जर्मनी की सरकार ने देश की सभी सड़क सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण लगाने का नया आदेश जारी किया है। गत 9 सितम्बर को उठाया गया यह कदम दरअसल इस्लामी कट्टरपंथियों की बेरोकटोक आवाजाही को काबू करने और देश में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए है। जर्मनी में गत कुछ वर्षों में बाहर से आते जा रहे इस्लामी ‘शरणार्थी’ कई शहरों में कानून को चुनौती दे रहे हैं। लूटमार, दंगे, आगजनी की घटनाएं वहां आम देखने में आ रही हैं। जर्मनी की गृह मंत्री नैन्सी फेसर ने यह आदेश जारी करते हुए इस्लामी चरमपंथ जैसे खतरों से जनता को सुरक्षित रखने की बात की है। नैन्सी ने कहा कि सामान्य रूप से बेरोकटोक आवागमन के विस्तृत क्षेत्र-यूरोपीय शेंगेन क्षेत्र-के भीतर नए आदेश के तहत यह नियंत्रण 16 सितंबर से लागू हो जाएगा।
इसके अलावा सरकार की तरफ से एक और योजना तैयार की गई है। इसके अंतर्गत सीमा अधिकारी जर्मन सीमाओं पर अपनी तरफ से जरूरत से ज्यादा ‘प्रवासियों’ को अंदर आने देने से रोक सकेंगे। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि नैन्सी का यह कदम विवाद पैदा कर सकता है और यह कानूनी रूप से काफी जटिल भी होगा।
उल्लेखनीय है कि जर्मन सरकार द्वारा लगाया जा रहा यह प्रतिबंध एक कोशिश है जिससे जर्मनी को कट्टर इस्लामी तत्वों के उपद्रवों और गलत हरकतों से बचाया जा सके। जैसा कि पहले बताया, गत कुछ वर्षों से इस देश में पड़ोसी देशों से प्रवासियों का अनियमित रूप से बेरोकटोक आना जारी रहा है। लेकिन अब इस प्रक्रिया पर जर्मन सरकार ने सख्ती बरती है।
सरकार के इस कदम पर अधिकांश जर्मनीवासी संतोष व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि यह जरूरी हो गया था, क्योंकि यहां कट्टर इस्लामी तत्व मानवीय मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुए ‘खुले वातावरण’ का गलत फायदा उठाकर, वहां के मूल निवासियों का जीना हराम करते जा रहे थे।
जर्मनी में, खासतौर पर मध्य पूर्व में ‘युद्ध और गरीबी से तंग’ आ चुके लोग आकर बसते रहे हैं। जर्मनी ने इस दृष्टि से ‘मानवीयता’ दर्शाते हुए उन्हें आने भी दिया। लेकिन अब वहां के नागरिक इसे एक सोची-समझी चाल मानकर इससे चिढ़ने लगे हैं और चाहते हैं कि सरकार ऐसे तत्वों को काबू करे, क्योंकि उन्होंने उनकी रोजमर्रा जिंदगी को दूभर कर दिया है।
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चांसलर ओलाफ स्कोल्ज की सरकार अब सार्वजनिक सेवाओं की उपलब्धता और आमजन की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। नैन्सी ने कहा भी कि, ‘हम आंतरिक सुरक्षा को मजबूत कर रहे हैं और बेलगाम प्रवास के विरुद्ध अपनी नीति को सख्त बना रहे हैं।’ जर्मनी क्योंकि यूरोपीय संघ के अनेक सदस्य देशों के बीचोबीच स्थित है इसलिए सरकार ने यूरोपीय आयोग और पड़ोसी देशों को अपने इस नए कदम को लेकर सूचित कर दिया है। लेकिन, अभी यह देखना बाकी है कि यूरोपीय आयोग और सदस्य देश इस बारे में क्या फैसला लेते हैं। कारण? यूरोपीय संघ के चार्टर के अनुसार, लोग संघ के किसी भी देश से दूसरे सदस्य देश में आ-जा सकते हैं।
जर्मनी में गत दिनों इस्लामी तत्वों की ओर से हिंसक घटनाओं में एकाएक वृद्धि देखने में आई है। कई स्थानों पर चाकू से मासूम नागरिकों पर घातक हमले बोले गए, जिनमें आरोपी इस्लामी तत्व पाए गए। इससे आव्रजन को लेकर चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक था। जिहादी गुट इस्लामिक स्टेट ने गत अगस्त माह में जर्मनी के पश्चिमी शहर सोलिंगन में उस हिसंक हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें तीन लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद वहां की दक्षिणपंथी पार्टी ने शरणार्थियों के मुद्दे को लेकर जनता को जागरूक करने की कोशिश की थी।
