9 अगस्त को पूरे विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है, भारत में भी इस दिन को “आदिवासी दिवस” के रूप में मनाया जाता है।लेकिन आजकल इस दिन को मनाने का चलन अचानक बढ़ गया है। यह बढ़ोतरी एक साजिश है और इस साजिश को उजागर करनेवाली एक किताब का अहमदाबाद में विमोचन किया गया।
साहित्य साधना ट्रस्ट, गुजरात द्वारा प्रकाशित किताब “आदिवासी की चित्कार: डीलिस्टिंग” का विमोचन किया गया। भानु चौहान द्वारा लिखित इस पुस्तक में आदिवासी दिवस की सत्यता को उजागर किया गया है। लेखक का मानना है कि ‘आदिवासी दिवस’ भारत को “मूलनिवासी” शब्द के आधार पर विभाजित करने की एक व्यापक राष्ट्रव्यापी साजिश है और आजकल यह साजिश जोर पकड़ रही है। भारत को विभाजित करनेवाली इस साजिश का पर्दाफाश और इस बारे में व्यापक जनजागरण की आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में इस दिन को मनाने का चलन अचानक अधिक बढ़ गया है। ‘आदिवासी दिवस’ और ‘मूलनिवासी’ विषय पर चर्चाएं हो रही हैं, कार्यक्रम हो रहे हैं। लेकिन इन सभी चर्चा और कार्यक्रम के पीछे एक बहुत बड़ी साजिश है। इसी साजिश का पर्दाफाश करने की दिशा में यह किताब पहला कदम है।
इस किताब का विमोचन समारोह हेडगेवार भवन में आयोजित किया गया। सेवानिवृत्त आईएएस सी. एम. बालात और अहमदाबाद नगर निगम के पूर्व डीईटीपी पी.एन. राऊत की विशिष्ट उपस्थिति में आयोजित इस समारोह में बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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