अनुरा दिसानायके की कम्युनिस्ट पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) में एक नया जोश देखने में आ रहा है। यह पहली बार है जब इस देश में किसी कम्युनिस्ट दल को राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत मिला है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे उस देश पर चीन के शिकंजे का कसते जाना है, जिसने कर्जे दे—देकर वहां के नेताओं और जनता को अपनी तरफ झुकाया है। लेकिन उस देश की जनता भ्रम है, वह नहीं जानती कि अंतत: इसका परिणाम सुखद शायद ही रहे।
श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों ने हर एक विशेषज्ञ हो हैरत में डाला है क्योंकि इसमें जो उम्मीद थी वह न होकर जिसकी उम्मीद नहीं थी वह हुआ है। आखिरी नतीजों के अनुसार, अनुरा दिसानायके जीते हैं और अगले राष्ट्रपति बनने की ओर बढ़े हैं। कम्युनिस्ट दिसानायके मार्क्सवादी कामरेड हैं। इस दृष्टि से उनका झुकाव चीन की तरफ ही रहा है।
अपनी विजय के बाद अनुरा दिसानायके ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि उनकी यह विजय सबकी विजय है। पहली बार श्रीलंका में कोई वामपंथी पार्टी का नेता राष्ट्रपति पद को संभालेगा।
नतीजों के घोषित होने के बाद, दिसानायके ने आह्वान किया कि देश में राष्ट्रीय एकता स्थापित हो। उनका कहना है कि ‘सिंहली, तमिल, मुस्लिम तथा श्रीलंका के अन्य सभी लोगों की एकजुटता ही नई पहल का आधार है।’
दिसानायके ने उम्मीद व्यक्त की है कि देश की आकांक्षाओं को साकार करने हेतु नई शुरुआत होगी। अनुरा दिसानायके 55 वर्ष के हैं। उन्हें गत सप्ताहांत आए चुनाव नतीजों में 42.31 प्रतिशत मत मिले और ये सबसे अधिक रहे। दूसरे स्थान पर विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा रहे और तीसरे पर रानिल विक्रमसिंघे।
अनुरा दिसानायके की कम्युनिस्ट पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) में एक नया जोश देखने में आ रहा है। यह पहली बार है जब इस देश में किसी कम्युनिस्ट दल को राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत मिला है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे उस देश पर चीन के शिकंजे का कसते जाना है, जिसने कर्जे दे—देकर वहां के नेताओं और जनता को अपनी तरफ झुकाया है। लेकिन उस देश की जनता भ्रम है, वह नहीं जानती कि अंतत: इसका परिणाम सुखद शायद ही रहे। चीन के कर्जदार अनेक गरीब देशों को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है।
अनुरा एक गरीब परिवार में जन्मे नेता बताए गए हैं। वे 1980 के दशक में कॉलेज की राजनीति से जुड़े थे। उन्होंने 1987—1989 में सरकार विरोधी आंदोलन में भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन में सशस्त्र विद्रोह हुआ था और बहुत ज्यादा खून—खराबा मचा था। कम्युनिस्ट सोच हिंसक रही ही है जो बंदूक के रास्ते सत्ता पाने की विचारधारा पर चलती है। इस आंदोलन के बाद ही अनुरा कम्युनिस्ट पार्टी जेवीपी की आंख के तारे बने और पार्टी में शामिल हो गए। पार्टी में आने के बाद, उनका कद बढ़ता गया।
ऐसी सोच के अनुरा दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति के नाते कितने सफल हो पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन चीन की तरफ झुके रहने वाले और बंदूक को सत्ता का रास्ता मानने वाले राष्ट्रपति के नाते अब उस देश के कम्युनिस्ट रीति पर चलने के आसार नजर आ रहे हैं। इस स्थिति में उसकी पड़ोसी हिन्दू बहुल भारत के साथ कैसा नाता रहने वाला है, इसे लेकर अभी से विशेषज्ञों में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सवाल है कि, क्या यह भारत के लिए चिंता की बात है? क्या अनुरा चीन के इशारों पर ही चलने वाले हैं?
अनुरा दिसानायके के अब तक के विचारों की बात करें तो वे हमेशा से मार्क्सवादी सोच को आगे रखते हुए ‘श्रीलंका में बदलाव’ की आवाज उठाते रहे हैं। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने भाषणों में ज्यादातर छात्रों तथा श्रमिकों के विषय उठाए थे। इसके साथ ही देश के नागरिकों से स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा के क्षेत्रों में भी परिवर्तन का आह्वान किया है।
उल्लेखनीय है कि यही दिसानायके 2019 के चुनाव में भी उतरे थे। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की उस दौड़ में महज 3 प्रतिशत वोट ही मिल पाए थे।
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