशेष मजहब की भाषाई पहचान के कारण हो रहा है। चूंकि उन क्षेत्रों में एक मजहब विशेष के लोग अधिक हैं, इसलिए वहाँ पर उर्दू का होना अनिवार्य है। यह बहुत ही घातक चलन है, क्योंकि इससे मजहब के आधार पर वर्गीकरण होता है। मजहब के आधार पर भेदभाव होता है, दूरियां बढ़ती हैं। और यह तय होता है कि यह भाषा एक मजहब विशेष की ही भाषा है। यदि उस मजहब के लोग हैं तो वह भाषा होनी चाहिए। इसका अर्थ यह भी होता है कि जैसे उस मजहब का जुबान पर एकाधिकार और अंतत: सेवाओं पर, नौकरियों पर एकाधिकार अर्थात वर्चस्व! और इस मजहबी वर्चस्व में वर्तमान कर्नाटक कांग्रेस सरकार के ऐसे नोटिफिकेशन।

भाजपा नेताओं ने किया विरोध

इस नोटिफिकेशन के विरोध मे भारतीय जनता पार्टी के नेता आ गए हैं। भाजपा नेता सीटी रवि ने कहा कि निजाम ने हैदराबाद, कर्नाटक क्षेत्र में उर्दू को बढ़ावा देने का प्रयास किया। उनके समय में कन्नड़ स्कूलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन उनकी आत्मा अब कांग्रेस में बसती है। कांग्रेस निजाम का काम कर रही है। उनके दौर में टीपू (सुल्तान) ने कन्नड़ के खिलाफ़ फ़ारसी भाषा थोपने की कोशिश की थी। आज कांग्रेस टीपू और निजाम के सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश कर रही है। वे कन्नड़ विरोधी हैं।”

भारतीय जनता पार्टी के नेता नलिनकुमार ने कांग्रेस सरकार की घोषणा को मुस्लिम तुष्टीकरण कहा। उन्होंने कांग्रेस को हिन्दू विरोधी कहते हुए लिखा कि आंगनबाड़ी शिक्षकों की भर्ती में मुस्लिम समुदाय का तुष्टिकरण करने और केवल उन्हें ही नौकरी देने की पिछले दरवाजे से की जा रही कोशिश एक बार फिर कांग्रेस की कपटी नीति को उजागर कर रही है। उन्होंने इसे घिनौनी राजनीति की पराकाष्ठा भी कहा है।

कन्नड़ भाषा के नाम पर हिंदी विरोध करने वाली पूरी लॉबी चुप

कन्नड़ भाषा के नाम पर हिंदी का विरोध करने वाली पूरी लॉबी चुप है। हिन्दी भाषा में लिखे गए बोर्ड हटाए जाते हैं और हिन्दी भाषा बोलने वाले आम लोगों के साथ लगातार अभियान चलाए जाते हैं। उनका अपमान सोशल मीडिया और विमर्श में किया जाता है। उन्हें नीचा दिखाया जाता है। मगर हैरानी की बात यही है कि वह लॉबी इस नोटिफिकेशन पर चुप है, जो भाषा के आधार पर नौकरी को ही एक वर्ग विशेष के हाथों ही लगभग सौंप रहा है। हालांकि इस नोटिफिकेशन में कन्नड़ भाषा की जानकारी भी अनिवार्य है, परंतु 68 प्रतिशत लोगों की भाषा और 32 प्रतिशत लोगों की भाषा को समान रेखा पर लाकर खड़ा कर दिया है।

भारतीय जनता पार्टी के आंध्र प्रदेश के उपाध्यक्ष विष्णु वर्धन रेड्डी ने एक्स पर लिखा कि अब पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा उर्दू, भारत के एक राज्य में अनिवार्य हो गई है। इसी प्रकार कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता कार्य करती है, वे अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। परंतु यह भी बात सच है कि भाषा के नाम पर हिंदी और हिंदी भाषियों के प्रति घृणा फैलाने वाली लॉबी एकदम चुप है।

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