राष्ट्रीय एकसूत्रता की बेजोड़ मिसाल है गुरु ग्रंथ साहिब। हालाँकि सिख धर्म का उदय पंजाब में हुआ और उसकी अधिकतर गतिविधियाँ भी पंजाब में ही केंद्रित रहीं, लेकिन गुरु अर्जुन ने गुरु ग्रंथ साहिब को ईश्वरीय वाणी का वह विशाल सागर बनाया जिसमें उत्तर- दक्षिण, पूर्व- पश्चिम चारों दिशाओं से ईश्वरस्तुति की सरिताएँ आकर समाहित हुई। उदाहरण के तौर पर, गुरु ग्रंथ साहिब में अपनी वाणी के रूप में मौजूद संत नामदेव और संत परमानंद महाराष्ट्र के थे, तो संत त्रिलोचन गुजरात के। संत रामानंद दक्षिण में पैदा हुए तो संत जयदेव का जन्म पश्चिमी बंगाल के एक छोटे से गाँव में हुआ। इसी प्रकार धन्ना का संबंध राजस्थान से था तो सदना सिंध से ताल्लुक रखते थे। इनकी तथा बाकी संतों- भक्तों की वाणी को एक माला में पिरोकर गुरु अर्जनदेव ने भारत के भौगोलिक समन्वय की बेहतरीन और अभूतपूर्व मिसाल कायम की।
दस गुरु दर्शन
पहले गुरु श्री गुरु नानक जी देव से लेकर दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह तक सिख धर्म के दस गुरु हुए। सन् १४६९ में गुरु नानक जी के जन्म से लेकर सन् १७०८ में गुरु गोबिंद सिंह के परलोक गमन तक दो सौ उनतालीस वर्षों की अवधि का समय सामाजिक बेचैनी, राजनीतिक उथल- पुथल, धार्मिक रूढिवादिता और चारित्रिक गिरावट का काला दौर था। शासक अत्याचारी और अन्यायी हो गए थे। हिंदू धर्म में गृहस्थी के त्याग एवं संन्यास पर बहुत जोर दिया जाता था, जिससे धर्मनिष्ठ लोगों में संसार के प्रति उदासीन दृष्टिकोण एवं एक प्रकार का निराशावाद पैदा हो गया था। जिस पर जात- पात और वर्ण- व्यवस्था, छुआछूत, कर्मकांड, अंधविश्वास और अकर्मण्यता समाज को रसातल की ओर ले जा रहे थे।
सामाजिक बिखराव एवं पलायनवादी प्रवृत्ति ने बाबर जैसे आक्रमणकारियों को जोर- जुल्म एवं अत्याचार करने के लिए दुष्प्रेरित किया।
सिख गुरुओं ने अपनी वाणी, अपने संदेश और उपदेश से अँधेरे में भटकते लोगों को नई राह और नई रोशनी दिखाई। जीवन-रसायन से भरपूर गुरुओं की अमृत वाणी ने समाज को अकर्मण्यता, आडंबर, अंधविश्वास, अज्ञानता की अँधेरी सुरंग से बाहर निकालकर उसकी दशा और दिशा ही बदल दी। दस में से सात गुरुओं — पहले से पाँचवें, नौवें तथा दसवें गुरु ने वाणी की रचना की। ये वाणीकार गुरु हैं — गुरु नानक जी देव , गुरु अंगददेव , गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव, गुरु तेगबहादुर और गुरु गोबिंद सिंह। इनमें से सिर्फ गुरु गोबिंद सिंह को छोड़कर शेष सभी छह वाणीकार गुरुओं की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है। गुरु गोबिंद सिंह की वाणी अलग से ‘दशम ग्रंथ’ में संकलित है।
गुरु नानक जी देव
● सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक जी देव का जन्म सन् १४६९ में तलवंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ। आज यह स्थान ‘ननकाना साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध है। नानक जी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता था। उनकी एक बहन थी, जिसका नाम नानकी था।