सोलिंगन में जिहादी ने मार डाले थे तीन जर्मन
गत अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में जर्मनी के सोलिंगन शहर में सीरिया से ‘शरण’ पाने की उम्मीद में आए एक इस्लामी उन्मादी ने चाकू लहराते हुए हिंसा का तांडव मचाया और 3 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। 8 लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। पुलिस ने उसके आतंकवादी घटना होने का संकेत दिया था। जिहादी गुट आईएस ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी। सोलिंगन में चहलपहल वाले चौक फ्रॉनहोफ़ पर हुए इस हमले के दौरान लोग वहां लाइव बैंड का आनंद ले रहे थे। स्थानीय नागरिकों में ही नहीं, पूरे देश में इस जिहादी घटना को लेकर जबरदस्त आक्रोश उपजा था। लोग सरकार से ऐसी कट्टर सोच और कृत्यों को करने वाले इस्लामी ‘शरणार्थियों’ को देश से बाहर करने का दबाव बनाने लगे थे। इस्लामी आतंक आज यूरोप के अनेक देशों में सिर चढ़कर बोल रहा है। फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, डेनमार्क आदि में आए दिन इस्लामी ‘शरणार्थी’ उत्पात मचाते हैं और वे इतने हिंसक होते हैं कि आम नागरिक कुछ कर भी नहीं पाते। ऐसे तत्व सड़कों पर मंडराते हुए महिलाओं, बूढ़ों और बच्चों को निशाना बनाते हैं। वे केवल दिल बहलाने के लिए या लूटने के लिए उन्हें शारीरिक रूप से चोट पहुंचाने से पीछे नहीं हटते।
जनता में आक्रोश
सर्वेक्षण बताते हैं कि ब्रांडेनबर्ग राज्य में लोगों में यह मुद्दा सबसे बड़ी चिंता बना हुआ है। वहां दो सप्ताह बाद चुनाव होने वाले हैं। स्कोल्ज़ और नैन्सी की मध्य-वाम पार्टी सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने की लड़ाई लड़ रही है। वहां आगामी संघीय चुनाव से पहले इसे पार्टी की ताकत की परीक्षा माना जा रहा है। जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेशन एंड माइग्रेशन रिसर्च के मार्कस एंगलर का कहना है कि सरकार का इरादा जर्मनीवासियों और संभावित प्रवासियों को प्रतीकात्मक रूप से यह दिखाना है कि इस राज्य के लोग यह नहीं चाहते कि शरणार्थियों को बेलगाम आने-जाने दिया जाए।
आव्रजन विशेषज्ञों का कहना है कि 2015-2016 के शरणार्थी संकट के दौरान सीरिया जैसे युद्धग्रस्त देशों से भागकर आए 10 लाख से अधिक लोगों को इस देश में ‘शरण’ दी गई थी। उसके बाद से ऐसे ‘शरणार्थियों’ के प्रति जर्मनी में विरोध बढ़ रहा था। 8.38 करोड़ की आबादी वाले इस देश में ‘शरणार्थियों’ का यह संकट अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा है। जर्मनी ऊर्जा और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। उधर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भी लाखों यूक्रेनी शरणार्थियों को यहां शरण दे दी गई। जर्मन सरकार तभी से सख्त निर्वासन नियमों को लेकर विचार कर ही रही थी।
2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद आए अनेक अफगानी शरणार्थियों को उनके अपने देश को भेजना शुरू कर दिया गया है। बर्लिन ने पिछले साल पोलैंड, चेक गणराज्य और स्विट्जरलैंड के साथ अपनी सड़क सीमाओं पर सख्त नियंत्रण की घोषणा की थी।
जर्मन सरकार की ओर से बताया गया है कि उक्त देशों के अलावा आस्ट्रिया के साथ सटी सीमा पर नियंत्रण की वजह से अक्तूबर 2023 से 30,000 प्रवासियों को वापस किया गया है। गृह मंत्री नैन्सी फेसर का कहना है कि उनका यह नया कदम ‘शरणार्थियों’ के मुद्दे पर यूरोपीय एकजुटता की परीक्षा साबित हो सकता है।
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