झारखण्‍ड

बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण वनवासी समाज के अस्तित्व पर संकट : चंपाई सोरेन

चंपाई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना के दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां अब वनवासी परिवार नहीं मिलते

Published by
SHIVAM DIXIT

रांची । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने एक बार फिर राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। विशेष रूप से संथाल परगना क्षेत्र में हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण वनवासी समाज के अस्तित्व पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। गुरुवार को सोशल मीडिया के माध्यम से चंपाई सोरेन ने संथाल परगना के कई गांवों में वनवासी समाज के समाप्त हो जाने पर सवाल उठाया।

चंपाई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना के दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां अब वनवासी परिवार नहीं मिलते। उन्होंने उदाहरण के तौर पर पाकुड़ जिले के जिकरहट्टी गांव का संथाली टोला का उल्लेख किया, जहां अब एक भी संथाल परिवार नहीं रहता। इसी तरह मालपहाड़िया गांव में आदिम जनजाति का कोई भी सदस्य नहीं बचा है। चंपाई ने सवाल उठाया कि आखिर इन भूमिपुत्रों का क्या हुआ? उनके घरों और जमीनों पर अब किसका कब्जा हो गया?

उन्होंने बरहेट के गिलहा गांव की एक घटना का भी जिक्र किया, जहां एक वनवासी परिवार की जमीन पर जबरन कब्रिस्तान बनाया गया। इस तरह की घटनाएं संथाल परगना के कई क्षेत्रों में हो रही हैं। चंपाई सोरेन ने वीर भूमि भोगनाडीह और उसके आसपास के क्षेत्रों में वनवासी परिवारों की संख्या घटने पर चिंता जताई।

घुसपैठ से वनवासियों की जमीनों पर कब्जा

सोरेन ने कहा कि वीर सिदो-कान्हू और तिलका मांझी जैसे महान वनवासी नेताओं ने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई में विदेशी अंग्रेजों के सामने कभी घुटने नहीं टेके, लेकिन आज उनके वंशजों की जमीनों पर घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं। उन्होंने वनवासी समाज की माताओं, बहनों और बेटियों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की।

चंपाई सोरेन ने कहा कि यह घुसपैठ का मुद्दा उनके लिए राजनैतिक नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दा है। उन्होंने कहा कि यदि हम इस पर खामोश रहे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। उन्होंने वनवासी समाज को संगठित होने और इस गंभीर समस्या के खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान किया।

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