● ध्रुव और प्रह्लाद की तरह नानक जी भी बचपन से ही परमात्मा की भक्ति में लीन रहने लगे। सांसारिक पदार्थ और कर्मकांड उन्हें बिलकुल न भाते। सात वर्ष की अवस्था में जब मेहता कालू के कुल- पुरोहित पंडित हरदयाल नानक जी को जनेऊ पहनाने लगे तो उन्होंने पुरोहित का हाथ पकड़ लिया और मासूम स्वर में बोले, “ पंडितजी, यह तो कच्चे सूत का जनेऊ है, जो आखिर में यहीं रह जाएगा। मुझे तो आप ऐसा जनेऊ पहनाएँ जो दया के कपास और संतोष के सूत से बना हो, जिसमें सत्य की गाँठ लगी हो। ऐसा जनेऊ न कभी टूटता है, न मलिन होता है। और जो लोग ऐसा जनेऊ धारण कर लेते हैं वे धन्य हैं। ”
● बालक नानक जी के ये वचन सुनकर हरदयालजी हैरान रह गए। उन्होंने मेहता कालू को बताया कि नानक जी कोई सामान्य बालक नहीं है।
● मेहता कालू नानक जी की साधु वृत्ति से खुश नहीं थे। वे चाहते थे कि अन्य बालकों की तरह नानक जी भी कुछ कमाए और सांसारिक कामों में रुचि ले। यह सोचकर एक दिन उन्होंने नानक जी को बीस रुपए दिए और कुछ मुनाफेवाला सौदा करके लाने को कहा। नानक जी घर से चले तो रास्ते में उन्हें कुछ भूखे साधु मिल गए। उन्होंने वे रुपए साधुओं को भोजन करवाने पर खर्च कर दिए, जिसके लिए उन्हें पिता से मार भी खानी पड़ी।
● उन्नीस वर्ष में नानक जी का विवाह बीबी सुलखनी से हुआ। उनके श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नामक दो पुत्र भी हुए। लेकिन नानक जी तो मानव जाति के उद्धार के लिए जन्में थे। सो परिवार का मोह भी उन्हें अपने कर्तव्य- पथ से विचलित नहीं कर पाया। वे शोषण, हिंसा, अत्याचार और भेदभाव के शिकार लोगों को स्नेह और सांत्वना देने के लिए घर से निकल पड़े।
● उन्होंने उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक सारे भारत की यात्रा की। वे अफगानिस्तान, बर्मा, तुर्की, श्रीलंका और सिक्किम भी गए। नानक जी जहाँ भी गए वहीं उन्होंने जातियों, धर्मों तथा वर्गों की सीमाओं को तोड़कर उनमें परस्पर समन्वय तथा संबंध स्थापित किया और सहअस्तित्ववाद पर जोर दिया। उन्होंने ईर्ष्या, अहंकार तथा मजहब के नाम पर घृणा तथा परस्पर विद्वेष को अधर्म और पाखंड बताया। राम -रहीम और अल्लाह- ईश्वर के भेद को आपने उस सच (परमात्मा) के मार्ग में शत्रुता बढ़ानेवाला कुमार्ग कहा। नानक जी के लिए संपूर्ण मानव सृष्टि एक देश था और सब मानव जाति एक परिवार थी।
● गुरु नानक देवजी की अनेक वाणियों में सबसे प्रमुख है – जपुजी साहिब , जिसका संसार की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ‘जपुजी साहिब’ का अमर संदेश है — ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह इस संसार को रचनेवाला कर्ता है, वह भय और वैर से रहित है, उसे मौत भी नहीं मार सकती, वह न जनमता है, न मरता है, वह स्वयंभू है और वह ईश्वर गुरु की कृपा से प्राप्त होता है। जीवन के अंतिम दिनों में गुरु नानक जी देवजी करतारपुर में बस गए। वहाँ वे खेती -बाड़ी करते और ईश्वर का नाम जपते। अपने एक परम शिष्य भाई लहणा को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाया और सन् १५३८ में नानक जी परलोक सिधारे। नानक जी समूची मानव जाति के हरमन प्यारे गुरु थे। गुरु नानक देव की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में महला १ के शीर्षक से दर्ज है और श्लोकों सहित उनके कुल शबदों की संख्या नौ सौ चौहत्तर है।
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