बांग्लादेश की कथित क्रांति अब एक विध्वंसक मोड पर पहुँच गई है। यह कथित क्रांति बांग्लादेश की पहचान के लिए ही विध्वंस का कार्य कर रही है। क्या शेख हसीना को हटाना ही इसका लक्ष्य था या कुछ और ?
वह लक्ष्य क्या था, वह इस बात से पता चल जाता है कि आज का बांग्लादेश अपने देश के नायक मुजीबुर रहमान की प्रतिमा और उनके प्रतीकों के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है? वह अंतत: उन्हें किस प्रकार से देख रहा है ? यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि बांग्लादेश की पहचान 1971 के युद्ध के बाद बनी थी, जबकि इसकी 1906 से लेकर 1971 तक इसकी पहचान मुस्लिम बहुल क्षेत्र की रही थी। ऐसा मुस्लिम बहुल क्षेत्र जो अपनी मुस्लिम पहचान को लेकर आगे बढ़ना चाहता था। यही कारण था कि 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना भी यहीं की गई थी।
शेख मुजीबुर रहमान भी मुस्लिम लीग के ही युवा नेता थे, जिन्होंने भारत से अलग होकर एक ऐसे मुस्लिम मुल्क का सपना देखा था जहां पर उनके लोग पूरी आजादी के साथ रह सकें। यही कारण था कि उन्होनें डायरेक्ट एक्शन डे में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था और पूर्वी पाकिस्तान को मजहब के आधार पर भारत से अलग करने में सफल रहे थे।
ईस्ट पाकिस्तान को बनाने वाले शेख मुजीबुर रहमान ही थे, क्योंकि उन्होंने मुस्लिम लीग के लिए कार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फिर भी आज उनकी ही प्रतिमाओं को क्यों तोड़ा जा रहा है? क्यों उस व्यक्ति की प्रतिमाओं को तोड़ा जा रहा है, जिन्होंने पहले मुस्लिम लीग के साथ मिलकर भारत से अलग ईस्ट पाकिस्तान के निर्माण और फिर बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
जो आंदोलन हुआ उसमें मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाओं और फिर मुजीबंगर में 1971 के बलिदान मेमोरियल कॉम्प्लेक्स में ऐतिहासिक स्मृतियों को क्यों तोड़ा गया ?
Protesters in Bangladesh are swiftly attempting to erase historical memories. Statues at the 1971 Shaheed Memorial Complex in Mujibnagar have been destroyed by anti-India mobs. These statues depicted the brutal atrocities and rapes committed by the Pakistan Army against women in… pic.twitter.com/W3WCsAyMwx
— The UnderLine (@TheUnderLineIN) August 12, 2024
इतना ही नहीं बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने यह आदेश भी पारित किया है कि 15 अगस्त का आवश्यक अवकाश भी इस वर्ष नहीं होगा। 15 अगस्त भारत की स्वतंत्रता के अवसर पर अवकाश बांग्लादेश में नहीं होता है, बल्कि मुजीबुर्रहमान की स्मृति में अवकाश घोषित किया गया था।
दरअसल 49 वर्ष पूर्व 15 अगस्त को ही मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या के शोक में इस दिन को अवकाश घोषित किया गया था। और उसी दिन से इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया जा रहा था। इस वर्ष बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ऐसा मसौदा बनाया है कि 15 अगस्त का अवकाश समाप्त कर दिया जाए। पूरे बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था लागू करने के लिए अतिरिक्त पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की जाएगी।
वहीं इसे लेकर बांग्लादेश की निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने क्षोभ व्यक्त करते हुए देशवासियों के लिए एक पत्र लिखा है। उनके बेटे सजीब वाजेद ने एक्स पर अपनी माँ के पत्र का अंग्रेजी अनुवाद किया है। इस पत्र में उन्होंने उन तमाम लोगों के बलिदान का उल्लेख किया है, जिनका कत्ल बहुत ही बेरहमी से 15 अगस्त 1975 को कर दिया गया था। इस पत्र में उन तमाम लोगों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई है, जिन्होंने जान गंवाई थी।
वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगे थे और उनके पूरे परिवार की हत्या सेना के कुछ अधिकारियों ने कर दी थी। सुबह सुबह उनके गहर पर धावा बोल दिया था और फिर देखते ही देखते शेख मुजीबुर्रहमान, उनकी बेगम, उनके बेटे, बहुओं सभी को मार डाला गया।
