मुसलमानों के मन में में सिर्फ ‘ज’ से जन्नत और ‘ज’ से जिन्ना और ‘क’ से काफिर बिठा दिया गया था। हमारा परिवार किसी तरह जान बचाकर पाकिस्तान से भागकर कुरुक्षेत्र कैंप में आया और फिर बरेली में स्थाई तौर पर आकर बस गया। मरदान में हमारे कई परिचितों को मार डाला गया।
मदनलाल अरोड़ा
मरदान (पाकिस्तान)
मैं पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मरदान जिले में रहता था। हमारा परिवार वहां के संपन्न घरानों में से एक था। बाग-बगीचे, किराने का अच्छा कारोबार था। दादा साधुराम और पिता शंकरदास की इलाके में हर तरफ धाक थी, लेकिन एक रात में हम अर्श से फर्श पर आ गए।
बंटवारे के समय मैं 12 साल का था। मुसलमानों के मन में सिर्फ ‘ज’ से जन्नत और ‘ज’ से जिन्ना और ‘क’ से काफिर बिठा दिया गया था। हमारा परिवार किसी तरह जान बचाकर पाकिस्तान से भागकर कुरुक्षेत्र कैंप में आया और फिर बरेली में स्थाई तौर पर आकर बस गया। मरदान में हमारे कई परिचितों को मार डाला गया।
हमारे तीन रिश्तेदारों नानक चंद्र, सेवाराम और दास की दंगाइयों ने हत्या कर दी। पाकिस्तान से यहां आने के बाद क्या कुछ नहीं करना पड़ा। चाय-सब्जी बेची। रिक्शा चलाया। बरेली आकर आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल में प्रवेश लिया, लेकिन परिवार की माली हालत खराब होने से परीक्षा नहीं सका।
दो रुपए महीने की पगार पर नौकरी कर गुजारा किया। बाद में एक प्रिंटिंग प्रेस से जुड़कर छपाई की ट्रेनिंग ली। प्रिंटिंग के क्षेत्र में कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज भगवान का दिया सब कुछ हमारे परिवार के पास है, किसी चीज की कमी नहीं है, लेकिन विभाजन के समय की कड़वी यादें जब भी ध्यान आती हैं, बहुत दुख होता है।
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