विश्व की श्रेष्ठ वीरांगनाओं और नारी शक्ति के आदर्श प्रतिमानों के आलोक में सोलहवीं शताब्दी के इतिहास के पन्नों को पलटने पर भारत की एक ऐंसी वीरांगना का नाम उभरता है,जो तुलनात्मक दृष्टि से विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना होने का दर्जा प्राप्त करती हैं। उन्हें भारतीय इतिहास में राजमाता वीरांगना रानी दुर्गावती के नाम से जाना जाता है। रानी दुर्गावती का गौरवशाली इतिहास बुंदेलखंड के कालिंजर से प्रारम्भ होकर,गढ़ा कटंगा के गोंडवाना साम्राज्य के स्वर्ण युग तक पहुंचता है। रानी दुर्गावती 16 वर्ष तक गढ़ा कटंगा के गोंडवाना साम्राज्य की साम्राज्ञी रहीं। एतदर्थ वीरांगना रानी दुर्गावती के इतिहास के पृष्ठ गोंडवाना से खोलते हैं।
भारत के हृदय स्थल में स्थित त्रिपुरी के महान् कलचुरि वंश का 13 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अवसान हो गया था। फलस्वरूप सीमावर्ती शक्तियां इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए लिए लालायित हो रही थीं। अंततः इस संक्रांति काल में एक वीर योद्धा जादोंराय (यदुराय) ने, तिलवाराघाट निवासी एक महान् ब्राह्मण सन्यासी सुरभि पाठक के भगीरथ प्रयास से, त्रिपुरी क्षेत्रांतर्गत, गढ़ा-कटंगा क्षेत्र में गोंड वंश की नींव रखी।(यह उपाख्यान आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य की याद दिलाता है) कालांतर में यह साम्राज्य महान् गोंडवाना साम्राज्य के नाम से जाना गया।गोंडवाना साम्राज्य का चरमोत्कर्ष का प्रारंभ 48वीं पीढ़ी के महानायक राजा संग्रामशाह (अमानदास) के समय हुआ और इनकी पुत्रवधू वीरांगना रानी दुर्गावती का समय गोंडवाना साम्राज्य के स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है।
रानी दुर्गावती के इतिहास से छल और उसका पटाक्षेप
भारतीय इतिहास का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू रानी दुर्गावती एवं गोंडवाना साम्राज्य के महान् इतिहास को एक छोटी सी कहानी बना डाला और पटाक्षेप कर दिया। रानी दुर्गावती का साम्राज्य लगभग इंग्लैंड के बराबर था। 16 वर्ष का शासन काल था, पूरे भारत में एकमात्र राज्य जहाँ कर, सोने के सिक्के एवं हाथियों तक में चुकाया गया था। जिसके चरित्र,शौर्य, पराक्रम, प्रबंधन और देशभक्ति के सामने आस्ट्रिया की मारिया थेरेसा रुस की कैथरीन द्वितीय और इंग्लैंड की एलिजाबेथ प्रथम, रजिया बेग़म और नूरजहाँ,कहीं नहीं लगतीं। (केवल जोन आव आर्क को छोड़ दिया जाए वह भी युद्ध कला में)मध्यकालीन भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों ने रानी दुर्गावती एवं गोंडवाना के इतिहास को गौण स्वरुप प्रदान करते हुए छिन्न – भिन्न रुप में प्रस्तुत कर,छल किया है। इसलिए अब शोधपूर्ण वास्तविक इतिहास लिखा जाना अनिवार्य है ताकि रानी दुर्गावती और गोंडवाना साम्राज्य साम्राज्य के इतिहास के साथ न्याय हो और वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ी में गर्व और गौरव की अनुभूति हो तथा राष्ट्रवाद की भावना प्रबल हो।
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