शेख हसीना ने अपने पत्र में लिखा है कि 15 अगस्त को धानमंडी में, जिस घर बंगबंधु में यह हत्याएं हुई थीं, उन्होंने और उनकी बहन ने उस घर को देश को समर्पित कर दिया था और उसे एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया था। वहा पर साधारण और देश-विदेश से आने वाले विख्यात लोग जाते थे और उन स्मृतियों को जीते थे, देखते थे, जो बांग्लादेश के निर्माण में बलिदानियों की कुर्बानियों को दिखाती थीं और जिनमें आजादी की लड़ाई की कहानी शामिल थी।
उन्होंने लिखा कि यह संग्रहालय हमारी आजादी की भावना का प्रतीक है और हमने जो भी स्मृतियाँ सँजोकर रखी थीं, उनका उद्देश्य केवल बांग्लादेश के पीड़ित लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाना था। इन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम मिलने लगे थे एवं बांग्लादेश अब दुनिया के विकासशील देशों के बीच महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मगर यह बहुत दुख की बात है कि अब सब राख में मिल गया है। जो स्मृति हमारी जीवनरेखा थी, वह राख में मिल गई है और यह राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का घोर अपमान है, जिनके नेतृत्व में हमने अपना स्वाभिमान, अपनी पहचान और अपना आजाद मुल्क हासिल किया। यह लाखों बलिदानियों के खून का घोर अपमान है। मैं इस देश के लोगों से न्याय की मांग करती हूं। उन्होंने देशवासियों से यह भी अपील की कि वे 15 अगस्त का दिन मनाएं और बंगबंधु मेमोरियल म्यूजियम में प्रार्थना करें।
English translation of my mother's statement:
Dear Bangladesh,
As-salamu alaykum.
Brothers and sisters, on August 15, 1975, the Father of the Nation and the then President of Bangladesh, Bangabandhu Sheikh Mujibur Rahman, was brutally assassinated. I pay my deepest respects to…
— Sajeeb Wazed (@sajeebwazed) August 13, 2024
इस पत्र में भी उन्होंने अपने देश की उस पहचान को बनाए रखने की बात की, जो वर्ष 1971 में मुस्लिम लीग से अलग हटकर मुजीबुर रहमान ने बनाई थी। नया बांग्लादेश बनाने वाले, जब बांग्लादेश की बात करते हैं, तो वे इस इतिहास से मुंह मोड़ नहीं सकते हैं कि बांग्लादेश तो शेख मुजीबुर्रहमान के कारण ही अस्तित्व में आया है। यदि वे शेख मुजीबुर्रहमान की स्मृतियों को मिटा रहे हैं, तो प्रश्न यह उठता है कि क्या वे बांग्लादेश का नाम भी बदलेंगे? क्योंकि बांग्लादेश तो उन्हीं से है, जिनकी स्मृति नए बांग्लादेश के नाम पर मिटाई जा रही है? क्या नया बांग्लादेश बनाने वाले “पूर्वी पाकिस्तान” की पहचान को वापस लाना चाहते हैं, क्योंकि बांग्लादेश की पहचान तो शेख मुजीबुर रहमान के ही कारण है। उन्होंने ही मुस्लिम लीग के बंगाली जनता पर उर्दू को जबरन थोपे जाने का विरोध किया था और पूर्वी पाकिस्तान के प्रति पाकिस्तान सरकार के दोयम रवैये का विरोध भी किया था। यह भी सच है कि शेख मुजीबुर रहमान मुस्लिम लीग के ही नेता थे और मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पाकिस्तान के निर्माण में भी भी उनका योगदान है। फिर ऐसे किसी व्यक्ति की स्मृति क्यों मिटाई जा रही है? या फिर यह कहें कि शेख मुजीबुर रहमान की “बांग्लादेश” के राष्ट्रपिता के रूप वाली स्मृति मिटाकर उनकी “मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान” वाली छवि को वापस लाया जा रहा है? यदि यह आंदोलन या कहें अंतरिम सरकार का उद्देश्य शेख हसीना के भ्रष्टाचार पर प्रहार करना था, तो फिर ऐसे में 15 अगस्त 1975 की स्मृति को क्यों हटाया जा रहा है या फिर बांग्लादेश के निर्माण के समय पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण का प्रदर्शन करती हुई प्रतिमाओं को क्यों तोड़ा जा रहा है? क्यों 1971 की नई पहचान के प्रतीकों को तोड़ा जा रहा है? या फिर यह कहें कि छात्र आंदोलन की आड़ में यह पूर्वी पाकिस्तान के बनने का आंदोलन था?
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