कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जमीन घोटाले में फंस गए हैं। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उनके विरुद्ध मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है, जिसे उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय से उन्हें 29 सितंबर तक राहत मिल गई है। सिद्धारमैया की याचिका पर अगली सुनवाई 29 सितंबर को होगी, तब तक विशेष अदालत में उन पर कोई मुकदमा नहीं चलेगा। यह मामला मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) की 3.16 एकड़ भूमि घोटाले से जुड़ा है, जिसकी कीमत लगभग 5,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस बीच, कर्नाटक कांग्रेस के एमएलसी इवान डिसूजा ने राज्यपाल को धमकी दी है कि अगर उन्होंने अपना आदेश वापस नहीं लिया तो कर्नाटक की स्थिति भी बांग्लादेश जैसी होगी और शेख हसीना की तरह उन्हें भी कर्नाटक छोड़कर भागना पड़ेगा।
तीन आरटीआई कार्यकर्ता टी.जे. अब्राहम, स्नेहमयी कृष्णा और प्रदीप कुमार ने गत माह जुलाई में राज्यपाल से मिलकर सिद्धारमैया पर मैसूरु के केसारे गांव में एमयूडीए की 3.16 एकड़ भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उनका कहना है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं ने जमीन के मुआवजे के लिए फर्जी दस्तावेज लगाने के आरोप लगाए हैं। इस घोटाले से सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है, इसलिए आरोपियों के विरुद्ध मुकदमा चलाया जाए।
इसी के बाद राज्यपाल ने 17 अगस्त को सिद्धारमैया के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की मंजूरी दी थी। इससे पहले, जून में स्नेहमयी कृष्णा ने दावा किया था कि घोटाले में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती सहित कई नेता संलिप्त हैं। इसके बाद जुलाई में टीजे अब्राहम ने मैसूर में लोकायुक्त पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। टीजे अब्राहम ने शहरी विकास प्राधिकरण के सीईओ को दी गई शिकायत में कहा कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया ने अपने हलफनामे में पत्नी की संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया था। स्पष्ट रूप से इसके पीछे उनकी कोई कोई गुप्त मंशा थी।
5 जुलाई, 2024 को एक्टिविस्ट कुरुबरा शांताकुमार ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि मैसूरु के डिप्टी कमिश्नर ने 8 फरवरी से 9 नवंबर, 2023 के बीच 17 पत्र लिखे। 27 नवंबर को शहरी विकास प्राधिकरण और कर्नाटक सरकार को जमीन घोटाले और एमयूडीए कमिश्नर के खिलाफ जांच के लिए पत्र लिखा गया था। इसके बावजूद एमयूडीए के कमिश्नर ने हजारों साइटों को आवंटित किया।
जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच के आदेश के बाद राज्य में कांग्रेस के नेता, विधायक और कार्यकर्ता राज्यपाल पर हमलावर हैं और लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भाजपा सांसद और प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि यह घोटाला 3,000 से 4,000 करोड़ रुपये का है। इसमें सिद्धारमैया का परिवार शामिल है। लेकिन कांग्रेस इस पर चुप्पी साधे हुए है। वहीं, सिद्धारमैया कह रहे हैं कि भाजपा उन पर झूठे आरोप लगा रही है। उनका कहना है कि 2014 में जब वे मुख्यमंत्री थे तो उनकी पत्नी ने मुआवजे के लिए आवेदन किया था। लेकिन उन्होंने यह कहकर उन्हें रोक दिया था कि जब तक वे मुख्यमंत्री हैं, तब तक मुआवजे के लिए आवेदन न करें। 2020-21 में जब भाजपा की सरकार थी, तब उनकी पत्नी को मुआवजे की जमीन आवंटित की गई।
क्या है मामला
