जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इस आंदोलन का उद्देश्य केवल शेख हसीना को ही पद से हटाना नहीं था, बल्कि उससे भी कहीं अधिक था। यह कहीं न कहीं इस्लामिक शासन लाने वाला आंदोलन था। यह बिल्कुल भी केवल शेख हसीना को पद से हटाने का आंदोलन नहीं था।
अब उसकी परतें धीरे-धीरे हटने लगी हैं। शेख हसीना के पद से हटने के बाद हिन्दू शिक्षकों से त्यागपत्र लिया जाना जारी है। इसे लेकर बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन काफी मुखर हैं और वे लगातार इस बात को उठा रही हैं कि देश कट्टरपंथियों के हाथों में जा रहा है। 5 अगस्त से ही वे सोशल मीडिया पर यह लगातार कहती जा रही हैं कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें हावी हो रही हैं और ये सबसे अधिक महिलाओं के लिए दुखदायी होंगी।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के साथ बात करते हुए उन्होनें एक बार फिर इस तथ्य को दोहराया है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों के आने से महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। न्यू इंडियन एक्सप्रेस में उनका एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनसे बांग्लादेश में चल रही उथलपुथल के बारे में प्रश्न किया गया।
तसलीमा नसरीन ने उत्तर देते हुए कहा कि बांग्लादेश में जो हो रहा है, उससे सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं का ही होने जा रहा है। कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें शरिया के अंतर्गत प्रतिबंध लगाकर और उन्हें नियंत्रित करके महिलाओं के सारे अधिकार ले लेंगी। और यूनिवर्सिटीज में तो इस्लामिक ड्रेस कोड लागू करने के फतवे भी जारी होने लगे हैं।
उनसे यह पूछा गया कि क्या शेख हसीना के जाने और अंतरिम सरकार के शपथग्रहण के बाद महिलाओं के प्रति व्यवहार में कोई परिवर्तन देखा गया तो उन्होनें कहा कि कई यूनिवर्सिटीज में लड़कियों से इस्लामिक ड्रेस कोड का पालन करने के लिए कहा गया है। ड्रेस कोड के रूप में हिजाब/नकाब/बुरखे को पहनने को कहा गया है और अब जल्दी ही यह आम हो जाएगा। और यदि शरिया कानून आ गया तो महिलाओं के पास कोई अधिकार नहीं रहेगा।
यूनिवर्सिटी परिसर में नमाज पढे जाने को लेकर भी जो बवाल हुए थे, उनमें भी ऐसे उदाहरण सामने आए थे कि जिन प्रोफेसर्स ने यूनिवर्सिटी परिसर में नमाज पढ़ाए जाने का विरोध किया था, उनसे इस्तीफा लिखवा लिया गया था।
तसलीमा नसरीन की हिजाब वाली बात के उदाहरण भी मिले हैं। बांग्लादेश में उन शिक्षकों की एक सूची बनाई गई थी, जो हिजाब के विरोधी थे। जिन्होनें अपने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब का विरोध किया था, उन्हें निशाना बनाने के लिए सूची बनाई गई थी।
A students' association in Bangladesh has brought out a list of 100 teachers who are anti-hijab. This report by Bangladeshi media outlet Kalbela points to a disturbing trend of targetting those you do not agree with. Bangladesh civil society has turned on itself. pic.twitter.com/MrcioueJ5t
— Deep Halder (@deepscribble) August 25, 2024
kalbela नामक वेबसाइट में लिखा था कि Odhikar Sawak Awadi Samaj नामक एक छात्र संगठन ने ऐसे 100 हिजाब विरोधी शिक्षकों की सूची विविध शैक्षणिक संस्थानों से बनाई थी, जिन्होनें संस्थानों में हिजाब का विरोध किया था। और इनमें ढाका यूनिवर्सिटी भी सम्मिलित थी।
छात्रों ने यह मांग की थी कि इन सभी सूचीबद्ध शिक्षकों को तत्काल ही नौकरी से निकाल दिया जाए। ढाका यूनिवर्सिटी के अपराध विज्ञान विभाग के एक छात्र मूहिउद्दीन राहत, जो राइट्स अवेयरनेस स्टूडेंट्स सोसाइटी का कनवेनर है, ने कहा था कि हिजाब या नकाब पहनने वाली छात्राओं के साथ शैक्षणिक संस्थानों मे बहुत भेदभाव हुए हैं और इसलिए उन सभी शिक्षकों के लिए हम सजा चाहते हैं और उन्हें नौकरी से निकालने की मांग करते हैं, जिन्होनें हिजाब, नकाब और बुर्का पहनने वाली छात्राओं का उत्पीड़न किया था।
तसलीमा नसरीन ने आज ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर मोहम्मद यूनुस की इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ तस्वीरें साझा की थीं और लिखा था कि यूनुस बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों को समर्थन करते हैं, जो देश पर शासन करना चाहते हैं और देश को इस्लामिक बनाना चाहते हैं, जहां पर महिलाओं के लिए कोई भी अधिकार न हों।
Yunus supports Islamic fanatics in Bangladesh who want to rule the country, make the country Islamic with no women's rights & human rights, destroy secularism & free speech, kill or imprison atheists, throw non-Muslims & freethinkers out of the country. pic.twitter.com/dYFzR7HRmg
— taslima nasreen (@taslimanasreen) September 1, 2024
इन्हीं सब ताकतों के विषय में वे कहती हैं कि असहिष्णुता में वृद्धि हुई है। और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और जल्दी ही महिलाओं के पास कोई अधिकार नहीं रहेंगे। उन्होनें कहा कि हर गुजरते दिन हिज़्ब उत तहरीर, जमात-ए-इस्लामी और कट्टरपंथी छात्रों को महत्व मिल रहा है।
गौरतलब है कि शेख हसीना के शासनकाल में हिज़्ब उत तहरीर, जमात-ए-इस्लामी दोनों ही संगठन आतंकी संगठन करार किये गए थे। बांग्लादेश में कई स्वतंत्र ब्लॉगर्स/लेखकों को मारने में इन दोनों संगठनों का नाम आया था और उन्हें इन हत्याओं के आरोप में जेल भी भेजा गया था।
अब जमात से प्रतिबंध हटा दिया गया है।
तसलीमा नसरीन ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है और वह यह कि शेख हसीना ने पूरा विपक्ष समाप्त करके कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों को प्रश्रय दिया। मदरसा ताकतों को बढ़ाया और युवा पीढ़ी इस्लामिक माहौल में पली बढ़ी। अब उन्हीं ताकतों ने शेख हसीना को बाहर निकलने पर बाध्य कर दिया।
हालांकि उन्होनें यह भी कहा कि वर्तमान यूनिस सरकार शेख हसीना के “तानाशाह शासन” से भी बहुत बुरी है। उन्होनें यह भी कहा कि वहाँ पर भारत विरोधी, महिला विरोधी और लोकतंत्र विरोधी भावनाएं चरम पर हैं।
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