एमयूडीए ने एक रिहाइशी इलाका विकसित करने के लिए 1992 में किसानों से जमीन ली थी। इसके एवज में किसानों को प्राधिकरण से विकसित की गई साइट या वैकल्पिक साइट का 50 प्रतिशत मिलना था। 6 वर्ष बाद 1998 में एमयूडीए ने अधिग्रहीत भूमि का एक भाग किसानों को लौटा दिया। यानी प्राधिकरण ने डिनोटिफाई कर किसानों को भूमि का एक हिस्सा वापस कर दिया, जिससे जमीन एक बार फिर कृषि वाली हो गई। इसके बाद 25 अगस्त, 2004 को सिद्धारमैया के साले बीएम मल्लिकार्जुन ने केसारे गांव में 3.16 एकड़ जमीन खरीदी। बाद में 15 जुलाई, 2005 को इसे आवासीय उद्देश्यों के लिए परिवर्तित कर दिया गया, जिसे 2010 में मल्लिकार्जुन ने अपनी बहन (सिद्धारमैया की पत्नी) पार्वती को उपहार में दे दिया।दरअसल, शहर के विकास के लिए जिन लोगों की जमीन अधिग्रहीत की जानी थी, उन्हें एमयूडीए 50:50 नाम की योजना के तहत विकसित भूमि का 50 प्रतिशत देता था। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी, जिसे 2020 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने बंद कर दिया था। लेकिन योजना बंद होने के बावजूद एमयूडीए ने इसके तहत जमीन का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। इसी क्रम में प्राधिकरण ने पार्वती की भूमि का अधिग्रहण किया गया। उन्होंने मुआवजा मांगा तो 2021 में उन्हें दक्षिण मैसूरु के पॉश इलाके विजयनगर में 14 प्लॉट यानी 38,283 वर्ग फीट जमीन मुआवजे के तौर पर दे दी, जिसकी कीमत अधिग्रहीत जमीन से बहुत अधिक थी। भाजपा का आरोप है कि जमीन घोटाला 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये का है। इसमें सत्ता का दुरुपयोग हुआ है।
सिद्धारमैया पर आरोप
2004-05 में प्रदेश में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार थी और सिद्धारमैया उपमुख्यमंत्री थे। आरोप है कि उन्होंने जान-बूझकर अपनी पत्नी को पॉश इलाके में मुआवजे के तौर पर महंगी जमीन दिलवाई। जमीन घोटाले में आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सिद्धारमैया, उनकी पत्नी पार्वती, साले बीएम मल्लिकार्जुन और एमयूडीए के कुछ अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत की है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एमयूडीए अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर मुआवजा लेने के लिए फर्जी दस्तावेज लगाए हैं। 26 जुलाई को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को कारण बताओ नोटिस जारी कर 7 दिन में जवाब देने को कहा। लेकिन एक अगस्त को राज्य सरकार ने राज्यपाल को नोटिस वापस लेने की सलाह दी और उन पर संवैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया।
इससे पूर्व, एक जुलाई के आईएएस अधिकारी आर. वेंकटचलपति के नेतृत्व में जांच के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया गया। इसमें एमयूडीए के जमीन आवंटन में अनियमितता की आशंका जताई गई। कहा गया कि जमीन पात्र लाभार्थियों की बजाय प्रभावशाली लोगों को आवंटित की गई। जमीन घोटाला सामने आने के बाद नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक ने आरोप लगाया कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती भी इसी तरह लाभार्थी बनी हैं। उन्हें भी नियमों को ताक पर रखकर पॉश इलाके में महंगी जमीन आवंटित की गई।
आखिर क्या चाहती है कांग्रेस?
कांग्रेस का रवैया स्वाभाविक विपक्षी दल जैसा नहीं लगता। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से कांग्रेस नेता लगातार कट्टरपंथियों की भाषा बोल रहे हैं। कोई कह रहा है कि बांग्लादेश में जो हुआ वह भारत में भी हो सकता है। कोई कह रहा है कि भारत में भी बांग्लादेश जैसी स्थिति बन रही है, तो कोई कह रहा है कि यहां भी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास में घुस जाएंगे। सलमान खुर्शीद, मणिशंकर अय्यर से लेकर सज्जन वर्मा तक सब की एक ही रट है। अब कर्नाटक के एमएलसी इवान डिसूजा ने भी ऐसा ही बयान दिया है। डिसूजा ने कहा कि यदि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने का आदेश वापस नहीं लिया तो जिस तरह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना पद और देश छोड़कर भागना पड़ा, राज्यपाल थावरचंद गहलोत को भी उनकी तरह भागना पड़ेगा। डिसूजा ने कहा कि अगली बार विरोध प्रदर्शन के लिए सीधे राज्यपाल के कार्यालय जाएंगे, ठीक वैसे ही, जैसे बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में प्रवेश कर गए। आखिर कांग्रेस क्या चाहती है?
टिप्पणियाँ